नीतीश के चेहरे पर भी उम्र की समस्याएं दिखायी दे रही हैं। उनके बेटे निशांत कुमार अब तक राजनीति में नहीं आए हैं। उनकी पार्टी जे डी यू में भविष्य को लेकर असमंजस की स्थिति है। अक्टूबर – नवंबर के विधानसभा चुनावों के बाद उनकी विदायी की खबरें तेजी से चल रही हैं। नयी पीढ़ी के चार – पांच नेता अब उनका विकल्प बनने की तैयारी में लगे हैं। जाहिर है उनमें सबसे आगे लालू के बेटे तेजस्वी यादव हैं, जिन्हें लालू ने अपनी विरासत 2015 में ही सौंप दी थी।और वो उस समय नीतीश कुमार की सरकार में उप मुख्यमंत्री बन गए थे। अब विपक्ष के नेता हैं। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर अपनी अलग पार्टी बनाकर लालू – नीतीश का विकल्प बनने के जंग में जुटे हैं। बी जे पी ने पिछड़े नेता सम्राट चौधरी को आगे किया है, जो इस समय उप मुख्यमंत्री हैं। सम्राट, पूर्व समाजवादी नेता और एक समय लालू और नीतीश के सहयोगी सकुनी चौधरी के बेटे हैं। कांग्रेस ने जे एन यू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को आगे किया है। लेकिन बिहार का नेतृत्व करने के लिए सबसे ज़्यादा आतुर दिखायी दे रहे हैं चिराग पासवान। चिराग,पूर्व केंद्रीय मंत्री राम बिलास पासवान के बेटे हैं। वो कई बार घोषणा कर चुके हैं कि वो केंद्र की राजनीति छोड़ कर बिहार की राजनीति में आना चाहते हैं। मुख्यमंत्री बनने का उनका इरादा छुपा हुआ नहीं है।
चिराग की चुनौती
लालू और नीतीश के लिए भी वो एक चुनौती थे। 2020 में राम बिलास पासवान की मृत्यु के बाद एन डी ए ने चिराग को हाशिए पर धकेल कर राम विलास के भाई पशुपति पारस को आगे कर दिया। लोक जन शक्ति पार्टी दो हिस्सों में बंट गयी। उनके चार में से तीन सांसद पारस के साथ चले गए। पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह मिल गयी। चिराग हार नहीं माने और बिहार में घूम घूम कर पार्टी को फिर से संगठित किया। उनका आरोप था कि उन्हें नीतीश कुमार के कहने पर एन डी ए में किनारे किया गया। बदला लेने के लिए 2020 के विधान सभा चुनावों में चिराग ने नीतीश कुमार की पार्टी जे डी यू के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े किए। इस चुनाव में जे डी यू को काफ़ी नुक़सान हुआ। उनके विधायकों की संख्या 43 पर सिमट गयी।यह अलग बात है कि 135 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी चिराग की पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पायी। 2024 के लोक सभा चुनाव में चिराग की एन डी ए में वापसी हुई। उन्हें पाँच सीटें मिलीं। सभी सीटें जीत कर उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह बना ली।इसके बावजूद उनका राजनीतिक प्रभाव सीमित है। विधानसभा में वो 20-25 से ज़्यादा सीटें जीतने की क्षमता नहीं रखते हैं। उनकी एक समस्या ये भी है कि अति दलितों के नेता जीतन राम मांझी बन चुके हैं। परिवार में उनके चाचा पशुपति पारस बाग़ी हो चुके हैं। वो एन डी ए के ख़िलाफ़ ताल ठोक रहे हैं। लेकिन चिराग अब नीतीश कुमार का विकल्प बनने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं।
सवर्ण बनाम पिछड़ा
कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को आगे करके नया चेहरा तो पेश कर दिया लेकिन कन्हैया भी सवर्ण हैं। प्रदेश की सबसे बड़ी आबादी पिछड़ों और अति पिछड़ों में कांग्रेस की पैठ बहुत कम है। कांग्रेस के लिए फिलहाल आर जे डी की बैशाखी जरूरी है। बी जे पी के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी अति पिछड़े वर्ग से हैं। उनके पिता शकुनी चौधरी लालू और नीतीश के सहयोगी थे। सम्राट भी जे डी यू और आर जे डी में रह चुके हैं। 2017 में वो बी जे पी में शामिल हुए। उनमे नीतीश जैसी चमक नहीं है। बी जे पी उन्हें नीतीश के समानांतर खड़ा करने की कोशिश कर चुकी है।
लोकप्रियता का पैमाना
कुछ समय पहले सी वोटर नाम की संस्था ने बिहार के नेताओं की लोकप्रियता का सर्वेक्षण किया। इसका नतीजा चौंकाने वाला था। इस सर्वे के मुताबिक मुख्यमंत्री के लिए 36 प्रतिशत लोगों ने तेजस्वी यादव को पसंद किया। प्रशांत किशोर 17, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 15, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी 13 और चिराग पासवान सिर्फ 6 फीसदी लोगों की पसंद हैं। सर्वे में शामिल आधे से ज़्यादा लोगों ने सरकार से नाखुशी जाहिर की और चुनावों के बाद बदलाव की इच्छा ज़ाहिर की।
सी वोटर के मुखिया यशवंत देशमुख ने इस सर्वे के बाद टिप्पणी की कि ये लोगों की इस वक्त की इक्षा है,लेकिन ये वोट में बदल जाय ये जरूरी नहीं है। चुनाव के नतीजे आख़िरी समय की बहुत सी परिस्थितियों पर निर्भर होते हैं। लेकिन इतना तो साफ़ है कि चिराग के लिए नीतीश का विकल्प बनना आसान नहीं है। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि चिराग की पेशबंदी विधान सभा चुनाव में ज़्यादा से ज़्यादा सीटें हासिल करना है, ताकि भविष्य में वो सत्ता के बड़े दावेदार बन सकें।