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    Home » सुप्रीम कोर्ट ईडी मामलों में जमानत का पक्षधर, तो नया फ़ैसला इसके उलट क्यों?
    भारत

    सुप्रीम कोर्ट ईडी मामलों में जमानत का पक्षधर, तो नया फ़ैसला इसके उलट क्यों?

    By February 14, 2025No Comments7 Mins Read
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    ईडी मामलों में जमानत के नियम आसान हों या फिर सख़्त सुप्रीम कोर्ट आख़िर क्या चाहता है हाल में सुप्रीम कोर्ट बार-बार इस पर जोर देता रहा है कि ‘बेल नियम है, जेल अपवाद’। यह हाईकोर्ट से लेकर निचली अदालतों तक को यही संदेश देता रहा है। लेकिन इसी सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने ठीक इसके उलट फ़ैसला सुनाया है। ईडी से जुड़े एक मामले में पटना हाईकोर्ट द्वारा ‘बेल नियम है, जेल अपवाद’ के आधार पर दी गई जमानत को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने रद्द कर दिया और आरोपी को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दे दिया। 

    ईडी मामलों में जमानत के नियम को आसान बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट हाल में क्या कहता रहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर ताज़ा मामला क्या है और सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने क्या कहा है। सुप्रीम कोर्ट की यह बेंच जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की है। उन्होंने गुरुवार को उच्च न्यायालय के आदेश को लापरवाहीपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि बिहार में कथित अवैध रेत खनन के मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए जदयू एमएलसी राधा चरण साह के बेटे कन्हैया प्रसाद को जमानत देने में अदालत ने ग़लती की है, क्योंकि धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए के तहत जमानत हासिल करने के लिए कठोर शर्तें पूरी नहीं की गई थीं।

    हाईकोर्ट ने पिछले साल मई में प्रसाद को इस आधार पर जमानत दी थी कि उन्हें गवाही देनी पड़ी थी, पीएमएलए के तहत जमानत के कठोर प्रावधानों का उद्देश्य जमानत देने पर पूरी तरह रोक लगाना नहीं था, और यह कि विवेक न्यायालय के पास है। इसने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘जेल एक अपवाद है और जमानत एक नियम है’।

    आरोपी को बाद में जेल से रिहा कर दिया गया, जबकि ईडी ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब जमानत रद्द करने की ईडी की याचिका को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि आरोपी को एक सप्ताह के भीतर विशेष अदालत के सामने आत्मसमर्पण करना होगा।

    जस्टिस त्रिवेदी का यह फ़ैसला तब आया है जब इनसे एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को यह कहते हुए फटकार लगाई थी कि लोगों को जेल में रखने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए का बार-बार दुरुपयोग हो रहा है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुईयां की पीठ ने सवाल कर दिया कि क्या दहेज कानून की तरह इस प्रावधान का भी ‘दुरुपयोग’ किया जा रहा है 

    पीठ ने पूछा था, 

    “

    पीएमएलए की अवधारणा यह नहीं हो सकती कि व्यक्ति को जेल में रहना चाहिए। यदि संज्ञान रद्द होने के बाद भी व्यक्ति को जेल में रखने की प्रवृत्ति है, तो क्या कहा जा सकता है देखिए 498ए (दहेज उत्पीड़न) मामलों में क्या हुआ, पीएमएलए का भी इसी तरह दुरुपयोग किया जा रहा है


    जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस उज्ज्वल भुईयां की पीठ

    हाल के दिनों में ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के कई आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने जेल में लंबे समय तक रहने, मुकदमे में देरी, प्रक्रियागत खामियों और जमानत के सामान्य सिद्धांत के आधार पर जमानत दी है।

    इस मामले में पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसला सुनाया था। तब अदालत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीएमएलए मामले में भी जमानत का नियम है और जेल अपवाद है। अदालत का यह फ़ैसला तब आया था जब ईडी पीएमएलए मामले में आरोपियों को पूछताछ के नाम पर काफी लंबे समय तक हिरासत में रख रही है। 

    तब जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा था कि जमानत के लिए दोहरी शर्तें निर्धारित करने वाली अधिनियम की धारा 45 इस मूल कानूनी सिद्धांत को नहीं पलटती है कि जमानत देने का नियम है। 

