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    Home » Goa Ka Rahasyamayi Gaon: मारली गांव के अनोखे ‘गुल्यो’ निशानों की रहस्यमयी खोज
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    Goa Ka Rahasyamayi Gaon: मारली गांव के अनोखे ‘गुल्यो’ निशानों की रहस्यमयी खोज

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 5, 2025No Comments7 Mins Read
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    Goa Ka Rahasyamayi Gaon Gulya Marli Village

    Goa Ka Rahasyamayi Gaon Gulya Marli Village

    Goa Ka Rahasyamayi Gaon: गोवा(Goa), जो अपनी खूबसूरत समुद्री तटों, ऐतिहासिक किलों और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ की अनोखी और रहस्यमयी खोजें भी लोगों को आकर्षित करती हैं। हाल ही में गोवा के मारली गांव में दो विशाल पत्थरों पर अजीब गोल निशान पाए गए हैं, जिन्हें स्थानीय लोग ‘गुल्यो'(Gulyo Symbol) कहते हैं। इन रहस्यमयी निशानों को लेकर कई धारणाएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं।

    क्या हैं ये अजीब गोल निशान?

    गोवा(Goa) के काणकोण क्षेत्र (Canacona Region) के मारली(Marli) गांव में दो बड़े पत्थरों पर रहस्यमयी गोल निशान पाए गए हैं। ये निशान गलगिबागा नदी(Galgibaga River)की एक सहायक धारा के पास, बेतालकाडलो व्हाल(Betalkadlo Whal)नामक छोटी नाली में स्थित हैं। मारली, पोईगिनिम गांव(Poiguinim Village)का एक हिस्सा है और इसका जंगल कर्नाटक(Karnataka) के करवार जिले के मैनगिनी जंगल से जुड़ा हुआ है। ये दोनों पत्थर मैनगिनी जंगल में खोजे गए, जिनमें से एक पर 45 और दूसरे पर 21 गोल निशान मौजूद हैं।

    ‘गुल्यो’ शब्द गोवा की कोंकणी भाषा में गोलाकार आकृतियों या निशानों को दर्शाता है। मारली गांव में पाए गए इन गोल निशानों का आकार और संरचना उन्हें विशेष बनाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये निशान प्रागैतिहासिक काल के हो सकते हैं और संभवतः धार्मिक या खगोलीय उद्देश्यों से जुड़े हुए हैं।

    मारली गांव के लोग इन गोलाकार निशानों को सदियों से देखते आ रहे हैं और इन्हें किसी दैवीय शक्ति या ऐतिहासिक घटना से जोड़ते हैं। ये गोलाकार आकृतियाँ देखने में अत्यंत सटीक और समरूप लगती हैं, जिससे यह प्रश्न उठता है कि क्या ये निशान मानव निर्मित हैं, प्राकृतिक घटनाओं का परिणाम हैं, या फिर किसी प्राचीन सभ्यता की कला हैं।

    मारली गांव में पाए गए ‘गुल्यो’ निशानों की खोज के बारे में उपलब्ध जानकारी सीमित है, और इनके पहली बार कब देखे गए थे, इस पर सटीक विवरण उपलब्ध नहीं है।

    क्या कहती है स्थानीय मान्यताएँ?

    कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की थी, और इस दौरान उन्होंने कई स्थानों पर अपनी छाप छोड़ी। स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, पांडव कभी इस क्षेत्र में आए थे और उन्होंने कुछ समय यहां बिताया था। यह भी माना जाता है कि इन पत्थरों पर मौजूद गोलाकार निशान पांडवों के पैरों या किसी पवित्र अनुष्ठान के चिह्न हो सकते हैं, जो समय के साथ अमिट हो गए।

    कुछ लोगों का मानना है कि ये गोल निशान किसी प्राचीन यज्ञ या अनुष्ठान से जुड़े हो सकते हैं, जिसमें बड़े पत्थरों का उपयोग किया गया हो। भारतीय संस्कृति में पत्थरों पर बने ऐसे प्रतीकात्मक निशानों को देवताओं या महान ऋषियों की उपस्थिति का संकेत माना जाता है।

    स्थानीय बुजुर्गों की मान्यताओं के अनुसार, इन पत्थरों में अद्भुत शक्तियाँ हैं और ये किसी रहस्यमयी ऊर्जा से जुड़े हुए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इन पत्थरों को छूने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और गांव के कई निवासी इन्हें शुभ मानते हैं।

    क्या कहता है आधुनिक विज्ञान?

