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    Home » उद्धव ने दिए मनसे से गठबंधन के संकेत, क्या बीएमसी चुनाव में साथ लड़ेंगे?
    भारत

    उद्धव ने दिए मनसे से गठबंधन के संकेत, क्या बीएमसी चुनाव में साथ लड़ेंगे?

    Janta YojanaBy Janta YojanaJune 20, 2025No Comments4 Mins Read
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    उद्धव ठाकरे ने अब मनसे के साथ गठबंधन के साफ़ संकेत दिए हैं! क्या चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ मिलकर उद्धव बीएमसी चुनाव में मुंबई का गढ़ दोबारा जीत पाएँगे या यह सिर्फ़ मराठी एकता का नया नारा है? उद्धव की यह घोषणा आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी चुनावों से पहले महाराष्ट्र की सियासत में नई हलचल मचा दी है।
    उद्धव का यह बयान शिवसेना यूबीटी और राज ठाकरे के मनसे के एकजुट होने की लगातार आ रही ख़बरों के बीच आया है। दरअसल, शिवसेना यूबीटी के 59वें स्थापना दिवस पर मुंबई में एक समारोह में उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे के साथ गठबंधन की संभावना को खुला रखा। उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र के लोगों के मन में जो है, वही होगा। हम इसे कैसे करना है, यह देखेंगे।’ 
    उद्धव ने यह भी आरोप लगाया कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना मराठी पार्टियों को एकजुट होने से रोकने की गुप्त कोशिश कर रही हैं। उन्होंने राज ठाकरे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की हालिया मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए कहा कि कुछ ताक़तें मराठी हितों को कमजोर करने की साज़िश रच रही हैं।
    उद्धव ने मराठी अस्मिता पर जोर देते हुए कहा, ‘मुंबई हमारी है और इसे कोई छीन नहीं सकता।’ उन्होंने बीएमसी चुनावों से पहले मराठी एकता को मज़बूत करने की बात कही और संकेत दिया कि मनसे के साथ गठबंधन शिवसैनिकों और मुंबईवासियों की इच्छा के अनुरूप होगा। 
    उद्धव ने अपने भाषण में बीएमसी पर फिर से कब्जा करने की प्रतिबद्धता दोहराई, जो लंबे समय तक शिवसेना का गढ़ रही है। उन्होंने कहा, ‘मुंबई के हितों की रक्षा करना हमारी प्राथमिकता है। हम न तो हिंदी थोपने देंगे और न ही मराठी अस्मिता को कमजोर होने देंगे।’ उन्होंने भाजपा पर मराठी और ग़ैर-मराठी लोगों के बीच विभाजन पैदा करने का आरोप लगाया और कहा कि उनकी पार्टी मुंबई को ‘हिंदू-विभाजन की साज़िश’ से बचाएगी।
    उद्धव ने यह भी कहा कि शिवसेना यूबीटी और मनसे का एक साथ आना ‘मराठी मानुस’ के हितों की जीत होगी। उन्होंने शिवसैनिकों से एकजुट रहने और बीएमसी चुनावों में पार्टी को मज़बूत करने की अपील की।
    उद्धव ने अपने भाषण में बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा मराठी पार्टियों को कमजोर करने के लिए छद्म युद्ध छेड़ रही है। उन्होंने शिंदे गुट को ‘गद्दार’ क़रार देते हुए कहा कि वे असली शिवसेना नहीं हैं और मुंबई के हितों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। एकनाथ शिंदे ने जवाब में उद्धव पर पलटवार करते हुए उन्हें गठबंधन की राजनीति में हताश बताया और कहा कि शिवसेना (शिंदे गुट) ही बालासाहेब ठाकरे की असली विरासत को आगे ले जा रही है।
    एक्स पर इस घोषणा को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कुछ यूजरों ने उद्धव के गठबंधन के संकेत को ‘महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा धमाका’ क़रार दिया, जबकि अन्य ने इसे ‘भाजपा के ख़िलाफ़ रणनीतिक क़दम’ बताया। एक यूज़र ने लिखा, ‘उद्धव और राज ठाकरे का एक होना भाजपा और शिंदे के लिए ख़तरे की घंटी है। मुंबई में बीएमसी चुनाव अब रोमांचक होने वाले हैं।’ दूसरी ओर कुछ यूजरों ने इसे ‘उद्धव की हताशा’ क़रार दिया और कहा कि मनसे के साथ गठबंधन उनकी कमजोर स्थिति को दिखाता है।
    हालाँकि, हाल के वर्षों में दोनों नेताओं के बीच नजदीकी बढ़ी है, खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद, जब मनसे ने बीजेपी का समर्थन किया था, लेकिन अब बीएमसी चुनावों के लिए मराठी एकता को प्राथमिकता देने की बात हो रही है।
    जानकारों का मानना है कि शिवसेना यूबीटी और मनसे का गठबंधन बीएमसी चुनावों में खेल बदल सकता है। मनसे का मराठी वोट बैंक और शिवसेना यूबीटी की पारंपरिक ताक़त मिलकर भाजपा-शिंदे गठबंधन को कड़ी चुनौती दे सकती है। हालाँकि, कुछ जानकारों का कहना है कि दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच पुरानी कटुता इस गठबंधन को लागू करने में बाधा बन सकती है।
    बीएमसी भारत की सबसे धनी नगर निगम है, जिसका बजट 45,000 करोड़ रुपये से अधिक है। यह मुंबई की सियासत का केंद्र है और शिवसेना के लिए भावनात्मक रूप से भी अहम है, क्योंकि यह बालासाहेब ठाकरे की विरासत से जुड़ा है। उद्धव के लिए बीएमसी पर दोबारा कब्जा करना उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।
    उद्धव ठाकरे ने न केवल मनसे के साथ गठबंधन के संकेत देकर महाराष्ट्र की सियासत में हलचल मचाई, बल्कि मुंबई को फिर से शिवसेना के नियंत्रण में लाने का दमदार संकल्प भी लिया। यह क़दम बीएमसी चुनावों से पहले मराठी एकता और क्षेत्रीय अस्मिता को मज़बूत करने की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास है। लेकिन सवाल वही है कि क्या इस गठबंधन को हक़ीक़त में बदलने के लिए उद्धव और राज ठाकरे पुरानी कटुता को पीछे छोड़ पाएँगे?
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