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    Home » Dashavatar Mandir Ka Itihas: बेतवा नदी के किनारे बना 1500 साल पुराना दशावतार मंदिर, जहां विष्णु के हैं दस अवतार, आखिर क्या कहानी है इस मंदिर की, चलिए जानते हैं
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    Dashavatar Mandir Ka Itihas: बेतवा नदी के किनारे बना 1500 साल पुराना दशावतार मंदिर, जहां विष्णु के हैं दस अवतार, आखिर क्या कहानी है इस मंदिर की, चलिए जानते हैं

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 16, 2025No Comments8 Mins Read
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    UP Dashavatar Temple History and Mystery 

    UP Dashavatar Temple History and Mystery 

    UP Dashavatar Temple History: उत्तर प्रदेश के देवगढ़ (Deogarh) में स्थित बेतवा नदी (Betwa River) के दाहिने तट पर एक प्राचीन मंदिर है, जो भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर सुंदर नक्काशी से सुसज्जित है और ‘दशावतार मंदिर’ (Deogarh Dashavatar Temple) के नाम से जाना जाता है। लगभग 1500 वर्ष पूर्व गुप्त साम्राज्य के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर भारतीय इतिहास की सांस्कृतिक और स्थापत्य संपदा का प्रतीक है।

    भारत का स्वर्ण युग (Golden Period Of India)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    तीसरी से छठी शताब्दी के मध्य गुप्त शासकों ने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों पर शासन किया। अनेक इतिहासकार इस काल को भारत का ‘स्वर्ण युग’ (Swarna Yug) कहते हैं, क्योंकि इस दौरान विज्ञान, राजनीति, प्रशासन और संस्कृति के क्षेत्रों में अद्भुत प्रगति हुई थी। इस युग में वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला ने ऐसे उच्च मानदंड स्थापित किए, जिनका प्रभाव न केवल भारत में बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी देखने को मिला। दशावतार मंदिर (Dashavatar Temple) की भव्यता में आज भी उस युग की कलात्मक उत्कृष्टता की झलक मिलती है, भले ही आज यह मंदिर कुछ हद तक जर्जर अवस्था में है।

    पत्थर और चिनाई वाली ईंटों से निर्मित यह मंदिर लगभग 500 ईस्वी के आसपास का है। इसकी ऐतिहासिक महत्ता इस तथ्य से स्पष्ट होती है कि यह मंदिर उस समय देवगढ़ से एरण, सांची, उज्जैन, झांसी, इलाहाबाद, पाटलिपुत्र (पटना) और बनारस जैसे महत्वपूर्ण नगरों को जोड़ने वाले प्रमुख राजमार्ग पर स्थित था।

    कनिंघम ने गुप्त मंदिर नाम से पुकारा

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद यह मंदिर धीरे-धीरे उपेक्षा का शिकार हो गया और उजड़ गया। लेकिन 1870-71 में जब स्थलाकृतिक सर्वेक्षण हो रहा था, तब कैप्टन चार्ल्स स्ट्रेहन (Captain Charles Strahan) की नज़र इस प्राचीन धरोहर पर पड़ी। इसके बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संस्थापक सर एलेक्जेंडर कनिंघम ने 1875 में यहां का दौरा किया और उन्हें यहां गुप्तकाल के अभिलेख प्राप्त हुए। उस समय मंदिर का मूल नाम ज्ञात नहीं हो पाया था, इसलिए कनिंघम ने इसे ‘गुप्त मंदिर’ नाम दिया।

    सागर मढ़ के नाम से मशहूर

    यह मंदिर आज भी भारतीय स्थापत्य और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उदाहरण है, जो भारत के गौरवशाली अतीत की कहानी कहता है। सन 1899 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् पी.सी. मुखर्जी ने देवगढ़ स्थित इस प्राचीन स्थल का गहन सर्वेक्षण किया। अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने मंदिर की नक्काशियों में भगवान विष्णु की छवियाँ स्पष्ट रूप से पहचानीं। इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय किवदंतियों को भी महत्व दिया, जिनमें यह दावा किया गया था कि इस मंदिर की दीवारों पर भगवान विष्णु के दस अवतार उकेरे गए थे, हालांकि समय के साथ वे अब दिखाई नहीं देते। अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में मुखर्जी ने इस मंदिर को ‘दशावतार मंदिर’ नाम दिया। हालांकि, स्थानीय लोग इस मंदिर को उस समय “सागर मढ़” के नाम से जानते थे।