    भूगर्भीय व्याख्या के अनुसार, वैज्ञानिकों का मानना है कि ये गोल निशान किसी प्राकृतिक भू-आकृतिक प्रक्रिया का परिणाम हो सकते हैं। जल और हवा के कटाव के कारण लंबे समय तक पानी की धारा या हवा के प्रवाह से पत्थरों पर ऐसे गोल निशान बन सकते हैं, विशेष रूप से गलगिबागा नदी की सहायक धारा के पास पाए जाने के कारण यह संभावना अधिक प्रबल हो जाती है। इसके अलावा, अगर यह क्षेत्र कभी बर्फ से ढका था या यहाँ भूगर्भीय हलचल हुई थी, तो ग्लेशियर या ज्वालामुखीय गतिविधि के कारण भी इन निशानों का निर्माण संभव हो सकता है। कुछ वैज्ञानिकों की गैस बबल थ्योरी के अनुसार, प्राचीन समय में यदि यहाँ ज्वालामुखीय गतिविधियाँ हुई थीं, तो लावा में उठने वाले गैस बबल्स ठंडे होने के बाद पत्थर पर गोल छिद्रों के रूप में चिन्ह छोड़ सकते हैं।

    पुरातात्विक और मानव निर्मित संरचना की संभावना

    अगर ये निशान मानव निर्मित हैं, तो यह शोध का एक महत्वपूर्ण विषय बन जाता है। पुरातत्वविदों के अनुसार:

    प्राचीन सभ्यता के संकेत: भारत में कई स्थानों पर मेगालिथिक संरचनाएँ (बड़े पत्थरों से बनी प्राचीन संरचनाएँ) पाई गई हैं। यह संभव है कि इन पत्थरों का उपयोग किसी अनुष्ठान, खेल या गणना के लिए किया गया हो।

    औजारों के उपयोग के प्रमाण: अगर यह मानव निर्मित है, तो वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या प्राचीन औजारों से इन पर कोई आकृतियाँ उकेरी गई थीं।

    मृतकों की समाधि या पवित्र स्थल: कई प्राचीन संस्कृतियों में पत्थरों पर इस तरह के चिह्न धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखते थे।

    स्थानीय संस्कृति और गुल्यो का महत्व

    मारली गांव के लोग इन पत्थरों को अपने सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। गांव के कई लोग यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं और विशेष अवसरों पर इन पत्थरों की सफाई व पूजा की जाती है। इन पत्थरों को गांव की पहचान और विरासत का प्रतीक भी माना जाता है।

    कुछ स्थानीय कथाओं के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति इन पत्थरों को अपवित्र करता है या इन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो उसे दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। इस विश्वास के कारण, ग्रामीण इन पत्थरों की विशेष देखभाल करते हैं और उन्हें संरक्षित करने का प्रयास करते हैं।

    वैज्ञानिक परीक्षण और तुलनात्मक अध्ययन

    वैज्ञानिक इन पत्थरों की उम्र और उत्पत्ति का पता लगाने के लिए रेडियोकार्बन डेटिंग, एक्स-रे विश्लेषण और खनिज संरचना परीक्षण जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं। रेडियोकार्बन डेटिंग से इन निशानों की आयु का निर्धारण किया जा सकता है, जबकि एक्स-रे विश्लेषण से उनकी आंतरिक संरचना की जांच की जा सकती है। इसके अलावा, खनिज संरचना परीक्षण के माध्यम से यह स्पष्ट किया जा सकता है कि ये निशान हजारों वर्ष पुराने हैं या हाल के वर्षों में बने हैं। इन वैज्ञानिक परीक्षणों से यह भी पता लगाया जा सकता है कि ये निशान प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण बने हैं या किसी मानव निर्मित गतिविधि का परिणाम हैं।

