मध्य पूर्व में 12 दिनों तक चली इसराइल और ईरान की भीषण जंग थम चुकी है, लेकिन जीत का ताज किसके सिर? इसराइल ने ईरान के सैन्य ठिकानों को तबाह करने का दावा किया, ईरान ने अपनी संप्रभुता की रक्षा का ढोल पीटा और अमेरिका ने युद्धविराम को अपनी कूटनीतिक जीत बताया। लेकिन हकीकत क्या है?
इसराइल और ईरान के बीच तनाव लंबे समय से चला आ रहा है, ख़ासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर। इसराइल ने ईरान के सैन्य ठिकानों और परमाणु फ़ैसिलिटी पर बड़े हवाई हमले किए। इसके जवाब में ईरान ने भी ताबड़तोड़ हमले किए। बाद में अमेरिकी बी-2 बमवर्षक विमानों का भी इस्तेमाल हुआ और ईरान की तीन परमाणु फ़ैसिलिटीज पर इसका इस्तेमाल किया गया। अमेरिकी हमले के बाद ईरान ने भी क़तर में अमेरिकी सैन्य बेस पर हमला किया। और फिर इसके अगले दिन यानी मंगलवार को दोनों देशों के बीच युद्धविराम की घोषणा कर दी गई। इस युद्ध को 12-दिवसीय युद्ध के रूप में जाना जा रहा है, जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को भारी नुक़सान पहुँचाने का दावा किया।
अमेरिका ने इस युद्ध में न केवल सैन्य समर्थन दिया, बल्कि युद्धविराम के लिए क़तर के साथ मिलकर मध्यस्थता भी की। राष्ट्रपति ट्रंप ने 23 जून 2025 को युद्धविराम की घोषणा की, जिसमें कहा गया कि ईरान और इसराइल दोनों ने इसे स्वीकार कर लिया है। हालाँकि, युद्धविराम के कुछ घंटों बाद ही इसराइल ने दावा किया कि ईरान ने मिसाइल हमले करके युद्धविराम का उल्लंघन किया, जिसे ईरान ने खारिज कर दिया। बाद में ट्रंप ने एक तरह से इसराइल पर ही युद्धविराम का उल्लंघन करने का आरोप मढ़ते हुए अपने पायलटों को तुरंत वापस बुलाने को कह दिया।
इसराइल का दावा
इसराइल ने इस युद्ध में अपनी सैन्य श्रेष्ठता का दावा किया। उसका कहना है कि उसने ईरान के कई अहम सैन्य ठिकानों, परमाणु फ़ैसिलिटी और उच्च-स्तरीय सैन्य नेतृत्व को तबाह कर दिया। इसराइली रक्षा मंत्री इसराइल काट्ज ने कहा कि ईरान को अपनी सैन्य शक्ति और प्रॉक्सी नेटवर्क को फिर से खड़ा करने में वर्षों लगेंगे।
सोशल मीडिया पर कुछ विश्लेषकों ने भी इसराइल की जीत का समर्थन किया। इसराइल ने युद्ध की शुरुआत में ईरान को क़रारा झटका दिया और उसकी सैन्य क्षमता को कमजोर किया। हालाँकि, कुछ जानकारों का मानना है कि इसराइल के मुख्य उद्देश्य- ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह तबाह करना और इस्लामिक गणराज्य को उखाड़ फेंकना पूरा नहीं हुआ।
ईरान का दावा
ईरान ने भी जीत का दावा किया, यह कहते हुए कि उसने इसराइल के हमलों का डटकर मुक़ाबला किया और अपनी संप्रभुता की रक्षा की। ईरान ने इसराइल के ख़िलाफ़ बैलिस्टिक मिसाइलों का उपयोग किया और दावा किया कि उसने इसराइली क्षेत्र में नुक़सान पहुँचाया। कई रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि ईरान ने अप्रत्याशित स्तर की प्रतिरोध क्षमता दिखाई और क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत किया।
हालाँकि, ईरान ने युद्धविराम के उल्लंघन के इसराइली आरोपों को खारिज किया और कहा कि वह शांति के लिए प्रतिबद्ध है। इसके बावजूद ईरान के सैन्य ढाँचे को भारी नुक़सान होने की ख़बरें हैं, विशेष रूप से उसके एयर डिफ़ेंस सिस्टम और परमाणु फ़ैसिलिटीज को।
अमेरिका का दावा
अमेरिका ने युद्धविराम की घोषणा को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में पेश किया। राष्ट्रपति ट्रंप ने इसे पूरा और स्थायी युद्धविराम क़रार दिया और कहा कि यह क्षेत्र में शांति की दिशा में एक बड़ा क़दम है। अमेरिका ने यह भी दावा किया कि उसने इसराइल के साथ मिलकर ईरान की सैन्य शक्ति को गंभीर रूप से कमजोर किया। हालाँकि, कुछ विश्लेषकों ने अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, यह कहते हुए कि युद्धविराम अस्थायी हो सकता है और क्षेत्रीय तनाव अभी भी बरकरार है।
वास्तविक विजेता कौन?
