विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में शामिल होने वाले और कथित नफ़रती भाषण से सुर्खियों में रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव की मुश्किलें बढ़ने वाली लगती हैं। राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस के बाद अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें बैठक के लिए दिल्ली बुलाया है। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि कॉलेजियम ने उन्हें अगले हफ़्ते बैठक के लिए बुलाया है और यह बैठक 17 दिसंबर को हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर को जस्टिस यादव के विवादास्पद भाषण का संज्ञान लिया था और हाईकोर्ट से जानकारी मांगी थी।
जस्टिस यादव इसलिए विवाद में हैं कि हाल ही में विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित उस कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि यह हिंदुस्तान है और यह देश बहुमत की इच्छा के अनुसार चलेगा। जज ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विवादास्पद बयान दिया और कहा कि बहुसंख्यकों का कल्याण और खुशी दूसरों की इच्छाओं से ऊपर है।
उन्होंने कहा कि हिंदू धर्मग्रंथों जैसे शास्त्रों और वेदों में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन एक खास समुदाय के लोग अभी भी कई पत्नियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अधिकार मांगते हैं।
उन्होंने कहा, ‘आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते जिसे हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी के रूप में मान्यता दी गई है। आप चार पत्नियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अधिकार नहीं मांग सकते। आप कहते हैं कि हमें ‘तीन तलाक’ कहने का अधिकार है और महिलाओं को भरण-पोषण नहीं देना है। यह अधिकार काम नहीं करेगा।’
जज ने कई विवादास्पद बयान दिए, जिसमें व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुसलमानों के खिलाफ आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द ‘कठमुल्ला’ का इस्तेमाल करना भी शामिल है। चरमपंथियों को ‘कठमुल्ला’ कहते हुए उन्होंने कहा कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘लेकिन ये जो कठमुल्ला है जो…ये सही शब्द नहीं है… लेकिन कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वो देश के लिए बुरा है… देश के लिए घातक है, खिलाफ़ है, जनता को भड़काने वाले लोग हैं… देश आगे ना बढ़े इस प्रकार के लोग हैं… उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।’
जज के इस बयान को लेकर राज्यसभा में इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने भी आपत्ति जताई। 13 दिसंबर को राज्यसभा में विपक्ष के 55 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया था।
नोटिस में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अनुसार, यदि किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत लोकसभा में पेश की जाती है तो उसे कम से कम 100 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए और यदि राज्यसभा में पेश की जाती है तो 50 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए।
सांसदों द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के बाद सदन का पीठासीन अधिकारी इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। यदि स्वीकार किया जाता है, तो शिकायत की जांच करने और यह निर्धारित करने के लिए दो न्यायाधीशों और एक न्यायविद वाली तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है कि क्या यह महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए उपयुक्त मामला है।
इसी बीच यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुँच गया है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एक अधिकारी ने कहा, ‘जस्टिस यादव के साथ बैठक के लिए कॉलेजियम के आह्वान को अदालत की आंतरिक प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है…अगर कोई कार्रवाई होती है, तो वह बैठक पर निर्भर करती है।’ हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति यादव अप्रैल 2026 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)