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    Home » रिश्वतखोरी कानून पर ट्रम्प ने रोक लगाई, क्या अडानी को इससे फायदा होगा?
    भारत

    रिश्वतखोरी कानून पर ट्रम्प ने रोक लगाई, क्या अडानी को इससे फायदा होगा?

    By February 12, 2025No Comments6 Mins Read
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    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें न्याय विभाग को लगभग आधी सदी पुराने रिश्वतविरोधी कानून को लागू करने से रोकने का निर्देश दिया गया है। उसी कानून का इस्तेमाल अडानी समूह के खिलाफ रिश्वतखोरी की जांच शुरू करने के लिए किया गया था। समझा जाता है कि इस घटनाक्रम से अडानी समूह को फायदा होगा।

    यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय यात्रा पर अमेरिका जाने से एक दिन पहले सामने आया है। मोदी इस समय पेरिस में हैं और वहां से यूएस जायेंगे। वहां वो ट्रम्प से मुलाकात के लिए जा रहे हैं।

    यूएस में विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) 1977 में लागू हुआ था। इस कानून के तहत अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों के लिए व्यापारिक सौदे पाने के लिए विदेशी सरकारी अधिकारियों को भुगतान करना अवैध था। यूएस अधिकारियों ने रिश्वतखोरी पर नकेल कसने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया है। कई अमेरिकी कंपनियों पर इसके लिए मुकदमे चले, जिन्होंने विदेश में कारोबारी कॉन्ट्रैक्ट हासिल किये।

    ट्रम्प खुद बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और कई देशों में उनका धंधा है। ट्रम्प को इस कानून पर शुरू से ऐतराज रहा। इस कानून के कारण दुनिया की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों पर आरोप लगे। ट्रम्प ने मौके का फायदा उठाकर इस कानून पर ही रोक लगा दी। नवंबर 2024 में, अमेरिकी अधिकारियों ने गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप लगाया और उन पर फेडरल कोर्ट में केस दर्ज किया गया। एफबीआई ने संबंध में कोर्ट में सबूत भी सौंपे। अडानी समूह ने इन दावों का “खंडन” किया था।

    भारत में अडानी समूह से जुड़े मीडिया ने इस पर खबर तो प्रकाशित की है लेकिन अडानी समूह ने यूएस में हुए इस घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

    2020 में, यूएस की बड़ी कंपनी गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) पर आरोप लगा था कि उसने मलेशिया में विदेशी अधिकारियों को रिश्वत में $1 बिलियन का भुगतान किया था। इस मुकदमे को निपटाने के लिए गोल्डमैन को इस अमेरिकी कानून के तहत $2.9 बिलियन से अधिक का भुगतान करना पड़ा।

    ट्रम्प के कार्यकारी आदेश में कहा गया है कि इस कानून का “इस तरह से दुरुपयोग किया गया कि जो यूएसए के हितों को नुकसान पहुंचाता है।” यह भी कहा गया कि इस कानून का एनफोर्समेंट अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों में बाधा डाल रहा है।

    यह आदेश संघीय अधिकारियों को कोई भी नई जांच शुरू करने या 180 दिनों के लिए नई कार्रवाई लागू करने से रोकता है। जब तक कि अटॉर्नी-जनरल यह तय नहीं करता कि कोई मामला अपवाद है या नहीं। ट्रम्प प्रशासन इस कानून के तहत शुरू की गई तमाम मौजूदा जांच की भी समीक्षा करेगा। इसी में गौतम अडानी और सागर अडानी पर हुए मुकदमे भी आते हैं।

    ट्रम्प के नये आदेश ने अटॉर्नी-जनरल पाम बोंडी को निर्देश दिया है कि वह उस अधिनियम को लागू करने के तरीके पर नया मार्गदर्शन जारी करें जो “अमेरिकी कानून प्रवर्तन संसाधनों के सही इस्तेमाल को बढ़ावा देता है।”

    पिछले साल, पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में न्याय विभाग (डीओजे) ने अडानी पर कथित तौर पर सोलर पावर कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए मनमाफिक शर्तों के बदले भारतीय अधिकारियों को $250 मिलियन (₹2,100 करोड़) से अधिक की रिश्वत देने का आरोप लगाया था।

