
Largest Temple in the World (Image Credit-Social Media)
Largest Temple in the World (Image Credit-Social Media)
Largest Temple in the World: तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में कावेरी और कोल्लिदम नदियों के बीच बसे श्रीरंगम द्वीप पर स्थित श्री रंगनाथस्वामी मंदिर न केवल भारत का सबसे बड़ा मंदिर है, बल्कि दुनिया के सबसे विशाल पूजनीय धार्मिक स्थलों में से एक है। इसे भू-लोक का वैकुंठ कहा जाता है, यानी धरती पर भगवान विष्णु का निवास। इस मंदिर की भव्यता, इतिहास, वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व इसे हर साल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाते हैं।
मंदिर का परिचय: आकाश छूती भव्यता
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर भगवान विष्णु के अवतार रंगनाथ और उनकी पत्नी रंगनायकी (माँ लक्ष्मी) को समर्पित है। यह मंदिर 156 एकड़ में फैला हुआ है, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा कार्यरत हिंदू मंदिर बनाता है। इसके सात प्राकार (परकोटे) और 21 गोपुरम (प्रवेश द्वार) इसे एक विशाल किले जैसा रूप देते हैं। मंदिर का मुख्य गोपुरम, जिसे राजगोपुरम कहा जाता है, 236 फीट ऊँचा है और दक्षिण भारत की द्रविड़ वास्तुकला का शानदार नमूना है।

– मंदिर की स्थिति: यह तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में श्रीरंगम द्वीप पर बना है, जो कावेरी नदी के दो हिस्सों से घिरा है। इसकी वजह से इसे द्वीप मंदिर भी कहते हैं।
– आध्यात्मिक महत्व: यह मंदिर 108 दिव्य देशमों में सबसे प्रमुख है, जिन्हें तमिल संत-कवि अलवारों ने अपने भक्ति भजनों (नालायिर दिव्य प्रबंधम) में गाया है। इसे वैष्णव संप्रदाय का सबसे पवित्र तीर्थ माना जाता है।
– उपनाम: इसे तिरुवरंगम तिरुपति, पेरियाकोइल और भू-लोक वैकुंठ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास: समय की गहराइयों में
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसका निर्माण और विकास कई राजवंशों के योगदान का परिणाम है, जिनमें चोल, पांड्य, होयसाल, विजयनगर और नायक शामिल हैं। मंदिर का मूल ढाँचा पहली शताब्दी में बना माना जाता है। लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप 9वीं से 17वीं शताब्दी के बीच विकसित हुआ।

– पौराणिक कथा: मान्यता है कि भगवान राम ने लंका विजय के बाद विभीषण को रंगनाथ की मूर्ति भेंट की थी। विभीषण इसे लंका ले जा रहे थे, लेकिन श्रीरंगम में कावेरी के किनारे मूर्ति को रखने पर वह हिली नहीं। भगवान रंगनाथ ने स्वयं प्रकट होकर कहा कि वे यहीं रहना चाहते हैं। तब से यह मंदिर यहाँ स्थापित है।
– मध्यकालीन इतिहास: 11वीं शताब्दी में वैष्णव आचार्य रामानुज ने इस मंदिर को वैष्णव दर्शन का केंद्र बनाया। उनके गुरु नाथमुनि और यमुनाचार्य ने भी यहाँ भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया।
– आक्रमणों का दौर: 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के मुहम्मद बिन तुगलक के आक्रमण ने मंदिर को नुकसान पहुँचाया। तमिल परंपरा के अनुसार, 13,000 वैष्णव भक्तों ने मंदिर की रक्षा करते हुए बलिदान दिया। मूर्तियों को बचाने के लिए वैष्णव आचार्य पिल्लई लोकाचार्य ने उन्हें तिरुनेलवेली और अन्य स्थानों पर छिपा दिया।
– विजयनगर साम्राज्य: 1371 में विजयनगर के कमांडर कुमार कंपन्ना ने मंदिर को मुक्त कराया और मूर्तियों को पुनः स्थापित किया। इसके बाद विजयनगर शासकों ने मंदिर का जीर्णोद्धार किया और इसे सोने की परतों से सजाया।
– नायक और मुगल काल: 17वीं शताब्दी में नायक शासकों ने मंदिर के चारों ओर सात प्राकार बनवाए, जो इसे एक किले जैसा रूप देते हैं। मुगल आक्रमणों के बावजूद मंदिर अपनी आध्यात्मिक शक्ति बनाए रखा।
वास्तुकला: द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली का एक अनूठा उदाहरण है। इसका विशाल परिसर, जटिल नक्काशी, और भव्य गोपुरम इसे देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