    तब जस्टिस विश्वनाथन ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा था, ‘पीएमएलए की धारा 45 में केवल इतना ज़िक्र है कि कुछ शर्तों को पूरा किया जाना है। यह सिद्धांत कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का एक संक्षिप्त विवरण है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा। व्यक्ति की स्वतंत्रता हमेशा नियम है और इससे वंचित करना अपवाद है।’

    उन्होंने कहा था, ‘स्वतंत्रता से वंचित केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा ही किया जा सकता है, जो वैध और उचित होनी चाहिए। पीएमएलए की धारा 45 दोहरी शर्तें लगाकर इस सिद्धांत को फिर से नहीं लिखती है कि वंचित करना आदर्श है और स्वतंत्रता अपवाद है। केवल इतना ही ज़रूरी है कि ऐसे मामलों में जहाँ जमानत दोहरी शर्तों के आधार पर दिया जाना है, उन शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए।’ 

    शीर्ष अदालत ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार किया गया था।

    लेकिन जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने ताज़ा आदेश में धारा 45 को आधार बनाते हुए कहा है कि पटना हाईकोर्ट ने प्रसाद को धारा 45 की कठोरता पर विचार किए बिना बिल्कुल बाहरी और अप्रासंगिक विचारों पर जमानत दी थी। बता दें कि पीएमएलए की धारा 45 में कहा गया है कि जमानत पर विचार करते समय, अदालत ईडी अभियोजक को जमानत का विरोध करने का अवसर देगी और याचिका तभी मंजूर करेगी जब उसे लगे कि मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नहीं बनता है।

    इससे पहले पिछले साल अरविंद केजरीवाल की जमानत के मामले में सुनवाई करते हुए भी सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने इस पर अहम टिप्पणी की थी। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा था कि हमने गिरफ्तारी की ज़रूरत और अनिवार्यता का अतिरिक्त आधार उठाया है। जस्टिस खन्ना ने कहा था, ‘तो गिरफ्तारी की नीति क्या है, इसका आधार क्या है, हमने उल्लेख किया है। हमने 3 सवाल तैयार किए हैं। क्या गिरफ्तारी की ज़रूरत, अनिवार्यता, गिरफ्तारी के औपचारिक मापदंडों को पूरा करती है… हमने साफ़ तौर पर माना है कि केवल पूछताछ से गिरफ्तारी की अनुमति नहीं मिलती है।’

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘गिरफ़्तारी, आखिरकार, मनमाने ढंग से और अधिकारियों की मर्जी और मिजाज पर नहीं की जा सकती। इसे कानून द्वारा निर्धारित मापदंडों को पूरा करते हुए वैध ‘विश्वास करने के कारणों’ के आधार पर किया जाना चाहिए।’ 

    पीएमएलए की धारा 19, जो गिरफ्तारी से संबंधित है, कहती है कि ईडी अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, यदि उसके पास मौजूद सामग्री के आधार पर उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है। 

    न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि पीएमएलए के तहत जमानत के लिए मानदंड सख़्त हैं, इसलिए गिरफ्तारी का अधिकार भी सख़्त और नियंत्रित होना चाहिए।

    पिछले साल मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ़्तारी करने के ईडी के अधिकार में कटौती कर दी और कहा था कि सिर्फ़ एक विशेष अदालत द्वारा शिकायत का संज्ञान लेने के बाद ही ईडी गिरफ्तार नहीं कर सकती है।

    अदालत ने साफ़ साफ़ कह दिया है कि ईडी को यदि पीएमएलए के तहत गिरफ़्तारी करनी हो तो उसे विशेष अदालत से संपर्क करना होगा और उसको बताना होगा कि वह आरोपी को हिरासत में लेना चाहती है। यानी ईडी को गिरफ़्तारी से पहले अदालत की मंजूरी लेनी होगी। 

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध का संज्ञान लेने के बाद ईडी और उसके अधिकारी आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए धारा 19 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं।

    पिछले साल अगस्त में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर आरोपी ने लंबे समय तक जेल में सजा काटी है तो जमानत देने की सख्त ‘दोहरी शर्तों’ में ढील दी जा सकती है। त्वरित सुनवाई के उनके अधिकार पर विचार करते हुए अदालत ने कहा था कि भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। जमानत हासिल करने के लिए बीआरएस नेता के कविता और आप के विजय नायर ने भी इस आदेश का सहारा लिया था।

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