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    Home » सावरकर के घोर विरोधी आंबेडकर को शाह कैसे पसंद कर सकते हैं?
    भारत

    सावरकर के घोर विरोधी आंबेडकर को शाह कैसे पसंद कर सकते हैं?

    By December 18, 2024No Comments5 Mins Read
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    अमित शाह ने कल संसद में डॉक्टर आंबेडकर का अपमान किया और उनके नाम का मज़ाक उड़ाया। यह सिर्फ़ ऐसे ही नहीं हो गया, असल में इस तस्वीर (ऊपर) को आप ग़ौर से देखें तो अमित शाह के सिर पर विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर है। अमित शाह सावरकर के रास्ते पर चलना चाहते हैं। और डॉक्टर आंबेडकर ने सावरकर की घनघोर आलोचना और निंदा की है।

    जो आदमी सावरकर को पसंद नहीं करता हो उसे अमित शाह कैसे पसंद कर सकते हैं

    डॉक्टर आंबेडकर सावरकर के हिंदुत्व के विचार के घोर विरोधी थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि सावरकर और ज़िन्ना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सावरकर हिंदू राष्ट्र की माँग करके अपने आप एक पाकिस्तान बनाने का रास्ता खोल रहे हैं। सावरकर ने जानबूझकर भारतीयता की ऐसी परिभाषा गढ़ी है जिससे मुसलमान और ईसाई इससे बाहर हो जाएं। डॉक्टर आंबेडकर का स्पष्ट कहना था कि अगर देश में हिन्दू राज लागू हो गया तो देश पर बहुत बड़ा ख़तरा आ जाएगा।

    इसलिए अमित शाह जो कह रहे हैं वह सिर्फ़ एक घटना नहीं बल्कि आरएसएस, जनसंघ और भाजपा की असली विचारधारा और मानसिकता है जो डॉक्टर आंबेडकर के ख़िलाफ़ है।

    मैंने अपनी किताब गांधी, सियासत और सांप्रदायिकता में इस विषय पर कई अध्याय लिखे हैं और डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की किताब पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन में भी यह बात लिखी गई है। नीचे उद्धरण दिए गए हैं।

    डॉक्टर आंबेडकर ने मोहम्मद अली जिन्ना और सावरकर के दो राष्ट्र के सिद्धांत की आलोचना की।

    डॉक्टर आंबेडकर लिखते हैं,

    “यह बात सुनने में भले ही विचित्र लगे, पर एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के प्रश्न पर श्री सावरकर और श्री जिन्ना के विचार परस्पर विरोधी होने के बजाय एक दूसरे से पूरी तरह मेल खाते हैं। दोनों ही इस बात को स्वीकार करते हैं और न केवल स्वीकार करते हैं, बल्कि इस बात पर जोर देते हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैं। एक मुस्लिम राष्ट्र और एक हिंदू राष्ट्र। उनमें मतभेद केवल इस बात पर है कि इन दोनों राष्ट्रों को किन शर्तों पर एक दूसरे के साथ रहना चाहिए।” – पेज- 154-55

    डॉक्टर आंबेडकर लिखते हैं,

    “अगर वास्तव में हिंदू राज बन जाता है तो निस्संदेह इस देश के लिए एक भारी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। हिंदू कुछ भी कहें पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए एक ख़तरा है।” -पेज-161

    आंबेडकर सावरकर को क्यों मानते थे भारत विभाजन का गुनहगार

    भारत विभाजन को लेकर अक्सर 1945 से लेकर 1947 तक की घटनाओं का जिक्र होता है। उनमें गांधी, नेहरू, जिन्ना की भूमिकाओं की चर्चा होती है। लेकिन डॉ. आंबेडकर ने 1940 में लिखी किताब ”पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन” में यह स्थापना दी थी कि पाकिस्तान बनकर रहेगा और ऐसा ही श्रेयस्कर है।

    इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत के वास्तविक विभाजन से 7 साल पहले और भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के 2 साल पहले डॉ. आंबेडकर तथ्यों का विवेचन करके पाकिस्तान को भविष्य की सच्चाई मान रहे थे। उन्हें इसके सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं दिखाई दे रहा था।

    डॉ. आंबेडकर ने इस पुस्तक में महात्मा गांधी को ऐसा व्यक्ति बताया जिसने अपना पूरा जीवन हिंदू मुस्लिम एकता के लिए समर्पित किया। लेकिन इतना करने के बाद भी वह हिंदू मुस्लिम एकता हासिल नहीं कर सके जो कि अखंड भारत के लिए ज़रूरी है।

    डॉ. आंबेडकर ने कहा कि सावरकर के हिंदू राष्ट्र के सिद्धांत में ही एक पाकिस्तान छुपे होने की बात स्थापित है। आंबेडकर ने कहा कि जब सावरकर हिंदुओं को एक अलग राष्ट्र मान रहे हैं तो स्वाभाविक रूप से यह मुसलमानों को दूसरा राष्ट्र मान रहे हैं।

    डॉ. आंबेडकर ने कहा कि इस तरह से एक-दूसरे से परस्पर विरोधी ध्रुवों पर होते हुए भी सावरकर और जिन्ना के विचार बिल्कुल एक से हैं। उन्होंने कहा कि सावरकर ने जानबूझकर हिंदुत्व की ऐसी परिभाषा गढ़ी जो मुसलमानों को भारतीयता से बाहर निकाल देती है।

    अखंड भारत के सपने के लिए सबसे ज़रूरी बात यह थी कि हिंदू और मुसलमान में प्रेम हो। लेकिन जिन्ना और सावरकर अपने अपने धर्म का राष्ट्र बनाने की बात कर रहे थे। उसमें प्रेम की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। हिंदू मुस्लिम एकता के बिना अखंड भारत की कल्पना करना सफेद झूठ था।

    आज भी जो लोग अखंड भारत की कल्पना करते हैं, लेकिन ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आपस में सब भाई भाई’ को स्वीकार नहीं करते, वह असल में भारत को अखंड नहीं बल्कि खंडित करना चाहते हैं। भारत-पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका यह सब तभी एक हो सकते हैं, जब वहां रहने वाले नागरिकों के बीच प्रेम हो। 

    लेकिन अखंड भारत का राग अलापने वाले प्रेम की जगह नफरत की खेती करते हैं। इसीलिए वह एकता के नाम पर अलगाव को बढ़ावा देते हैं। यही लोग आज गांधी जी को विभाजन का जिम्मेदार ठहराते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इन्हीं की सांप्रदायिक नीतियों के कारण भारत का विभाजन हुआ।

    (पीयूष बाबेल के फ़ेसबुक पेजों से साभार)

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