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    Home » क्या ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई इसराइल के हमलों का तूफ़ान झेल पाएँगे?
    भारत

    क्या ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई इसराइल के हमलों का तूफ़ान झेल पाएँगे?

    Janta YojanaBy Janta YojanaJune 15, 2025No Comments5 Mins Read
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    मध्य पूर्व में इसराइल और ईरान के बीच सालों से चली आ रही दुश्मनी अब एक नए और ख़तरनाक मोड़ पर पहुँच गई है। ईरान ने रविवार को इसराइल पर जवाबी हमला किया। इसराइल भी पिछले तीन दिनों से लगातार बम बरसा रहा है। इसराइल ने सबसे पहले ईरान के परमाणु ढांचे, वैज्ञानिकों, सैन्य ठिकानों और नेताओं पर जोरदार हमला बोला है। यह कोई छोटा-मोटा हमला नहीं है, बल्कि इसराइल का यह ऐलान है कि वह अब ईरान को पीछे हटने पर मजबूर कर देगा। इस हमले ने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है और सवाल उठ रहा है कि क्या ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई इस बार के हमले से कैसे निपट पाएंगे?

    इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे अपने देश के लिए निर्णायक पल बताया है। उनका कहना है कि ईरान का परमाणु हथियार कार्यक्रम इसराइल के लिए जानलेवा ख़तरा है। इसलिए, इसराइल ने ठान लिया है कि वह ईरान की परमाणु और मिसाइल ताक़त को तब तक निशाना बनाएगा, जब तक वह पूरी तरह ख़त्म न हो जाए। यह कोई एक दिन का खेल नहीं है। नेतन्याहू ने साफ़ कहा है कि हमले जितने दिन चाहिए, उतने दिन चलेंगे।

    इसराइल की इस रणनीति के पीछे सालों की तैयारी है। उसने न सिर्फ ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि उसके वैज्ञानिकों, वार्ताकारों और सैन्य कमांडरों को भी टारगेट किया। इतना ही नहीं, इसराइल ने तो ईरान के अंदर तक अपनी खुफ़िया पहुँच दिखाई, जो खामेनेई के शासन के लिए खतरे की घंटी है।

    पिछले पांच दशकों में ईरान ने तमाम आर्थिक और सैन्य चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया है। उसने इसराइल को जवाबी हमलों से भी डराया है। लेकिन इस बार बात अलग है। इसराइल के हमले यह दिखा रहे हैं कि उसकी खुफ़िया ताक़त कितनी गहरी है। ईरान के अंदर तक ऑपरेशन करना और चुन-चुनकर नेताओं को निशाना बनाना, यह सब खामेनेई के शासन की कमजोरियों को उजागर करता है। 1989 से ईरान के सर्वोच्च नेता रहे खामेनेई अब 86 साल के हो चुके हैं। 

    ईरान हमेशा से अरब और इस्लामी दुनिया का झंडाबरदार बनने की बात करता रहा है। लेकिन जब बात असल समर्थन की आई तो वह अकेला पड़ गया। पिछले गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए की बैठक में 35 देशों के बोर्ड ने 19-3 के वोट से ईरान को परमाणु समझौते का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया। यह 20 साल में ईरान के ख़िलाफ़ पहला ऐसा प्रस्ताव था। इस मामले में केवल चीन, रूस और बुर्किना फासो ने ईरान का साथ दिया। 

    हैरानी की बात यह है कि अल्जीरिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, क़तर, सऊदी अरब और तुर्की जैसे मुस्लिम देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया। हालाँकि, इन देशों ने इसराइल के हमलों की निंदा की। यह दिखाता है कि धार्मिक और वैचारिक एकजुटता के दावे खोखले हैं। 

    दरअसल, कई अरब देश ईरान की परमाणु ताक़त से उतने ही चिंतित हैं, जितना इसराइल। कुछ तो चुपके से चाहते हैं कि इसराइल या अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ख़त्म कर दे। यही नहीं, कई अरब देश इसराइल के साथ सैन्य सहयोग भी कर रहे हैं। 

    अमेरिका और ट्रंप का रुख

    इस मामले में एक ट्विस्ट तब आया, जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थक मेक अमेरिका ग्रेट अगेन यानी MAGA आंदोलन ने इसराइल के हमलों का विरोध किया। 2024 में ट्रम्प को सत्ता में लाने वाला यह आंदोलन अमेरिका को युद्धों से दूर रखना चाहता है। MAGA नेताओं ने चेतावनी दी कि नेतन्याहू अमेरिका को ईरान के साथ युद्ध में घसीट सकता है। 

    ट्रंप ने इसराइल की तारीफ़ तो की, लेकिन साथ ही ईरान को सलाह दी कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को छोड़कर शांति और समृद्धि का रास्ता चुने, वरना और नुक़सान झेले।

    ट्रंप ने यह भी ज़िक्र किया कि इसराइल ने हाल के हमलों में उन ईरानी नेताओं को निशाना बनाया, जो परमाणु समझौते के ख़िलाफ़ थे। इसका मतलब साफ़ है कि वे ईरान के शासन में फूट डालना चाहते हैं। 

    ईरान के सामने दो रास्ते

    ईरान के सामने पहला रास्ता यह है कि अमेरिका और उसके अरब पड़ोसियों पर हमला कर सकता है या अपने समर्थक हिजबुल्लाह जैसे संगठनों को सक्रिय कर सकता है। लेकिन ऐसा करने से पूरे क्षेत्र में युद्ध छिड़ सकता है, जो इस्लामिक गणराज्य के लिए तबाही ला सकता है।

    क्या होगा खामेनेई का भविष्य?

    माना जा रहा है कि इसराइल का यह हमला सिर्फ़ परमाणु कार्यक्रम को तबाह करने की कोशिश नहीं है, बल्कि यह खामेनेई के शासन को कमजोर करने और शायद उसे उखाड़ फेंकने का भी दांव है। इसराइल लंबे समय से ईरान में शासन के बदलाव का सपना देखता रहा है, लेकिन यह कभी आसान नहीं रहा। इस बार इसराइल की गहरी खुफिया पहुँच और क्षेत्रीय समर्थन की कमी खामेनेई के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है।

    ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ मध्य पूर्व की सियासत में एक बड़ा भूचाल है। इसराइल का यह क़दम न सिर्फ़ ईरान की परमाणु ताक़त को चुनौती दे रहा है, बल्कि खामेनेई के नेतृत्व और उनके शासन की नींव को भी हिला रहा है। ईरान अब क्या कदम उठाएगा? क्या वह जवाबी हमले करेगा या कूटनीति का रास्ता चुनेगा? और सबसे बड़ा सवाल- क्या खामेनेई इस तूफान से बच पाएंगे, या यह उनके शासन का अंत होगा?

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