ईरान ने दावा किया है कि उसने इसराइल पर सेजिल नाम की बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया है। ईरान के भारत स्थित दूतावास ने गार्ड कोर के एक बयान का हवाला देते हुए एक्स पर लिखा कि “ऑपरेशन ‘ट्रू प्रॉमिस 3’ की बारहवीं लहर की शुरुआत हो चुकी है, जिसमें बहुत भारी, लंबी दूरी तक मारने वाली सेजिल मिसाइलें लॉन्च की गई हैं”। हालांकि इसराइली रक्षा बलों यानी आईडीएफ़ ने दावा किया कि ईरान की सेजिल मिसाइल को बीच में ही रोक लिया गया, इसके टुकड़े गिरने की वजह से एक वाहन को मामूली नुक़सान हुआ है।
सेजिल का पहली बार परीक्षण 2008 में
दरअसल, सेजिल मिसाइल एक बैलिस्टिक मिसाइल है। यह एक लंबी दूरी तक वार करने वाली ज़मीन से दागी जाने वाली मिसाइल है। सेजिल को बनाना ईरान ने 1990 के बाद शुरू किया था और ऐसा माना जाता है कि इसे बनाने में चीन और रूस ने तकनीकी मदद की थी। पहली बार इस मिसाइल का परीक्षण 2008 में किया गया और इसके बाद 2009 में एक बार फिर इसका परीक्षण हुआ। इसमें इसका गाइडेंस सिस्टम यानी लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाने की क्षमता को और बेहतर बनाया गया।
2012 तक सेजिल मिसाइल के कुल चार परीक्षण किए जा चुके थे। हर परीक्षण के साथ इसकी ताकत और रेंज में इजाफा किया गया और इसकी मारक क्षमता को बढ़ाकर लगभग 1900 किलोमीटर तक कर दिया गया। इसकी वजह से सेजिल पूरे पश्चिम एशिया में किसी भी लक्ष्य पर हमला करने में सक्षम बन गई। और अब यह इतनी सक्षम बन चुकी है कि जनवरी 2021 में इसे एक सैन्य अभ्यास के दौरान ईरान की सबसे ख़तरनाक़ और शक्तिशाली हथियारों में गिना गया।
सेजिल की क्या है क्षमता?
सेजिल मिसाइल ठोस ईंधन से चलती है, जिससे इसे बहुत तेजी से लॉन्च किया जा सकता है। जो मिसाइलें तरल ईंधन से चलती हैं उन्हें तैनात करने में काफी मेहनत और वक्त लगता है। सेजिल को रडार से ट्रैक करना भी दुश्मन के लिए बहुत मुश्किल होता है।
सेजिल की लंबाई लगभग अठारह मीटर है और यह करीब सात सौ किलोग्राम का विस्फोटक ले जा सकती है। इसकी मारक दूरी लगभग दो हजार किलोमीटर है। तेज रफ्तार से उड़ने वाली सेजिल मिसाइल महज सात मिनट के अंदर इसराइल जैसे लक्ष्यों तक पहुंच सकती है।
कलस्टर बम वाली मिसाइल का इस्तेमाल
ईरान ने इसराइल पर क्लस्टर बम वाली मिसाइल भी दागी है। क्लस्टर बम एक ऐसा बम होता है जो हवा में फटकर बहुत सारे छोटे-छोटे बम छोड़ देता है। ये छोटे बम एक बड़े इलाके में फैल जाते हैं और वहां मौजूद हर चीज़ को निशाना बना सकते हैं। चाहे वो टैंक हो, सैनिक हों, वाहन हों या कभी-कभी आम लोग भी। परेशानी की बात यह है कि कुछ बम तो तुरंत फट जाते हैं, लेकिन कई नहीं फटते और ज़मीन पर पड़े रह जाते हैं। ये बिना फटे बम बाद में किसी के कदम पड़ने पर या छूने पर फट सकते हैं, जिससे आम लोगों की जान को खतरा बना रहता है।
इसी वजह से साल 2008 में 100 से ज़्यादा देशों ने कन्वेंशन ऑन कलस्टर म्यूनिशंस नाम के एक समझौते पर दस्तखत किए। इस समझौते में तय किया गया कि हम क्लस्टर बम न तो बनाएंगे, न इस्तेमाल करेंगे और न ही इन्हें किसी को बेचेंगे या देंगे। जो बम उनके पास पहले से हैं, उन्हें भी नष्ट कर देंगे। लेकिन कुछ देश जैसे अमेरिका, रूस और ईरान इस समझौते में शामिल नहीं हुए। वे अब भी इन बमों को बनाते, रखते और ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल भी करते हैं।
19 जून को ईरान ने जब इसराइल पर मिसाइल हमला किया, तो कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया कि इन मिसाइलों में क्लस्टर बम लगे हुए थे। इस खबर के बाद दुनिया भर में कड़ी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने ऐसे हथियारों के इस्तेमाल की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि इनका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इस घटना के बाद दुनिया में इन बमों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग और तेज हो गई है। हालाँकि, यह अभी तक साफ़ नहीं है कि वाकई क्लस्टर बमों का इस्तेमाल हुआ या नहीं। लेकिन अगर ऐसा हुआ है, तो यह बहुत चिंता की बात है। मध्य पूर्व जैसे इलाके में ऐसे हथियारों का इस्तेमाल स्थिति को और बिगाड़ सकता है।