चीन ने हाल ही में युन्नान प्रांत के कुनमिंग शहर में पहली बार बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी की। इस उच्चस्तरीय बैठक में तीनों देशों ने आपसी विश्वास और पड़ोसी मित्रता के सिद्धांतों के आधार पर संबंधों को गहरा करने का संकल्प लिया। बैठक में व्यापार, निवेश, कृषि, डिजिटल अर्थव्यवस्था, समुद्री विज्ञान, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा, ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ाने पर चर्चा हुई। कहने को तो यह एक साधारण सी बैठक थी लेकिन इसके कूटनीतिक प्रभावों को भारत के संबंध में महसूस किया जा सकता है।
बैठक की सह-अध्यक्षता चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग, बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रूहुल आलम सिद्दीकी और पाकिस्तान के अतिरिक्त सचिव (एशिया प्रशांत) इमरान अहमद सिद्दीकी ने की। पाकिस्तान की विदेश सचिव आमना बलूच ने वर्चुअल रूप से बैठक के पहले चरण में भाग लिया। तीनों देशों ने सहयोग परियोजनाओं को लागू करने और बैठक में हुए समझौतों पर अमल के लिए एक कार्य समूह स्थापित करने पर सहमति जताई। हालांकि, समझौतों का विवरण अभी स्पष्ट नहीं है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संबंध, विशेष रूप से पूर्व बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान, तनावपूर्ण रहे थे। लेकिन पिछले साल अगस्त में हसीना सरकार के पतन के बाद से दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, कूटनीति और लोगों के बीच संपर्क में सहयोग बढ़ा है। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, विदेश सचिव आमना बलूच ने इस त्रिपक्षीय मंच के आयोजन के लिए चीन की सराहना की और दक्षिण एशियाई देशों के साथ चीन के गहरे जुड़ाव की इच्छा व्यक्त की।
चीन की इस त्रिपक्षीय पहल को क्षेत्रीय व्यवस्था को फिर से आकार देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने और चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम है। बीआरआई के तहत, चीन दक्षिण एशिया में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित कर रहा है, जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों शामिल हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि पिछले दिनों चीन ने इसी तरह की बैठक अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ की थी, उसमें भी पाकिस्तान को बुलाया गया था। यानी चीन लगातार भारत के पड़ोसी देशों के साथ बैठकें कर रहा है।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने संयुक्त रूप से जोर दिया कि यह त्रिपक्षीय सहयोग “सच्चे बहुपक्षवाद और खुले क्षेत्रीयता” पर आधारित है और इसका उद्देश्य किसी तीसरे पक्ष को निशाना बनाना नहीं है। यह बयान भारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि भारत ने पहले ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के विस्तार पर आपत्ति जताई थी।
बांग्लादेश के विदेश सचिव जाशिम उद्दीन ने अप्रैल में पाकिस्तान के विदेश सचिव के साथ मुलाकात में 1971 के युद्ध के दौरान हुए अत्याचारों के लिए पाकिस्तान से औपचारिक माफी की मांग उठाई थी। इस बीच, चीन ने क्षेत्रीय स्थिरता और अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय कूटनीति अपनाई है।
चीन की क्षेत्रीय रणनीति
चीन ने हाल के महीनों में दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। मई 2025 में, चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ एक अन्य त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी की थी, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को अफगानिस्तान तक विस्तार देने पर चर्चा हुई थी। भारत ने इस कदम का विरोध किया था, क्योंकि सीपीईसी जम्मू-कश्मीर के उन हिस्सों से होकर गुजरता है, जिन्हें भारत अपना क्षेत्र मानता है।
चीन ने हाल के महीनों में दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। मई 2025 में, चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ एक अन्य त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी की थी, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को अफगानिस्तान तक विस्तार देने पर चर्चा हुई थी। भारत ने इस कदम का विरोध किया था, क्योंकि सीपीईसी जम्मू-कश्मीर के उन हिस्सों से होकर गुजरता है, जिन्हें भारत अपना क्षेत्र मानता है।
कुनमिंग में हुई इस त्रिपक्षीय बैठक में भी चीन ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और बीआरआई के तहत अपनी परियोजनाओं को गति देने की मंशा जाहिर की। सुन वेइदोंग ने कहा कि चीन पड़ोसी देशों के साथ साझा भविष्य वाला समुदाय बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
यह त्रिपक्षीय बैठक दक्षिण एशिया में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों का संकेत देती है। जहां चीन अपनी क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाने के लिए नए गठजोड़ बना रहा है, वहीं भारत के लिए यह एक रणनीतिक चुनौती पेश करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए सक्रिय कूटनीति अपनानी होगी।