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    Home » कुंभ पर पीएम मोदी ने की तारीफ, तो भगदड़ पर चुप्पी क्यों?
    भारत

    कुंभ पर पीएम मोदी ने की तारीफ, तो भगदड़ पर चुप्पी क्यों?

    By March 18, 2025No Comments5 Mins Read
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    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ की सफलता को देश की एकता और सामर्थ्य का प्रतीक बताया, लेकिन विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने उनकी इस प्रशंसा में एक बड़ी कमी को सामने रख दिया। राहुल ने कहा कि पीएम ने 29 जनवरी को कुंभ में हुई भगदड़ में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि नहीं दी। इसके साथ ही उन्होंने युवाओं के रोजगार का मुद्दा भी उठा दिया।

    लोकसभा में पीएम के भाषण के बाद मीडिया से बात करते हुए राहुल ने कहा, ‘मैं पीएम की बात का समर्थन करना चाहता था। कुंभ हमारी परंपरा, इतिहास और संस्कृति है। हमारी एकमात्र शिकायत यह है कि पीएम ने कुंभ में मरने वालों को श्रद्धांजलि नहीं दी।’

    इससे पहले लोकसभा में पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश प्रशासन और जनता की तारीफ़ करते हुए कहा, ‘महाकुंभ की सफलता के लिए मैं जनता और प्रशासन का धन्यवाद देता हूँ। यह विभिन्न लोगों के प्रयासों का नतीजा है। गंगा को धरती पर लाने के लिए कठिन प्रयास हुए थे, वैसे ही भव्य महाकुंभ के लिए मेहनत की गई।’ 

    लोकसभा में पीएम ने कहा, ‘स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में एक सदी पहले जो भाषण दिया, वह भारत की आध्यात्मिक चेतना का जयघोष था, उसने भारतीयों के आत्मसम्मान को जगा दिया था। हमारी आजादी के आंदोलन में भी 1857 का स्वतंत्रता दिवस आया है। संग्राम हो, वीर भगत सिंह की शहादत का समय हो, नेता जी सुभाष बाबू का दिल्ली चलो का जयघोष हो, गांधी जी का दांडी मार्च हो, ऐसे ही पड़ावों से प्रेरणा लेकर भारत ने आजादी हासिल की। मैं प्रयागराज महाकुंभ को भी ऐसे ही एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में देखता हूं, क्योंकि जागृत होते हुए देश का प्रतिबिम्ब नजर आता है।’

    उन्होंने इसे राष्ट्रीय चेतना के जागरण का प्रतीक बताते हुए कहा कि इस आयोजन ने भारत की क्षमताओं पर संदेह करने वालों को जवाब दिया। पीएम ने कहा, ‘पूरी दुनिया ने महाकुंभ के जरिए भारत की महिमा देखी। यह जनता की आस्था और संकल्प से प्रेरित था।’

    महाकुंभ में हमने हमारी राष्ट्रीय चेतना के जागरण के विराट दर्शन किए हैं।

    यह जो राष्ट्रीय चेतना है, यह जो राष्ट्र को नए संकल्पों की तरफ ले जाती है, यह नए संकल्पों की सिद्धि के लिए प्रेरित करती है।

    महाकुंभ ने उन शंकाओं-आशंकाओं को भी उचित जवाब दिया है, जो हमारे सामर्थ्य को लेकर कुछ… pic.twitter.com/DhzjoKfgXv

    — BJP (@BJP4India) March 18, 2025

    हालांकि, राहुल गांधी ने इस मौके पर रोजगार जैसे मुद्दों को नजरअंदाज करने की बात भी उठाई। उन्होंने कहा, ‘कुंभ में गए युवाओं को रोजगार की उम्मीद थी। पीएम को इस पर बोलना चाहिए था।’ इसके साथ ही उन्हें बोलने का मौका न मिलने पर उन्होंने तंज कसा, ‘लोकतांत्रिक ढांचे में विपक्ष के नेता को बोलने का अधिकार है, लेकिन हमें नहीं बोलने दिया जाता। यह नया भारत है।’

    कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने भी विपक्ष को बोलने का मौका न देने की आलोचना की। उन्होंने कहा, ‘पीएम महाकुंभ पर सकारात्मक बात कर रहे थे। विपक्ष को भी अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए था। हमारे पास भी इसके प्रति भावनाएँ हैं और हमें दो मिनट बोलने की अनुमति मिलनी चाहिए थी।’

    विपक्ष के अनुसार, मौजूदा सरकार विपक्षी दलों को अपनी बात रखने का अवसर नहीं दे रही है। हालांकि, सरकार का कहना है कि वह सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना कर रहा है।

    44 दिनों तक चले महाकुंभ में 60 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। लेकिन 29 जनवरी को संगम के पास हुई भगदड़ ने इस उत्सव पर दाग लगा दिया। राज्य सरकार के मुताबिक, इसमें 30 लोगों की मौत हुई और 60 घायल हुए। इसके अलावा, नई दिल्ली स्टेशन पर प्रयागराज जाने वाली ट्रेनों में भीड़ के कारण हुई भगदड़ में 18 लोगों की जान गई। इन घटनाओं ने प्रशासनिक तैयारियों पर सवाल खड़े किए।

    उन्होंने राम मंदिर के उद्घाटन और कुंभ मेले की सफलता को भारत के अगले 1000 वर्षों के लिए एक मजबूत आधार बताया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर समारोह में हमने राष्ट्र की तैयारियों को महसूस किया था, और एक साल बाद महाकुंभ ने उसी दृष्टिकोण को मजबूत किया।

    राहुल गांधी का बेरोजगारी का मुद्दा उठाना और भगदड़ के शिकार लोगों को याद करना विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है, जिसका मकसद सरकार को कठघरे में खड़ा करना है। दूसरी ओर, पीएम मोदी ने इस आयोजन को राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर अपनी सरकार की उपलब्धि के रूप में पेश किया। 

    जैसा कि पीएम ने दावा किया, महाकुंभ ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति को दुनिया के सामने रखा। लेकिन भगदड़ की त्रासदी और विपक्ष की आलोचना ने इसकी चमक को फीका कर दिया। यह आयोजन जहाँ एकता और आस्था का प्रतीक बना, वहीं सुरक्षा और प्रबंधन में चूक ने इसे विवादों में घेर लिया। 

    (इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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