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    Home » संकट से जूझती खरगोन की जीनिंग इंडस्ट्री, कैसे बनेगा मप्र टैक्सटाइल हब
    ग्राउंड रिपोर्ट

    संकट से जूझती खरगोन की जीनिंग इंडस्ट्री, कैसे बनेगा मप्र टैक्सटाइल हब

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 4, 2025No Comments11 Mins Read
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    मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 27-28 फरवरी को आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर समिट (GIS) से पहले मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश टेक्सटाइल और परिधान उद्योग (garment industry) के क्षेत्र में अपार संभावनाओं वाला राज्य बन चुका है। डॉ यादव ने कहा

    “सरकार उद्योगों को बिजली और पानी न्यूनतम दरों पर उपलब्ध करा रही है। साथ ही, जीएसटी में छूट, टैक्स रिबेट और अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से निवेशकों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने विशेष रूप से कस्टमाइज्ड इन्सेंटिव पैकेज भी तैयार किया है, जो उद्योगों को उनकी निवेश आवश्यकताओं के अनुसार वित्तीय सहायता प्रदान करता है।”

    मध्य प्रदेश में टेक्सटाइल और गारमेंट इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए धार जिले में पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल पार्क (PM MITRA) भी बनाया जा रहा है। जीआईएस में मुख्यमंत्री ने लगातार इसको हाईलाइट करते हुए प्रदेश में टेक्सटाइल इंडस्ट्री को निवेश करने के लिए आमंत्रित किया।

    इस पार्क से लगभग 188 किमी दूर स्थित खरगोन जिला प्रदेश में सबसे ज़्यादा कपास उत्पादन के लिए जाना जाता है। यही उत्पादन यहां मौजूद जीनिंग मिलों के व्यापार का आधार है। 

    दरअसल जीनिंग मिलों में कपास (cotton boll) से रेशा (cotton lint) और बीज (seed) अलग किया जाता है। फिर उसकी नमी नियंत्रित करके उसकी गठाने (cotton bales) बनाई जाती हैं। यह गठाने आगे धागा और कपड़ा फैक्ट्री को भेजी जाती हैं। 

    Ginning mills in khargone
    मुख्यमंत्री जिस टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं उसका कच्चा माल खरगोन की इन्हीं जीनिंग मिलों से जाता है। Photograph: (Shishir Agrawal/Ground Report)

    यानि आसान भाषा में कहें तो मुख्यमंत्री जिस टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं उसका कच्चा माल खरगोन की इन्हीं जीनिंग मिलों से जाता है। मगर अपने चाचा के साथ मिलकर जीनिंग मिल चलाने वाले संदीप जायसवाल सरकार से बेहद नाराज़ नज़र आते हैं। वह हमसे अपनी समस्या बताते हुए कहते हैं,

    “हम अपने घर में ही किराएदार बनकर रह गए हैं, सारा कपास सीसीआई खरीद रही है, कपास के रेट बढ़ रहे हैं, ऐसे ही रहा तो हमें अपना व्यापार बंद करना पड़ेगा।”

    जायसवाल की शिकायत है कि सरकार जहां एक ओर हर साल कपास पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ा रही है वहीं दूसरी ओर भारतीय कपास निगम लिमिटेड (CCI) द्वारा ज़्यादातर माल खरीद लिय जा रहा है। इससे उनके पास कच्चा खरीदने के मौके कम हो गए हैं। यानि जायसवाल के अनुसार खरगोन के कपास जिनिंग व्यापारी दोहरी दिक्कत का सामना कर रहे हैं। एक ओर कच्चे माल की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है वहीं दूसरी ओर व्यापारियों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता कम होती जा रही है। 

    इसका असर ये हुआ है कि निमाड़ क्षेत्र में कपास जीनिंग मिलें बंद हो रही हैं। इसका असर सिर्फ व्यापारियों तक सीमित नहीं है बल्कि यहां काम करने वाले आदिवासी मज़दूर भी इससे प्रभावित होते हैं। 