    अडानी समूह के खिलाफ रिश्वतखोरी का आरोप तब लगा, जब यह बात सामने आई कि अडानी ग्रीन एनर्जी ने खुद को भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) के जरिये सोलर पावर बेचने में असमर्थ पाया। अमेरिकी न्याय विभाग ने  न्यूयॉर्क फेडरल कोर्ट में दायर अपने मुकदमे में कहा था कि जब एसईसीआई उच्च कीमत वाली सोलर पावर के लिए खरीदार ढूंढने में असमर्थ हो गया तो अडानी समूह ने भारतीय अधिकारियों को रिश्वत दी। जिन्होंने अपने राज्यों में एसईसीआई से सोलर पावर खरीदने के लिए कॉन्ट्रैक्ट किये।

    हालांकि अमेरिका में दायर मुकदमे में उस कीमत का जिक्र नहीं किया गया था जिस पर पांच राज्यों में बिजली वितरण कंपनियों को बिजली बेची गई थी। ये हैं- आंध्र प्रदेश में तीन, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, ओडिशा और जम्मू और कश्मीर में एक-एक कंपनी शामिल थी। अमेरिकी बाजार नियामक, सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) ने रिश्वत घोटाले पर एक अलग शिकायत दर्ज की, जिसमें उसने केवल दो आरोपियों का नाम दिया: गौतम अडानी और सागर अदानी।

    अमेरिकी रेगुलेटर ने कहा कि अडानी भारत सरकार के अधिकारियों को बाजार से ऊपर की दरों पर बिजली खरीदने के लिए रिश्वत में “सैकड़ों मिलियन डॉलर के बराबर भुगतान किया या भुगतान करने का वादा किया।” इस रिश्वत से भारत में सोलर एनर्जी उत्पादक अडानी ग्रीन एनर्जी और एज़्योर पावर को सीधा फायदा हुआ और आने वाले समय में होगा।

    एफसीपीए और इसकी समीक्षा पर रोक को अडानी समूह के लिए राहत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि छह महीने की समीक्षा अवधि के बाद अमेरिकी न्याय विभाग क्या रुख अपनाता है। क्योंकि आदेश अब जारी हुआ है, जबकि अडानी का केस 2024 का है। ट्रम्प के आदेश में कहा गया है कि संशोधित दिशानिर्देश या नीतियां जारी होने के बाद शुरू की गई या जारी रखी गई एफसीपीए जांच और प्रवर्तन कार्रवाइयां “ऐसे दिशानिर्देशों या नीतियों द्वारा शासित होंगी; और इसे विशेष रूप से अटॉर्नी-जनरल द्वारा अधिकृत किया जाना चाहिए।” यानी अटॉर्नी-जनरल को तय करना है कि अडानी समूह पर केस चलेगा या नहीं।

    नया दिशानिर्देश या नीतियां जारी होने के बाद, अटॉर्नी-जनरल यह तय करेंगे कि पिछली अनुचित एफसीपीए जांच और प्रवर्तन कार्रवाइयों के संबंध में अतिरिक्त कार्रवाई की जरूरत है या नहीं। अगर कुछ मामलों में राष्ट्रपति की कार्रवाई की जरूरत है, तो राष्ट्रपति से ऐसी कार्रवाइयों की सिफारिश करेगा।

    करीब आधा दर्जन अमेरिकी सांसदों ने अमेरिकी न्याय विभाग के “संदिग्ध” फैसलों के खिलाफ नए अटॉर्नी-जनरल को लिखा है। इसी में अडानी समूह का केस भी है। एक सासंद ने कहा था कि इस मामले में न्याय विभाग का आदेश “भारत के साथ संबंधों को खतरे में डाल देगा।” सांसद लांस गूडेन, पैट फॉलन, माइक हैरिडोपोलोस, ब्रैंडन गिल, विलियम आर. टिममन्स और ब्रायन बाबिन ने सोमवार को अटॉर्नी जनरल बॉन्डी को पत्र लिखकर “बाइडेन प्रशासन के तहत डीओजे द्वारा किए गए कुछ संदिग्ध फैसलों की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया है।”

    अमेरिकी सांसदों ने संयुक्त पत्र में कहा, “इनमें से कुछ फैसलों में चुनिंदा मामलों को आगे बढ़ाना और छोड़ना, अक्सर देश और विदेश में अमेरिका के हितों के खिलाफ काम करना, भारत जैसे करीबी सहयोगियों के साथ संबंधों को खतरे में डाल देगा।”

    उन्होंने कहा, भारत दशकों से अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहा है। यह रिश्ता राजनीति, व्यापार और अर्थशास्त्र से परे दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच निरंतर सामाजिक-सांस्कृतिक आदान-प्रदान से विकसित हुआ है।

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