    बाद के वर्षों में की गई खुदाई में इस मंदिर से भगवान विष्णु के राम, कृष्ण, नरसिंह और वामन जैसे अवतारों की मूर्तियाँ प्राप्त हुईं, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह मंदिर वास्तव में दशावतारों को समर्पित था। सन 1918 में एक और पुरातत्वविद् दया राम साहनी ने जब इस स्थल की खुदाई की, तो उन्हें मंदिर की नींव के पास कुछ महत्वपूर्ण पैनल मिले। इनमें से कुछ पैनल पास में बनी एक दीवार में उपयोग किए गए थे। खुदाई के दौरान यह भी सामने आया कि मंदिर के पलिन्थ (आधार तल) के चारों कोनों पर छोटे-छोटे चौकोर देवालय स्थित थे।

    पंचायतन शैली का प्रमाण

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मुख्य मंदिर के साथ इन चार सहायक मंदिरों की उपस्थिति उत्तर भारत में ‘पंचायतन शैली’ (Panchayatana Style) के आरंभिक प्रयोग का प्रमाण मानी जाती है। यह स्थापत्य रूपरेखा दशावतार मंदिर को उत्तर भारत में पंचायतन शैली का सबसे प्राचीन उदाहरण सिद्ध करती है।

    दशावतार मंदिर की दीवारों और संरचनाओं में देवी-देवताओं, शाही पुरुषों-महिलाओं तथा आम जनजीवन को दर्शाती सौ से अधिक मूर्तियाँ स्थापित थीं। इनमें से कई मूर्तियाँ आज भी मंदिर की दीवारों पर देखी जा सकती हैं, जबकि अनेक मूर्तियों को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय और अहमदाबाद के लालभाई दलपतराय संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। दुर्भाग्यवश, कुछ महत्वपूर्ण मूर्तियाँ पिछले कुछ दशकों में चोरी हो गईं, जिससे यह ऐतिहासिक धरोहर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गई है।

    यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि स्थापत्य और ऐतिहासिक दृष्टि से भी भारत की प्राचीन विरासत का अद्वितीय प्रतीक है।दशावतार मंदिर का प्रवेशद्वार अपनी विशिष्ट कलाकारी के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस द्वार को अन्य कई अलंकरणों के साथ-साथ गंगा और यमुना देवियों की सुंदर मूर्तियों से सजाया गया है। गंगा देवी को उनके वाहन मगरमच्छ पर और यमुना देवी को कछुए पर सवार दर्शाया गया है, जिनके ऊपर एक छतरी बनाई गई है। द्वार के निचले और ऊपरी भागों पर दो पुरुष आकृतियाँ उकेरी गई हैं—एक के हाथ में फूल है जबकि दूसरे के हाथ में माला। इनके पास ही एक बौने संगीतकार या नर्तक की मूर्ति है, जो संभवतः मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत करता है।

    शेषनाग की शैय्या पर विष्णु विराजमान

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मंदिर के भीतर और बाहर बने आलों में भगवान विष्णु से जुड़ी कथाओं को दर्शाती मूर्तियाँ स्थित हैं। इनमें ‘गजेंद्र मोक्ष’, ‘नर-नारायण तपस्या’ और ‘शेषनाग की शैय्या पर विष्णु’ जैसी घटनाओं का सुंदर चित्रण किया गया है। गर्भगृह के स्तंभों और दीवारों पर विष्णु और लक्ष्मी की छवियाँ अंकित हैं, जिनके साथ शिव, पार्वती, इंद्र, कार्तिकेय, गणेश, ब्रह्मा तथा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं।

    महाभारत और रामायण का भी उल्लेख

    इन धार्मिक छवियों के अतिरिक्त, मंदिर में महाभारत और रामायण की प्रमुख घटनाओं के दृश्य भी उकेरे गए हैं। इनमें राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास, सूर्पणखा की नाक काटने का प्रसंग, अशोक वाटिका में रावण द्वारा सीता को धमकाना, कृष्ण का जन्म, कंस का वध और सुदामा का कृष्ण द्वारा स्वागत जैसे दृश्यों का चित्रण मिलता है।

