केंद्र सरकार ने भारत की अगली जनगणना के लिए आधिकारिक अधिसूचना 16 जून को जारी कर दी है। इस अधिसूचना के अनुसार, जनगणना की प्रक्रिया 2026 से शुरू होगी, जिसमें लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बर्फीले क्षेत्रों में पहले चरण में गणना की जाएगी। बाकी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जनगणना 2027 में शुरू होगी।
गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बर्फ से ढके क्षेत्रों में जनगणना की संदर्भ तिथि 1 अक्टूबर 2026 होगी। वहीं, देश के अन्य हिस्सों में संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 तय की गई है।
इस जनगणना में एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि इसमें जाति आधारित गणना भी शामिल की जाएगी। यह पहली बार होगा जब 1931 के बाद देश में जातिवार जनगणना की जाएगी। गृह मंत्रालय ने बताया कि जातियों की सूची तैयार करने के लिए सर्वदलीय बैठक आयोजित की जाएगी ताकि सुनियोजित और सटीक डेटा एकत्र किया जा सके।
केंद्र सरकार ने इस जनगणना को अधिक कुशल और पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग करने की योजना बनाई है। गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को गृह सचिव गोविंद मोहन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जनगणना की तैयारियों की समीक्षा की। इस दौरान डिजिटल डेटा संग्रह और व्यापक गणना कर्मियों की भागीदारी पर जोर दिया गया।
जनगणना देश की जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और संसाधनों के वितरण को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। विशेषज्ञों का मानना है कि जाति आधारित डेटा नीति निर्माण में मदद करेगा, खासकर सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के क्षेत्र में। हालांकि, कुछ लोग इसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा मानते हैं और इसका दुरुपयोग होने की आशंका जताते हैं।
भारत में आमतौर पर हर दस साल में जनगणना कराई जाती है। पिछली राष्ट्रीय जनगणना 2011 में हुई थी। 2021 की जनगणना महामारी के कारण स्थगित करनी पड़ी थी। ऐसे में 2027 की जनगणना 16 वर्षों में पहली जनगणना होगी। विपक्ष लगातार जनगणना कराने की मांग कर रहा था।
जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का निर्णय विपक्ष की एक लंबे समय से चली आ रही मांग के बाद लिया गया है। यह घोषणा बिहार में होने वाले एक महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले की गई, जहां की 63 प्रतिशत से अधिक आबादी अत्यंत पिछड़े या पिछड़े वर्गों से आती है।
बिहार विधानसभा चुनाव, जो अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने की संभावना है, के संदर्भ में जातिगत जनगणना के समय को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। बिहार में जातिगत समीकरण राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और केंद्र सरकार के इस कदम को विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, RJD, और सपा के एक प्रमुख चुनावी मुद्दे को कमजोर करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव से संबंध
बिहार में जातिगत जनगणना लंबे समय से एक प्रमुख मुद्दा रहा है, जिसे नेता विपक्ष राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने जोर-शोर से उठाया है। केंद्र सरकार का यह निर्णय बिहार चुनाव से पहले विपक्ष के इस मुद्दे को कमजोर करने का प्रयास माना जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह “मास्टरस्ट्रोक” है, जिसने विपक्ष के हाथ से एक बड़ा चुनावी हथियार छीन लिया है।
कांग्रेस और आरजेडी जैसे विपक्षी दलों ने इसे अपनी मांग की जीत के रूप में पेश कर रहे हैं, लेकिन कुछ का मानना है कि इस कदम ने उनकी चुनावी रणनीति को कमजोर किया है। बिहार में क्रेडिट वॉर भी शुरू हो गया है, जहां जेडीयू, आरजेडी, और कांग्रेस अपने-अपने नेताओं को इसका श्रेय दे रहे हैं।
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण अहम हैं, और केंद्र का यह कदम एनडीए को ओबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद कर सकता है। हालांकि, जनगणना 2027 में शुरू होगी, जो बिहार चुनाव (2025) के बाद होगी, लेकिन इसकी अधिसूचना ने इसे एक राजनीतिक हथियार बना दिया है।
बहरहाल, जातिगत जनगणना की घोषणा और अब अधिसूचना का बिहार विधानसभा चुनाव से स्पष्ट संबंध है, क्योंकि यह विपक्ष के एक बड़े मुद्दे को कमजोर करने और एनडीए को जातिगत समीकरणों के आधार पर लाभ दिलाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि, इसका वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि बिहार की जनता और राजनीतिक दल इसे कैसे देखते हैं। यह कदम केंद्र सरकार की ओर से एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है, जो बिहार जैसे जाति-संवेदनशील राज्य में सियासी समीकरण बदल सकता है।