    खरगोन में कपास का उत्पादन और एमएसपी

    कपास देश और मध्य प्रदेश दोनों के लिए ही एक प्रमुख नगदी फसल है। मध्य प्रदेश में देश का 43% और दुनिया का 24% कपास होता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार वित्तवर्ष 2023-24 में प्रदेश में 630 हज़ार हेक्टेयर में 873 हज़ार मीट्रिक टन कपास का उत्पादन हुआ है। हालांकि यह साल 2022-23 में हुए 890 हज़ार मीट्रिक टन की तुलना में कम है।

    खरगोन मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में आता है। यह क्षेत्र कपास के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। पूरे प्रदेश में कपास उत्पादन के मामले में खरगोन अग्रणी ज़िला है। 2022-23 में इस जिले में 2,52,953 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है। जिले के किसानों की इस फसल पर निर्भरता कितनी है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि खरगोन में कुल 405.668 हजार हेक्टेयर सिंचित क्षेत्रफल है। इसमें से सबसे ज़्यादा 211.450 हज़ार हेक्टेयर में कपास की ही खेती होती है। 

    यानि खरीफ के सीजन के दौरान व्यापारी और किसान दोनों के लिए ही इस फसल की खरीद-बिक्री सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। दोनों ही वर्ग के लिए यह उनकी वार्षिक कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा है। 

    ऐसे में जीनिंग व्यापारियों के एक वर्ग का कहना है कि या तो सरकार हर साल एमएसपी बढ़ाने एवं सीसीआई के ज़रिए कपास खरीदने पर कोई प्रावधान लेकर आए या फिर जीनिंग इंडस्ट्री को सब्सिडी देने जैसे विकल्पों पर विचार करे।

    Khargone cotton industry
    खरगोन की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार कपास ही है। यह व्यापारियों और किसानों दोनों के लिए ही सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण फसल है। Photograph: (Pallav Jain/Ground Report)

    लगभग 40 साल से कॉटन जीनिंग का व्यापार कर रहे मंजीत चावला मध्यांचल कॉटन जिनर्स एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वह कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कॉटन का रेट कम है जबकि भारत में यह ज़्यादा है। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय व्यापारी पिछड़ रहे हैं।

    फेडरेशन ऑफ़ मध्य प्रदेश चेम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FMPCCI) के प्रदेश उपाध्यक्ष कैलाश अग्रवाल इसे समझाते हैं,

    “भारत की टैक्सटाइल इंडस्ट्री को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में धागा और कपड़ा बना के बेचना है। अगर टैक्सटाइल इंडस्ट्री को रॉ मटेरियल महंगा मिलेगा तो वह अपना उत्पाद भी महंगे में बेचेगा। जबकि ब्राजील जैसे देश कम कीमत पर माल बेच रहे होंगे ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारत के व्यापारियों से माल खरीदने वाले लोग कम हो जाते हैं।”

    वह शिकायत करते हुए कहते हैं कि सरकार किसानों को वोट बैंक के लिए एमएसपी तो देती है मगर व्यापारियों को कोई सब्सिडी नहीं देती। ऊपर से सीसीआई द्वारा अच्छा माल एमएसपी पर खरीद लिया जाता है यानि व्यापारियों के पास आने वाला माल भी अच्छी गुणवत्ता का नहीं होता। 

    गौरतलब है कि 2017 से 2022 के बीच कपास का आयत बढ़ा है वहीं निर्यात घटा है। 2017-18 में 15.80 लाख गठान (bales) कपास का आयात किया गया था जो 2021-22 में 21.13 लाख गठान तक पहुंच गया था। वहीं 2017 में भारत से 67.9 लाख गठान कपास का निर्यात किया गया था जो 2021-22 में 42.25 लाख गठान हो गया।

     