– सात प्राकार: मंदिर के सात परकोटे सात लोकों का प्रतीक हैं। प्रत्येक प्राकार में बाज़ार, मंदिर, और आवासीय क्षेत्र हैं, जो इसे एक छोटे शहर जैसा बनाते हैं।
– राजगोपुरम: 1987 में पूरा हुआ 236 फीट ऊँचा राजगोपुरम दक्षिण भारत का सबसे ऊँचा गोपुरम है। इसकी नक्काशी में रामायण और विष्णु पुराण के दृश्य उकेरे गए हैं।
– गर्भगृह: मंदिर के केंद्र में भगवान रंगनाथ शेषनाग पर लेटे हुए हैं। उनकी मूर्ति 21 फीट लंबी है और स्वयंभू (स्वयं प्रकट) मानी जाती है। गर्भगृह में श्रीदेवी, भूदेवी और ब्रह्मा जी की मूर्तियाँ भी हैं।
– मंडप: मंदिर में कई मंडप हैं, जैसे सहस्रस्तंभ मंडप (1000 स्तंभों वाला), जिसमें प्रत्येक स्तंभ पर अलग-अलग नक्काशी है। गरुड़ मंडप और शेषराय मंडप भी अपनी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध हैं।
– अन्य मंदिर: परिसर में माँ रंगनायकी, आंडाल, राम, कृष्ण, नरसिंह, और अलवार संतों को समर्पित छोटे मंदिर हैं।
– ममी का रहस्य: मंदिर में रामानुजाचार्य की 1000 साल पुरानी ममी संरक्षित है, जिसे आज भी पूजा जाता है। यह मंदिर की एक अनूठी विशेषता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर वैष्णव संप्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ है। यह तेंकलाई परंपरा का अनुसरण करता है और पंचरात्र आगम के अनुसार पूजा होती है। मंदिर ने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर अलवार संतों और रामानुजाचार्य के माध्यम से।

– अलवार संत: 12 तमिल संत-कवियों ने अपने भजनों में रंगनाथ की महिमा गाई। इन भजनों को नालायिर दिव्य प्रबंधम कहा जाता है, जो मंदिर की पूजा का हिस्सा हैं।
– रामानुजाचार्य: 11वीं शताब्दी में रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन को यहाँ से प्रचारित किया। उनकी शिक्षाएँ आज भी वैष्णव समुदाय के लिए प्रेरणा हैं।
– आनंदम योजना: मंदिर में प्रतिदिन 200 भक्तों को मुफ्त भोजन दिया जाता है, जो तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और दान बोर्ड द्वारा संचालित है।
– सामाजिक केंद्र: मंदिर न केवल आध्यात्मिक, बल्कि आर्थिक और सामाजिक केंद्र भी रहा। यहाँ के शिलालेख मध्यकालीन दक्षिण भारतीय समाज और संस्कृति की जानकारी देते हैं।
उत्सव और परंपराएँ
मंदिर में साल भर उत्सवों का मेला लगा रहता है, जो इसे जीवंत और रंगीन बनाते हैं।
– वैकुंठ एकादशी: मार्गली महीने (दिसंबर-जनवरी) में 21 दिन का यह उत्सव सबसे बड़ा है। लाखों श्रद्धालु यहाँ भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। इस दौरान स्वर्गवासम (स्वर्ग का द्वार) खोला जाता है।
– रथोत्सव: भगवान रंगनाथ को विशाल रथ पर नगर भ्रमण के लिए ले जाया जाता है। यह उत्सव भक्तों में उत्साह भर देता है।
– ज्येष्ठाभिषेकम: मूर्तियों की विशेष पूजा और स्नान का आयोजन होता है।
– श्री जयंती: भगवान रंगनाथ का जन्मोत्सव आठ दिनों तक मनाया जाता है।
– अन्य उत्सव: पवित्रोत्सवम, जनमाष्टमी, एकादशी, और नगरसोथनाई जैसे उत्सव भी यहाँ धूमधाम से होते हैं।
मंदिर की अनूठी विशेषताएँ
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर की कई ऐसी खासियतें हैं, जो इसे दुनिया में अनूठा बनाती हैं:

