13 जून, 2025 की सुबह, जब दुनिया की नज़रें मिडिल ईस्ट पर टिकी थीं, इसराइल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर ताबड़तोड़ हमले किए। नतांज़ और फोर्डो में धमाकों की गूँज, छह शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या, और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के कमांडर हुसैन सलामी की मौत ने विश्व को स्तब्ध कर दिया। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात थी कि इन हमलों में इस्तेमाल हुए ड्रोन ईरान के अंदर से ही उड़े। इस खतरनाक मिशन का मास्टरमाइंड थी इसराइल की रहस्यमयी और खूंखार जासूसी एजेंसी—मोसाद। आखिर मोसाद है क्या, जिसने ईरान को इतना बड़ा नुकसान पहुँचाया?
ईरान पर मोसाद का कहर
13 जून, 2025 को इसराइल ने ‘ऑपरेशन राइज़िंग लायन’ शुरू किया, जिसने ईरान के परमाणु ठिकानों, मिसाइल बेस, और सैन्य अड्डों को निशाना बनाया। इन हमलों के पीछे ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसी ‘मोसाद’ की सटीक योजना थी। सालों पहले, मोसाद ने ईरान के अंदर गुप्त ड्रोन बेस और हथियार सिस्टम तैयार कर लिए थे। तेहरान के पास एस्पाज़ाबाद बेस पर मिसाइल लॉन्चर को नष्ट करने के लिए मोसाद ने रात में ड्रोन सक्रिय किए। मध्य ईरान में कमांडो दस्तों ने हवाई रक्षा प्रणालियों को निष्क्रिय कर दिया।
इस ऑपरेशन में IRGC के कमांडर हुसैन सलामी मारे गये जो सुप्रीम लीडर अली खामैनी को सीधे रिपोर्ट करते थे और ईरान की मिसाइल नीति के मास्टरमाइंड थे। साथ ही, छह परमाणु विज्ञानी—जिनमें फेरेदौन अब्बासी और मोहम्मद मेहदी तेहरांची शामिल थे—की टारगेटेड हत्या ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गहरा झटका दिया। ये परमाणु विज्ञानी ईरान को परमाणु हथियार संपन्न बनाने की दिशा में तेज़ी से काम कर रहे थे। 2007 से अब तक मोसाद ने 13 ईरानी परमाणु विज्ञानियों को मार गिराया है, क्योंकि परमाणु हथियारों से लैस इसराइल को लगता है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है।
मोसाद की सबसे बड़ी उपलब्धि थी ईरान के अंदर घुसपैठ। कुछ स्रोतों का दावा है कि मोसाद ने तेहरान में एक चार मंज़िला ड्रोन फैक्ट्री बनाई, जो एक साल तक चली, और ईरान को भनक तक नहीं लगी। इन ड्रोनों ने नतांज़ में 15,000 सेंट्रीफ्यूज नष्ट किए, जो यूरेनियम संवर्धन के लिए ज़रूरी हैं। करमानशाह और तबरीज़ के मिसाइल बेस भी तबाह हो गए। नतीजे में ईरान की परमाणु सुविधाएँ ध्वस्त हुईं, सैन्य नेतृत्व कमज़ोर हुआ, और हवाई रक्षा प्रणाली बेकार हो गई। ईरान ने जवाबी हमले किए, लेकिन शुरुआती नुकसान ने उसे बैकफुट पर ला दिया।
मोसाद क्या है?
मोसाद का पूरा नाम हामोसाद लमोदीइन उलटफकिदिम मेयुहदिम है। यह इसराइल की जासूसी एजेंसी है। इसका गठन 13 दिसंबर, 1949 को इसराइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन ने किया। इसका मकसद था इसराइल को अरब देशों और वैश्विक खतरों से बचाना। मोसाद सीधे इसराइल के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है, और इसका मुख्यालय तेल अवीव में है। अनुमान है कि इसमें करीब 7,000 कर्मचारी काम करते हैं।
1950 के दशक में इसराइल की खुफिया सेवाएँ ब्रिटिश मॉडल पर आधारित थीं, लेकिन 1951 में इन्हें अमेरिकी तर्ज पर पुनर्गठित किया गया। मोसाद के पहले निदेशक रूवेन शिलोआ ने अमेरिका की CIA के साथ गहरे संबंध बनाए। दोनों ने कई संयुक्त ऑपरेशन्स किए, जैसे शाह के दौर में ईरान की सावाक (खुफिया पुलिस) को प्रशिक्षण देना। हालाँकि, मोसाद CIA के लिए काम नहीं करता; इसके ऑपरेशन्स इसराइल के हितों के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं।
मोसाद की कार्यप्रणाली
