रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि मॉस्को अमेरिका के संघर्षविराम प्रस्ताव से सहमत है, लेकिन उसकी एक शर्त है। पुतिन ने जोर देकर कहा कि किसी भी संघर्षविराम का मक़सद स्थायी शांति होना चाहिए और यह यूक्रेन संकट के मूल कारणों को दूर करने वाला होना चाहिए। बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ क्रेमलिन में बातचीत के बाद पत्रकारों से बात करते हुए पुतिन ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति साफ़ की।
पुतिन ने संघर्षविराम के व्यावहारिक पहलुओं पर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा, ‘क्या इसका मतलब यह होगा कि वहां मौजूद सभी यूक्रेनी सैनिक चले जाएंगे क्या हम उन्हें छोड़ दें, जबकि उन्होंने वहां नागरिकों के ख़िलाफ़ कई अपराध किए हैं, या यूक्रेनी नेतृत्व उन्हें आत्मसमर्पण करने का आदेश देगा’ इसके साथ ही, उन्होंने 2000 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा पर कथित यूक्रेनी घुसपैठ और इसके बड़े पैमाने पर प्रभावों पर भी चिंता जताई।
पुतिन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में ठहराव यूक्रेन को फिर से हथियार जुटाने और अपनी सेना को मज़बूत करने का मौका दे सकता है। उन्होंने कहा, ‘क्या यह यूक्रेन को जबरन भर्ती जारी रखने, हथियारों की आपूर्ति करने और नई इकाइयों को प्रशिक्षित करने की अनुमति देगा, या यह नहीं होगा’ उनका यह बयान रूस की उस चिंता को दिखाता है कि संघर्षविराम का लाभ यूक्रेन और उसके पश्चिमी समर्थकों को मिल सकता है।
पुतिन ने शांतिपूर्ण तरीक़े से संघर्ष को ख़त्म करने के विचार का समर्थन किया, लेकिन साथ ही अमेरिकी अधिकारियों के साथ आगे की चर्चा और संभवतः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत की ज़रूरत पर बल दिया। इससे पहले, क्रेमलिन के सहायक यूरी उशाकोव ने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से कहा था कि मॉस्को 30 दिनों के संघर्षविराम को ‘यूक्रेनी सेनाओं के लिए एक छोटी राहत’ से ज़्यादा कुछ नहीं मानता। उशाकोव ने रूस के सरकारी टेलीविजन को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘ऐसे कदम जो केवल शांतिपूर्ण कार्रवाइयों की नकल करते हों, इस स्थिति में किसी के लिए ज़रूरी नहीं हैं।’
पुतिन संघर्षविराम नहीं चाहते: ज़ेलेंस्की
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने गुरुवार को अपने शाम के संबोधन में कहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक संघर्षविराम प्रस्ताव को खारिज करने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन वह इसे सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कहने से डरते हैं।
जेलेंस्की ने दावा किया कि रूस संघर्षविराम पर ऐसी शर्तें थोप रहा है, जिससे या तो इसे टाला जा सके या यह पूरी तरह लागू ही न हो।
जेलेंस्की के अनुसार, मॉस्को ऐसी शर्तें रख रहा है ताकि संघर्षविराम या तो न हो, या जितना संभव हो उतना विलंब हो। उनका मानना है कि एक संघर्षविराम लंबी अवधि की सुरक्षा और वास्तविक, भरोसेमंद शांति से संबंधित सभी सवालों के जवाब तैयार करने के लिए और युद्ध को खत्म करने की योजना को मेज पर लाने के लिए समय देगा।
ज़ेलेंस्की का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पुतिन ने अमेरिकी संघर्षविराम प्रस्ताव पर सशर्त सहमति जताई थी, लेकिन उनकी शर्तों को यूक्रेन और पश्चिमी देशों के लिए अस्वीकार्य माना जा रहा है। जेलेंस्की का यह आरोप पुतिन की मंशा पर सवाल उठाता है और रूस की कूटनीति को संदेह के घेरे में लाता है।
बहरहाल, पुतिन के बयान और उशाकोव की टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि रूस अमेरिका समर्थित संघर्षविराम योजना को मौजूदा स्वरूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, भले ही यूक्रेन ने इसे सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया हो। रूस का मानना है कि यह योजना उसके हितों को पूरी नहीं करती। पुतिन का ‘स्थायी शांति’ और ‘मूल कारणों को हल करने’ पर जोर देना इस बात की ओर इशारा करता है कि मॉस्को अपनी शर्तों पर ही समझौता चाहता है, जिसमें यूक्रेन के नाटो से दूरी और रूसी-नियंत्रित क्षेत्रों पर उसका दावा शामिल हो सकता है।
पुतिन का यह बयान कूटनीतिक रणनीति और सैन्य दबाव के लिए दिया गया लगता है।
एक ओर, पुतिन शांति की बात करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने सकारात्मक छवि पेश करना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी शर्तें और सवाल यह दिखाते हैं कि रूस यूक्रेन और पश्चिमी देशों पर दबाव बनाए रखना चाहता है।
यह भी संभव है कि मॉस्को अमेरिका के नए प्रशासन के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा हो, खासकर ट्रंप के साथ बातचीत का ज़िक्र करके।
हालांकि, रूस की यह सशर्त सहमति संघर्षविराम की राह को और जटिल बना सकती है। अगर दोनों पक्ष अपनी-अपनी शर्तों पर अड़े रहे, तो यह प्रस्ताव कागजी बातों तक सीमित रह सकता है। कुल मिलाकर, पुतिन का यह बयान शांति की संभावना से ज़्यादा एक रणनीतिक चाल नज़र आता है, जिसका मक़सद यूक्रेन और उसके समर्थकों को कमजोर करना और रूस की स्थिति को मज़बूत करना है।
यूक्रेन संकट का समाधान अभी दूर की कौड़ी लगता है। पुतिन के ताज़ा बयान से यह साफ़ है कि रूस बिना अपनी मांगें पूरी किए पीछे हटने को तैयार नहीं है। अब गेंद अमेरिका और यूक्रेन के पाले में है कि वे इस प्रस्ताव को कैसे आगे बढ़ाते हैं।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)