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    Home » वक्फ बिल में एनडीए सांसदों के 14 संशोधन माने, विपक्ष के 44 खारिज, ऐसा क्यों?
    भारत

    वक्फ बिल में एनडीए सांसदों के 14 संशोधन माने, विपक्ष के 44 खारिज, ऐसा क्यों?

    By January 27, 2025No Comments4 Mins Read
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    संयुक्त संसदीय समिति ने वक्फ विधेयक में एनडीए सांसदों द्वारा सुझाए गए सभी 14 संशोधन मान लिए और विपक्षी सांसदों द्वारा सुझाए गए सभी 44 संशोधन खारिज कर दिए। इसने जो संशोधन स्वीकार किए हैं उनमें से प्रमुख वह है जिसमें अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों और मनोनीत पदेन सदस्यों के बीच अंतर बताया गया है। मनोनीत पदेन सदस्य मुस्लिम या गैर-मुस्लिम हो सकता है। मुस्लिम पक्ष वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का विरोध करते रहे हैं।

    वक़्फ विधेयक पर काफी विवाद रहा है और इसको लेकर विपक्षी दल आपत्ति जताते रहे हैं। इस पर उनकी क्या आपत्ति रही है, यह जानने से पहले यह जान लें कि संयुक्त संसदीय कमेटी ने क्या ताज़ा फ़ैसला लिया है और किन संशोधनों को स्वीकार किया गया है। जेपीसी की बैठक के बाद सोमवार को समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा कि सोमवार को पारित संशोधनों के बाद एक बेहतर विधेयक बनेगा और गरीब और पसमांदा मुसलमानों को लाभ देने का सरकार का उद्देश्य पूरा होगा।

    जेपीसी ने घोषणा की कि मसौदा रिपोर्ट 28 जनवरी तक प्रसारित की जाएगी और फिर 29 जनवरी को औपचारिक रूप से अपनाई जाएगी। विपक्षी सांसदों ने बैठक की कार्यवाही की आलोचना की और जगदंबिका पाल पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ख़त्म करने का आरोप लगाया। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने संवाददाताओं से कहा, ‘यह एक हास्यास्पद अभ्यास था। हमारी बात नहीं सुनी गई। पाल ने तानाशाही तरीके से काम किया है।’ पाल ने आरोप को खारिज कर दिया और कहा कि पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक थी और बहुमत के आधार फ़ैसला लिया गया।

    समिति के अध्यक्ष ने कहा, ‘खंड-दर-खंड विचार-विमर्श के लिए एक बैठक हुई थी। विपक्ष द्वारा पेश किए गए सभी संशोधनों में से प्रत्येक 44 को मैंने उनके नाम के साथ पढ़ा। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे अपने संशोधन पेश कर रहे हैं। फिर उन्हें पेश किया गया। यह इससे अधिक लोकतांत्रिक नहीं हो सकता था। अगर संशोधन पेश किए गए और उनके ख़िलाफ़ 16 सदस्यों ने मतदान किया और उनके पक्ष में केवल 10 ने, तो क्या 10 सदस्यों के समर्थन वाले संशोधनों को स्वीकार किया जा सकता है चाहे संसद हो या जेपीसी, यह स्वाभाविक है।’ वक्फ पैनल में संसद के दोनों सदनों से 31 सदस्य हैं। इसमें से एनडीए से 16, जिसमें भाजपा से 12 शामिल हैं, विपक्षी दलों से 13, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से एक और एक नामित सदस्य।

    जगदंबिका पाल ने कहा, ‘ऐसी कई बातें थीं जिन पर वे सहमत थे और जिन पर उन्होंने अपनी राय दी थी। आज एक संशोधन पारित किया गया- पहले कलेक्टर को ऑथोरिटी दी जाती थी, लेकिन अब ऑथोरिटी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा- चाहे वह आयुक्त हो या सचिव।’ 

    क्या-क्या संशोधन स्वीकार्य

    वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर जेपीसी द्वारा मंजूर 14 संशोधनों में से एक वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता से जुड़ा है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, यह बदलाव अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों और नियुक्त पदेन सदस्य के बीच अंतर करता है। अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों के बारे में बिल के शुरुआती मसौदे में बताया गया है। नियुक्त पदेन सदस्य मुस्लिम या गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।

    इसका मतलब यह है कि वक्फ परिषदों में चाहे वे राज्य स्तर पर हों या अखिल भारतीय स्तर पर, कम से कम दो सदस्य ऐसे होंगे जो गैर-मुस्लम होंगे। यदि नियुक्त पदेन सदस्य भी गैर-मुस्लिम हुआ तो ऐसे तीन सदस्य गैर-मुस्लिम हो जाएँगे।

    रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य अहम बदलाव में संबंधित राज्य द्वारा चुने गए एक अधिकारी को यह तय करने की जिम्मेदारी दी गई है कि कोई संपत्ति ‘वक्फ’ है या नहीं। पहले, यह निर्णय प्रारंभिक मसौदे के अनुसार जिला कलेक्टर के हाथों में था। 

    तीसरा बदलाव यह है कि यदि विचाराधीन संपत्ति पहले से पंजीकृत हो तो क़ानून लागू होने से पहले से यह प्रभावी नहीं होगा। हालाँकि, कांग्रेस नेता और जेपीसी सदस्य इमरान मसूद ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लगभग 90 प्रतिशत वक्फ संपत्तियाँ वास्तव में पंजीकृत नहीं हैं। प्रस्तावित बदलावों के साथ-साथ 11 अतिरिक्त बदलावों का सुझाव सत्तारूढ़ बीजेपी के प्रतिनिधियों ने दिया था। 

    अतिरिक्त 11 संशोधनों में से तेजस्वी सूर्या द्वारा प्रस्तावित एक संशोधन में यह प्रावधान है कि भूमि दान करने का इरादा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करने का प्रमाण देना होगा। इसके अलावा, उन्हें यह पुष्टि करनी होगी कि संपत्ति के समर्पण में कोई छल या हेरफेर शामिल नहीं है।

    इस विधेयक को पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था। इसमें देश में मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए 44 विवादास्पद संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है। शुरुआत में इसे शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना थी, लेकिन विस्तृत जांच के लिए इसे जेपीसी को भेज दिया गया।

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