पाकिस्तान ने एक ओर अमेरिका के ईरान पर हवाई हमलों को संप्रभुता का उल्लंघन क़रार दिया है तो दूसरी ओर सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए समर्थन दे दिया है। यह विरोधाभास क्या है- रणनीति या मजबूरी?
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव लंबे समय से चला आ रहा है। ख़ासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर। अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ईकाइयों पर हवाई हमले किए। इन हमलों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मिलीजुली प्रतिक्रियाएँ दीं। जहां इसराइल और कुछ खाड़ी देशों ने इस कार्रवाई का समर्थन किया, वहीं कई अन्य देशों ने इसे अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन बताया।
ईरान का निकट सहयोगी रहे पाकिस्तान ने भी इन हमलों की तीखी निंदा की है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, ‘यह कार्रवाई न केवल ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी ख़तरे में डालती है।’ इसके साथ ही पाकिस्तान ने ईरान के प्रति पूरा नैतिक समर्थन व्यक्त किया।
इशाक डार उतरे ईरान के समर्थन में
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने एक आधिकारिक बयान में कहा, ‘हमें इस बात की गंभीर चिंता है कि क्षेत्र में तनाव और बढ़ सकता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमें नागरिकों की जिंदगी और संपत्ति का सम्मान करने की सख़्त ज़रूरत है और इस संघर्ष को तुरंत ख़त्म करना होगा। सभी पक्षों को अंतरराष्ट्रीय क़ानून, अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के अनुसार बातचीत और कूटनीति ही इस क्षेत्र के संकट को हल करने का एकमात्र रास्ता है।’
आसिम मुनीर का ट्रंप को समर्थन क्यों?
अमेरिका के हमले पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी का कारण बने, क्योंकि कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान ने डोनाल्ड ट्रंप को भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की बात कही थी।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप के साथ एक निजी मुलाक़ात की थी। इसके बाद उन्होंने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की वकालत की। यह नामांकन भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के तनाव को कम करने में ट्रंप की कथित भूमिका के लिए था।
हालाँकि, यह क़दम कई मायनों में आश्चर्यजनक है। ट्रंप का भारत के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है और भारत ने हमेशा तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज किया है। ट्रंप प्रशासन ने ही ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे और 2018 में ईरान परमाणु समझौता से अमेरिका को बाहर कर लिया था। ऐसे में, पाकिस्तान का ट्रंप को शांति पुरस्कार के लिए समर्थन करना और उसी समय अमेरिका के ईरान पर हमलों की निंदा करना एक विरोधाभास लगता है।
पाकिस्तान की दोहरी नीति
पाकिस्तान की विदेश नीति को अक्सर दोमुँहेपन के रूप में देखा जाता है, जहाँ वह विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश करता है।
ईरान के साथ संबंध: ईरान और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और भौगोलिक निकटता है। दोनों देश सीमा साझा करते हैं और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सहयोग करते रहे हैं। अमेरिकी हमलों की निंदा कर पाकिस्तान ने न केवल अपनी क्षेत्रीय छवि को मज़बूत करने की कोशिश की, बल्कि ईरान के साथ अपने रिश्तों को भी सुरक्षित रखा।
अमेरिका के साथ रिश्ते: पाकिस्तान और अमेरिका के बीच संबंध जटिल रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी रही है। हालाँकि, ट्रंप के साथ आसिम मुनीर की मुलाक़ात और नोबेल पुरस्कार का समर्थन एक संदेश है कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करना चाहता है। यह विशेष रूप से तब अहम है जब पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है और उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ और अन्य पश्चिमी संस्थानों से सहायता की ज़रूरत है।
आंतरिक राजनीति: पाकिस्तान में सेना का राजनीतिक प्रभाव बहुत अधिक है। आसिम मुनीर का यह क़दम उनकी अपनी छवि को मज़बूत करने और जनता के बीच समर्थन हासिल करने का प्रयास भी हो सकता है। ट्रंप जैसे वैश्विक नेता का समर्थन करना उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक मज़बूत नेता के रूप में पेश कर सकता है।
क्षेत्रीय संतुलन: भारत के साथ तनाव और चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों के बीच, पाकिस्तान मध्य पूर्व में अपनी स्थिति को मज़बूत करना चाहता है। ईरान का समर्थन और अमेरिका के साथ रिश्तों को संतुलित करना इस रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
क्या यह एक रणनीतिक चाल है?
जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान की रणनीति पाकिस्तान को विभिन्न वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन बनाने की है। हालाँकि, यह रणनीति जोखिम भरी भी है। एक ही समय में अमेरिका की निंदा करना और ट्रंप का समर्थन करना पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे अवसरवादी क़दम के रूप में देख सकता है।
ईरान का समर्थन कर पाकिस्तान सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ अपने रिश्तों को जोखिम में डाल सकता है, जो अमेरिका के क़रीबी सहयोगी हैं।
पाकिस्तान का अमेरिकी हमलों की निंदा करना और ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए समर्थन करना एक जटिल रणनीति लगती है। यह दिखाता है कि पाकिस्तान अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह क़दम जोखिमों से खाली नहीं है। क्षेत्रीय स्थिरता, क्षेत्रीय विश्वसनीयता और आंतरिक एकता के लिए क्या यह ज़रूरी है कि पाकिस्तान अपनी नीतियों को साफ़ करे?