    मंदिर की दीवारों पर प्रेम और सामाजिक जीवन की झलकियाँ भी मिलती हैं। विभिन्न पैनलों में पुरुष और स्त्री के प्रेमालाप और प्रणय मुद्राएं, बच्चों को खेलते हुए, फूल तोड़ती लड़कियाँ, एक युवती का नृत्य करते हुए चित्रण, पाँच लड़कियों को उसे निहारते और वाद्य बजाते हुए दिखाया गया है। एक मूर्ति में एक महिला अपना बच्चा एक पुरुष को देती हुई दिखाई गई है, जबकि पुरुष उदासीन मुद्रा में खड़ा है।

    इन सभी छवियों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गुप्तकालीन समाज कैसा था—लोग कैसे कपड़े पहनते थे, कौन से आभूषण आम थे और सांस्कृतिक गतिविधियाँ कैसी होती थीं। उस समय पुरुष-स्त्रियाँ धोती, लहंगा, अनारकली, दुपट्टा, कुर्ता आदि पहनते थे। गहनों में पायल, कमरबंद, कंगन, बाजूबंद, माला और झुमके आम थे। एक दिलचस्प बात यह है कि जहाँ आज अंगूठी पहनना आम है, वहाँ इस मंदिर की किसी भी मूर्ति के हाथ या पाँव की उँगलियों में अंगूठी नहीं दिखाई गई है, केवल विष्णु को ही छोटी उँगली में अंगूठी पहने हुए दर्शाया गया है। महिलाओं को नथनी पहनते भी इन मूर्तियों में नहीं दिखाया गया है।

    दशावतार मंदिर के बारे में रोचक तथ्य (Dashavatar Temple Interesting Facts In Hindi)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    दशावतार मंदिर उत्तर-मध्य भारत में बेतवा नदी घाटी के पास उत्तर प्रदेश के देवगढ़ नामक स्थान पर स्थित है।

    देवगढ़ एक प्राचीन नगर है, जहाँ हिंदू, जैन और बौद्ध स्मारकों के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं और लिपियों में कई शिलालेख प्राप्त हुए हैं।

    यह मंदिर 6वीं शताब्दी में गुप्तकाल के दौरान निर्मित हुआ था।

    यह भगवान विष्णु को समर्पित है और भारत के सबसे प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है।

    मंदिर का निर्माण पत्थर और चिनाई ईंटों से किया गया है।

    देवगढ़ की पहाड़ी के नीचे स्थित यह मंदिर गुप्तकालीन अलंकृत स्थापत्य शैली का अनुपम उदाहरण है।

    मंदिर में नाग पर शयन करते विष्णु की प्रमुख मूर्ति है।

    एक अन्य मूर्ति में विष्णु को तपस्या की मुद्रा में दर्शाया गया है।

    मंदिर की बाहरी और आंतरिक दीवारों पर विष्णु से जुड़ी पौराणिक कथाओं का चित्रण किया गया है।

    इस मंदिर में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, ब्रह्मा, इंद्र, और नदी देवियाँ गंगा और यमुना की मूर्तियाँ भी हैं।

    एक विशेष पैनल में महाभारत के पाँच पांडवों को भी उकेरा गया है, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाते हैं।

    दशावतार मंदिर आज लुप्त होती विरासत की श्रेणी में आता है, फिर भी यह मंदिर हिंदू श्रद्धालुओं और विदेशी पर्यटकों को विशेषकर त्योहारों के समय आकर्षित करता है।

    इन छवियों में गरिमा, सौंदर्य और मूर्तिकारों की बारीकी से की गई नफासत साफ झलकती है। यह मंदिर भारतीय मंदिर वास्तुकला की प्रारंभिक यात्रा का प्रतीक है और कला, संस्कृति और इतिहास के संगम का एक अनमोल उदाहरण है। हालाँकि यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान पर स्थित है और इसके पास ही बेतवा नदी बहती है, फिर भी यहाँ सैलानियों की संख्या बहुत कम है। अगर आप उत्तर प्रदेश की यात्रा पर हों, तो देवगढ़ स्थित इस मंदिर की यात्रा अवश्य करें। यह स्थल ललितपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा झांसी (125 किमी), खजुराहो (220 किमी) और भोपाल (230 किमी) जैसे प्रमुख शहरों से भी यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। दशावतार मंदिर निश्चित ही भारतीय विरासत का एक अद्भुत और प्रेरणादायक स्थल है।

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