– दुनिया का सबसे बड़ा पूजनीय मंदिर: 156 एकड़ में फैला यह मंदिर वेटिकन सिटी से भी बड़ा है। इसके परिसर में एक पूरा शहर बसा हुआ है, जिसमें बाज़ार, घर, और स्कूल हैं।
– सात प्राकार: यह एकमात्र मंदिर है, जिसमें सात परकोटे हैं, जो इसे एक किले जैसा बनाते हैं।
– रामानुज की ममी: मंदिर में संरक्षित रामानुजाचार्य की 1000 साल पुरानी ममी वैज्ञानिकों के लिए भी आश्चर्य का विषय है।
– स्वयंभू मूर्ति: रंगनाथ की मूर्ति स्वयं प्रकट मानी जाती है और इसे आठ स्वयंभू क्षेत्रों में से एक माना जाता है।
– तमिल भक्ति आंदोलन: यह मंदिर भक्ति आंदोलन का केंद्र रहा, जहाँ संगीत और नृत्य के माध्यम से भक्ति प्रचारित की गई।
पर्यटन और दर्शन
- श्री रंगनाथस्वामी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहाँ की भव्यता और शांति हर किसी को आकर्षित करती है।
- दर्शन का समय: मंदिर सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। विश्राम के लिए दोपहर 1:15 से 3 बजे तक बंद रहता है।
कैसे पहुँचें:
- हवाई मार्ग: तिरुचिरापल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा 15 किमी दूर है।
- रेल मार्ग: श्रीरंगम रेलवे स्टेशन 2 किमी और तिरुचिरापल्ली जंक्शन 7 किमी दूर है।
- सड़क मार्ग: बस और टैक्सी से श्रीरंगम आसानी से पहुँचा जा सकता है।
मंदिर का आधुनिक महत्व
आज श्री रंगनाथस्वामी मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यहाँ दर्शन किए, जिससे इसकी प्रसिद्धि और बढ़ी। मंदिर का प्रबंधन तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और दान बोर्ड के पास है, जो इसे संरक्षित और सुचारु रूप से चलाने का काम करता है।
पुरातात्विक महत्व: मंदिर के शिलालेख मध्यकालीन दक्षिण भारत की सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति को दर्शाते हैं।
पर्यटन को बढ़ावा: तमिलनाडु सरकार और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग मंदिर को राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में संरक्षित कर रहे हैं।
सांस्कृतिक केंद्र: यहाँ होने वाले उत्सव और सांस्कृतिक कार्यक्रम तमिल संस्कृति को जीवंत रखते हैं।
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास और आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र है। यहाँ की भव्यता, शांति, और भक्ति हर किसी को अपने आगोश में ले लेती है। चाहे आप भगवान रंगनाथ के भक्त हों या इतिहास और वास्तुकला के शौकीन, यह मंदिर आपको निराश नहीं करेगा। इसके सात प्राकारों में घूमते हुए आपको ऐसा लगेगा जैसे आप समय की गहराइयों में उतर रहे हों।
तो, अगर आप तमिलनाडु की सैर पर हैं, तो श्रीरंगम के इस मंदिर को अपनी लिस्ट में ज़रूर शामिल करें। यहाँ का अनुभव आपको न केवल भगवान विष्णु के करीब लाएगा, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से भी जोड़ेगा। चलिए, इस भू-लोक वैकुंठ की यात्रा के लिए तैयार हो जाइए ।