इसराइल और ईरान के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका के शामिल होने के बाद साइबर हमलों का खतरा तेजी से बढ़ गया है।अमेरिका ने 21 जून को ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों- फोर्दू, न्तांज और इसफहान पर हवाई हमले किए, जिसके बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने चेतावनी जारी की है कि ईरानी साइबर हमले अमेरिकी बुनियादी ढांचे, जैसे बिजली, पानी, और परिवहन सिस्टम को निशाना बना सकते हैं।
अमेरिका की कार्रवाई और ईरान का जवाब
साइबर युद्ध का बढ़ता खतरा
अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने रविवार को एक बुलेटिन जारी कर “अमेरिका में बढ़ते खतरे” की चेतावनी दी। इसमें कहा गया कि ईरान से जुड़े साइबर एक्टर्स और हैक्टिविस्ट्स अमेरिकी नेटवर्क पर हमले कर सकते हैं। यदि ईरानी नेतृत्व ने जवाबी हिंसा के लिए धार्मिक आदेश जारी किया, तो हिंसक चरमपंथी स्वतंत्र रूप से हमले कर सकते हैं।
अमेरिकी बुनियादी ढांचे पर जोखिम
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस युद्ध पर चिंता जताई है। पीएम नरेंद्र मोदी ने फौरन डी-एस्केलेशन और कूटनीति के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता की बहाली की मांग की। तुर्की के विदेश मंत्रालय ने चेतावनी दी कि अमेरिकी हमलों से क्षेत्र में युद्ध का खतरा बढ़ गया है। अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेटिक सांसद सारा जैकब्स और रिपब्लिकन सांसद थॉमस मैसी ने हमलों को असंवैधानिक बताया, क्योंकि ट्रम्प ने कांग्रेस की मंजूरी के बिना कार्रवाई की।ईरान में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और अमेरिकी हमलों के खिलाफ प्रदर्शन किए। अमेरिका में भी कई संगठनों ने युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। लेकिन इसराइल आत्मरक्षा का राग अलाप रहा है, जबकि ईरान पर सबसे पहला हमला इसराइल ने ही किया है।विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष अब साइबर मोर्चे पर तेज हो सकता है। अमेरिकी और इसराइली साइबर हमले ईरान की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि ईरान जवाबी साइबर हमलों और मिसाइल हमलों से पलटवार कर सकता है। वैश्विक साइबर सुरक्षा फर्मों ने सभी देशों से सतर्कता बढ़ाने की सलाह दी है, क्योंकि इस “हाइब्रिड युद्ध” में डिजिटल और पारंपरिक हथियार दोनों समान रूप से खतरनाक हैं।