इस युद्ध में विजेता तय करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि प्रत्येक पक्ष ने कुछ हद तक सफलता हासिल की, लेकिन कोई भी पूरी जीत हासिल नहीं कर सका।
सैन्य नुक़सान और उपलब्धियाँ
इसराइल: इसराइल ने हवाई हमलों और अमेरिकी समर्थन के साथ ईरान के अहम ठिकानों को तबाह किया। उसका एयर डिफ़ेंस सिस्टम आयरन डोम इस युद्ध में पूरी तरह प्रभावी नहीं रहा, जिसे इसराइल की कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है। फिर भी, ईरान की तुलना में इसराइल को कम नुक़सान हुआ।
ईरान: ईरान ने अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के ज़रिए जवाबी कार्रवाई की, लेकिन उसके एयर डिफ़ेंस सिस्टम और सैन्य ढाँचे को भारी नुक़सान पहुँचा। ईरान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि वह इसराइल और अमेरिका के संयुक्त हमलों का सामना करने में सक्षम रहा।
अमेरिका: अमेरिका ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक शक्ति का प्रदर्शन किया, लेकिन क्षेत्र में उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे। युद्धविराम की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कितने समय तक कायम रहता है।
राजनीतिक और रणनीतिक असर
- इसराइल ने क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत किया, लेकिन वह अपने दूरगामी लक्ष्यों- ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह ख़त्म करने और इस्लामिक गणराज्य को कमजोर करने में पूरी तरह सफल नहीं हुआ।
- ईरान ने अपनी संप्रभुता और प्रतिरोध की क्षमता का प्रदर्शन किया, लेकिन उसकी सैन्य और आर्थिक स्थिति को गंभीर नुक़सान हुआ, जो भविष्य में उसकी क्षेत्रीय प्रभाव को कमजोर कर सकता है।
- अमेरिका ने युद्धविराम के ज़रिए क्षेत्र में शांति स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन युद्धविराम के तुरंत बाद हुए उल्लंघन के दावों ने इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाए।
आर्थिक और सामाजिक असर
युद्ध ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला। इसराइल की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक युद्ध के प्रभावों से निपटना पड़ सकता है। वहीं, ईरान की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था को और झटका लगा।
सामाजिक स्तर पर दोनों देशों में जनता के बीच युद्ध के परिणामों को लेकर असंतोष देखा जा सकता है। इसराइल में युद्धविराम को अमेरिकी दबाव का परिणाम माना जा रहा है। इसराइल में कई लोगों और विपक्षी नेताओं ने नेतन्याहू सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला और उसकी नीतियों की आलोचना की। ईरान में भी कुछ इस तरह की आवाज़ें सोशल मीडिया पर उठीं।
इस12-दिवसीय युद्ध में कोई भी पक्ष पूर्ण विजेता के रूप में उभरकर सामने नहीं आया। इसराइल ने सैन्य नज़रिए से कुछ हद तक बढ़त हासिल की, लेकिन वह अपने राजनीतिक और रणनीतिक लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल नहीं कर सका। ईरान ने अपनी प्रतिरोध क्षमता का प्रदर्शन किया, लेकिन उसे भारी सैन्य और आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ा। अमेरिका ने युद्धविराम के ज़रिए कूटनीतिक जीत का दावा किया, लेकिन इसकी दूरगामी सफलता संदिग्ध है। सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रियाओं से यह साफ़ है कि इस युद्ध का कोई साफ़ विजेता नहीं है। फ़िलहाल, यह कहना सही होगा कि सभी पक्षों ने कुछ हासिल किया, लेकिन सभी को कुछ न कुछ खोना भी पड़ा।