    वहीं चावला कहते हैं कि सीसीआई द्वारा कपास खरीदने से ऐसे व्यापारी जो सीसीआई के साथ संबद्ध (tie-up) नहीं हैं उन्हें कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है। इससे वह अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पा रहे हैं. इस बात को संदीप भी दोहराते हैं। वो कहते हैं,

    “पिछले साल हमारे पास जितना रॉ मटेरियल था इस साल उसका 50% ही खरीद पाए हैं। सारा माल सीसीआई के पास चला गया है।”

    गौरतलब है कि खरीफ़ सीजन 2024-25 में कपास के लिए सीसीआई ने 21 खरीद केंद्र स्थापित किए हैं। 12 मार्च तक सीसीआई ने मध्य प्रदेश में 19.35 लाख क्विंटल कपास की खरीद कर ली थी। सीसीआई द्वारा खरीदा गया कपास भण्डारण केन्द्रों में स्टोर करके रखा जाता है। इसका कुछ हिस्सा विदेश में निर्यात किया जाता है वहीं ज़्यादातर हिस्सा स्पिनिंग और टेक्सटाइल मिलों को ज़रूरत के अनुसार दिया जाता है। अनाज की ही तरह यह देश में कपास की उपलब्धता और रेट को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।    

    मगर संदीप कहते हैं कि सीसीआई द्वारा ज़्यादातर माल खरीद लेने के कारण उन्हें कच्चे माल की कमी हो जाती है। वह कहते हैं कि अगर व्यापारियों की मिल में कच्चा माल कम होगा तो उनका उत्पादन भी कम होगा। इससे आमदनी पर नकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे में व्यापारी शुरुआत में कॉस्ट कटिंग करेगा फिर जब घाटा ज़्यादा लगेगा तो उसे जीनिंग इंडस्ट्री बंद करनी पड़ेगी।

    गौरतलब है कि पूरे प्रदेश में तकरीबन 200 जीनिंग फैक्ट्रियां हैं इनमें से आधी से अधिक फैक्ट्रियां निमाड़ क्षेत्र में हैं। मगर संदीप कहते हैं कि खरगोन में 2010 तक 25 फैक्ट्रियां हुआ करती थीं वहीं अब इनकी संख्या 10 से 12 ही बची है। संदीप इनके बंद होने के पीछे बढ़ती हुई लागत को मानते हैं।

    Kailash Agrawal Khargone
    कैलाश अग्रवाल कहते हैं कि फैक्ट्रियों के बंद होने के कई कारण हैं, इनमें से एक मंडी टैक्स भी है।  Photograph: (Pallav Jain/Ground Report)

    व्यापारियों को महंगा पड़ रहा मंडी टैक्स

    हालांकि कैलाश अग्रवाल कहते हैं कि खरगोन में जिनिंग फैक्ट्रियों के बंद होने के लिए एमएसपी को ज़िम्मेदार ठहराना न्यायसंगत नहीं है। उनके अनुसार इसके लिए फैक्ट्री मालिकों द्वारा लिए गए गलत वित्तीय निर्णय, घाटा और अन्य वित्तीय अनियमितताएं ज़िम्मेदार हैं। वह आगे जोर देकर बोलते हैं,

    “मगर इन सब में कपास पर लगने वाला मंडी टैक्स भी एक कारण है।” 

    दरअसल मध्य प्रदेश में कपास की खरीद पर 1 प्रतिशत मंडी टैक्स लगता है। इसके अलावा 0.2 प्रतिशत शरणार्थी टैक्स (निराश्रित शुल्क) लगाया जाता है। यह टैक्स 1971 में बांग्लादेश से भारत आने वाले शरणार्थियों को मदद करने के लिए लगाया गया था। मगर यह अब भी जारी है. 