मोसाद में चार प्रमुख विभाग हैं। कलेक्शन्स डिपार्टमेंट जासूसी करता है, और इसके एजेंट्स दूतावासों या फर्जी पहचान के साथ काम करते हैं। टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट साइबर हमले और ड्रोन जैसी तकनीक विकसित करता है। पॉलिटिकल एक्शन डिपार्टमेंट गुप्त कूटनीति संभालता है, और किदोन यूनिट हत्याएँ और खतरनाक मिशन करती है। मोसाद की ताकत इसका मानव खुफिया (HUMINT), सिग्नल खुफिया (SIGINT), और साइबर युद्ध में है। यह उन देशों में भी सक्रिय है, जहाँ इसराइल के कोई कूटनीतिक संबंध नहीं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में मोसाद का एक एजेंट ईरान की खुफिया यूनिट का प्रमुख बन गया था, जो इसकी घुसपैठ की गहराई को दर्शाता है।
मोसाद के ऐतिहासिक ऑपरेशन
मोसाद के कई ऑपरेशन्स ने विश्व इतिहास को प्रभावित किया है। कुछ प्रमुख ऑपरेशन्स इस प्रकार हैं:
- एडॉल्फ Eichmann की गिरफ्तारी (1960): होलोकॉस्ट के नाज़ी अपराधी एडॉल्फ Eichmann, जिसने छह मिलियन यहूदियों के नरसंहार में अहम भूमिका निभाई, को मोसाद ने अर्जेंटीना से पकड़ा। 1962 में उसे इसराइल में फाँसी दी गई। यह ऑपरेशन मोसाद की वैश्विक ताकत का प्रतीक बना।
- ऑपरेशन डायमंड (1966): मोसाद ने एक इराकी पायलट को लालच देकर सोवियत MiG-21 विमान इसराइल लाया, जिससे पश्चिमी देशों को सोवियत सैन्य तकनीक की जानकारी मिली।
- ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड (1972-1980): 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में 11 इसराइली एथलीटों की हत्या के बाद मोसाद ने ब्लैक सितंबर के आतंकियों को पेरिस, बेरूत, और अन्य जगहों पर मार गिराया।
- ऑपरेशन मोसेस (1984): मोसाद ने सूडान में एक रिसॉर्ट को कवर बनाकर हजारों इथियोपियाई यहूदियों को इसराइल पहुँचाया। यह इसका मानवीय मिशन था।
- न्यूक्लियर आर्काइव चोरी (2018): मोसाद ने तेहरान से आधा टन परमाणु दस्तावेज़ चुराए, जिसने ईरान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम को उजागर किया।
- मोहसन फखरीज़ादे की हत्या (2020): ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक फखरीज़ादे की सैटेलाइट-नियंत्रित रिमोट मशीन गन से हत्या मोसाद का हाई-टेक ऑपरेशन था।
मोसाद की ख़तरनाक छवि
मोसाद को दुनिया की सबसे खतरनाक जासूसी एजेंसी माना जाता है और इसके कई कारण हैं। पहला, इसकी सर्जिकल सटीकता—चाहे फखरीज़ादे की हत्या हो या नतांज़ में विस्फोट। दूसरा, इसका वैश्विक नेटवर्क, जो ईरान जैसे दुश्मन देशों में भी सक्रिय है। कुछ स्रोतों के अनुसार, मोसाद के पास ईरान में आधा दर्जन गुप्त सेल हैं। तीसरा, इसकी तकनीकी श्रेष्ठता—स्टक्सनेट वायरस से लेकर रिमोट ड्रोनों तक, मोसाद साइबर युद्ध में माहिर है। चौथा, इसकी अदृश्यता। मोसाद अपने ऑपरेशन को इतना छिपाकर करता है कि सच्चाई अक्सर दशकों बाद सामने आती है। मौजूदा युद्ध में ईरान के अंदर से ड्रोन हमले इस बात का सबूत हैं कि मोसाद लंबे समय से ईरान में अपना जाल बिछा रहा था।
मोसाद: शांति को खतरा?
मोसाद ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य ताकत को गहरी चोट पहुँचाई है। लेकिन इसका असर मिडिल ईस्ट की शांति पर क्या होगा? ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस’ के तहत तेल अवीव पर सैकड़ों मिसाइलें दागीं, जिससे तनाव चरम पर है।
मोसाद को एक “किलिंग मशीन” कहा जाता है, जो इसराइल की ख़ूनी प्यास बुझाती है। लेकिन यह सिर्फ मोसाद की कहानी नहीं है। CIA, KGB, और अन्य जासूसी एजेंसियाँ भी दुश्मन देशों में तख्तापलट और हत्याएँ कराती रही हैं। जब तक ये खूनी मशीनें चलती रहेंगी, मानवता शांति की साँस नहीं ले सकती। शांति और मानवता जैसे शब्द इन किलिंग मशीनों को चलाने वालों के लिए बेमानी हैं।
मोसाद की रहस्यमयी दुनिया ने इसराइल को काफ़ी ताकतवर बनाया है लेकिन इसने मिडिल ईस्ट को युद्ध की आग में भी झोंका। सवाल यह है कि क्या यह तनाव शांति की ओर ले जाएगा, या विश्व युद्ध की ओर? इतिहास इसका जवाब देगा। लेकिन एक बात साफ है— मोसाद जो भी हो, इज़रायल की योजना का हिस्सा ही है। जब तक इज़रायल की सरकार वैश्विक नियमों और अंतरराष्ट्रीय संधियों को मानने की राह पर नहीं चलता, मोसाद का ख़ूनी खेल यूँ ही जारी रहेगा।