    इसके अतिरिक्त, भारत और दुनिया के कई अन्य स्थानों पर भी ऐसे गोलाकार निशान पाए गए हैं, जो या तो प्राकृतिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के परिणाम हैं या किसी पुरानी सभ्यता द्वारा बनाए गए हैं। यदि गोवा के इन पत्थरों की तुलना अन्य ज्ञात स्थलों से की जाए, तो उनके रहस्य को सुलझाने में सहायता मिल सकती है। तुलनात्मक अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि क्या ये निशान किसी सामान्य भूवैज्ञानिक घटना का हिस्सा हैं, या क्या वे किसी विशेष ऐतिहासिक या सांस्कृतिक संदर्भ से जुड़े हो सकते हैं। यदि समान संरचनाएँ अन्य पुरातात्विक स्थलों पर भी पाई जाती हैं, तो यह सिद्ध हो सकता है कि इनका निर्माण प्राचीन मानव सभ्यताओं द्वारा किया गया था।

    क्या गुल्यो का रहस्य कभी सुलझ पाएगा?

    आज भी ‘गुल्यो’ पत्थरों का रहस्य अनसुलझा बना हुआ है। स्थानीय मान्यताओं, वैज्ञानिक अनुसंधानों और ऐतिहासिक खोजों के बावजूद, इन रहस्यमयी निशानों की उत्पत्ति को लेकर कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला है। क्या यह पांडवों की विरासत है, किसी प्राचीन सभ्यता की निशानी है, या फिर प्रकृति का कोई अनूठा खेल यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है।

    भले ही इसका रहस्य अब तक उजागर नहीं हुआ हो, लेकिन एक बात निश्चित है, ‘गुल्यो’ पत्थर मारली गांव की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। इनकी रहस्यमय उपस्थिति ने न केवल गांववासियों को बल्कि शोधकर्ताओं और पर्यटकों को भी आकर्षित किया है। भविष्य में यदि इन पर और अधिक शोध किए जाएं, तो शायद हमें इन रहस्यमयी पत्थरों के पीछे की असली कहानी का पता चल सके।

    गोवा में अन्य प्रागैतिहासिक खोजें

    मारली गांव की यह खोज गोवा(Goa) में हुई पहली प्रागैतिहासिक खोज नहीं है। इससे पहले भी राज्य में कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल खोजे गए हैं:

    • उसगलीमल शिलालेख: दक्षिण गोवा के उसगलीमल गांव में कुसावती नदी के किनारे स्थित ये शिलालेख लगभग 4,000 से 6,000 वर्ष पुराने माने जाते हैं। इन पर बैल, भूलभुलैया और मानव आकृतियों जैसी 100 से अधिक विभिन्न आकृतियाँ उकेरी गई हैं।

    • माउसी गांव की शिला चित्रकारी: सतारी तालुका के माउसी गांव में ज़ारमे नदी के सूखे तल पर पशुओं, पदचिह्नों और कपूल्स (गोलाकार गड्ढे) की चित्रकारी मिली है, जो नवपाषाण काल की मानी जाती है।

    • काबो डी रामा का मेगालिथिक स्थल: काबो डी रामा किले के भीतर स्थित यह स्थल बड़े-बड़े पत्थरों के घेरे के लिए जाना जाता है, जिसे खगोलीय वेधशाला माना जाता है। इन पत्थरों की संरचना सूर्य और अन्य खगोलीय पिंडों की गतियों के अनुसार की गई है।

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