    अब टैक्स के इस गणित को ऐसे समझें कि वर्तमान एमएसपी के हिसाब से एक क्विंटल कपास का मूल्य 7121 रु है। ऐसे में कोई व्यापारी अगर एक क्विंटल कपास खरीदेगा तो उसे 1.2% की दर से 85.45 रुपए मंडी टैक्स देना पड़ेगा। 

    जबकि यही टैक्स खरगोन से लगे हुए राज्य महाराष्ट्र में केवल 25 पैसे है. इस तरह इतने ही कपास की खरीद पर वहां एक व्यापारी को केवल 28.48 रूपए देने पड़ेंगे। यानि व्यापारी को कच्चा माल महाराष्ट्र के मुकाबले महंगे में ही खरीदना पड़ेगा। मगर इसका असर सिर्फ इतना सीमित नहीं है।

    Cotton bales
    जीनिंग मिल में बनी हुई यह गठानें ही धागा फैक्ट्रियों को कच्चे माल के तौर पर दी जाती हैं। Photograph: (Pallav Jain/Ground Report)

    दरअसल जीनिंग मिल में बनी हुई गठानें धागा फैक्ट्रियों को कच्चे माल के तौर पर दी जाती हैं। कैलाश अग्रवाल बताते हैं कि चूंकि मध्य प्रदेश देश के बीच में है इसलिए यहां का माल महाराष्ट्र और दक्षिण भारत जाता है। इन्हीं जगहों पर स्थानीय उत्पादनकर्ता भी होते हैं और अन्य प्रदेशों के जिनिंग व्यापारी भी अपना माल बेचते हैं। ऐसे में चूंकि अन्य प्रदेश में कपास सस्ता है इसलिए वहां के व्यापारी मध्य प्रदेश के व्यापारियों से सस्ता माल बेचते हैं। यानि मध्य प्रदेश का व्यापारी यहां भी पीछे ही रह जाता है।  

    गौरतलब है कि साल 2023 में इस मंडी टैक्स के खिलाफ मध्य प्रदेश के व्यापारियों ने हड़ताल भी की थी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस टैक्स को 0.5% कर दिया था। मगर टैक्स में यह छूट 30 जून 2024 तक ही थी। ऐसे में अब वापस व्यापारियों को 1% मंडी टैक्स और 0.2% निराश्रित शुल्क देना पड़ रहा है। 

    खरगोन के व्यापारी कहते हैं कि प्रदेश में बिजली के दाम भी अन्य प्रदेशों की तुलना में ज़्यादा हैं। ऐसे में उन पर चौतरफा दबाव पड़ रहा है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश ने हाल ही में व्यावसायिक उपयोग में आने वाली बिजली की दर 7 रु से बढ़ाकर 7.50 रु कर दी है। 

    खरगोन की इन जीनिंग मिलों में काम करने वाले ज़्यादातर लोग आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। अधिकतर लोग भूमिहीन हैं ऐसे में उनके लिए जीनिंग मिलों में काम करना ही स्थाई रोज़गार है। व्यापारियों का मानना है कि जीनिंग मिलों के बंद होने से सबसे बुरा असर इन मज़दूरों पर ही पड़ेगा, वह बेरोजगार हो जाएंगे। साथ ही अगर प्रदेश में कपास का बाज़ार ख़त्म होगा तो छोटे किसानों को अपना माल बेचने के लिए महाराष्ट्र जाना पड़ेगा। यह उनके लिए महंगा सौदा होगा।

    ऐसे में खरगोन के व्यापारी कहते हैं कि भले ही सरकार ग्लोबल इन्वेस्टर समिट में बड़े व्यापारियों को आकर्षित करने के लिए प्रयास कर रही है मगर सरकार का घरेलू व्यापारियों पर कोई ध्यान नहीं है। सरकार का सारा ध्यान बाहरी बड़ी कंपनियों के कारखाने खुलवाने, उन्हें आसानी से लोन और ज़मीन दिलवाने और बड़े-बड़े इंडस्ट्रियल एरिया बनाने में है। व्यापारियों के अनुसार सरकार को प्रदेश के कुटीर, मध्यम एवं लघु उद्योगों (MSME) को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। उनके अनुसार सरकार को देखना होगा कि यह व्यापार बंद न हों वर्ना ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा।

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