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    Home » Indira Gandhi Nahar History: राजस्थान की जीवनरेखा इंदिरा गांधी नहर का संक्षिप्त इतिहास
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    Indira Gandhi Nahar History: राजस्थान की जीवनरेखा इंदिरा गांधी नहर का संक्षिप्त इतिहास

    By March 11, 2025No Comments10 Mins Read
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    Indira Gandhi Canal History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    Indira Gandhi Canal History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

     History Of Indira Gandhi Canal: राजस्थान, जिसे मरुस्थलों की भूमि कहा जाता है, पानी की किल्लत के लिए जाना जाता है। यहां जल संकट के कारण कृषि और जनजीवन पर भारी प्रभाव पड़ता था। लेकिन इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) ने इस रेगिस्तानी राज्य में जल संकट को काफी हद तक कम कर दिया है। यह नहर राजस्थान की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है और इसे राज्य की जीवनरेखा माना जाता है।

    इंदिरा गांधी नहर का ऐतिहासिक परिचय

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    इंदिरा गांधी नहर (Indira Gandhi Canal) भारत की सबसे लंबी नहरों में से एक है, जिसका निर्माण राजस्थान (Rajasthan) के शुष्क और अर्ध-शुष्क इलाकों को सिंचाई और पेयजल उपलब्ध कराने के लिए किया गया था। इसका इतिहास 19वीं शताब्दी के अंत से जुड़ा है, जब बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने अपने राज्य में पानी की कमी की गंभीर समस्या को हल करने के लिए एक नहर बनाने का विचार किया।

    गंग नहर का निर्माण

    बीकानेर क्षेत्र में पानी की कमी हमेशा से एक चुनौती रही थी। 1899 में, महाराजा गंगा सिंह ने गंग नहर (Ganga Canal) का निर्माण करवाया, जो पंजाब से पानी लाकर बीकानेर की शुष्क भूमि को सिंचित करने के लिए बनाई गई थी। इस नहर के बनने से कृषि और पीने के पानी की उपलब्धता में सुधार हुआ, जिससे स्थानीय लोगों को बड़ी राहत मिली।

    इंदिरा गांधी नहर की योजना का जन्म

    हालांकि, गंग नहर केवल बीकानेर क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। महाराजा गंगा सिंह ने इसे जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी क्षेत्रों तक विस्तारित करने की योजना बनाई, लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी मृत्यु के कारण यह योजना पूरी नहीं हो सकी।

    आधुनिक नहर प्रणाली की दिशा में पहला कदम

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    1948 में, महाराजा गंगा सिंह (Maharaja Ganga Singh) के दरबार में एक इंजीनियर कंवर सेन ने सरकार को एक विस्तृत योजना का मसौदा प्रस्तुत किया, जिसमें एक बड़ी नहर के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया। यह नहर पंजाब से राजस्थान तक पानी लाने के उद्देश्य से तैयार की गई थी।

    स्वतंत्रता के बाद, 1948 में, बीकानेर (Bikaner) राज्य के सचिव एवं मुख्य अभियंता कंवर सेन (Kanwar Sen) ने इस विशाल नहर की योजना बनाई। पंजाब में व्यास और सतलुज नदियों के संगम पर स्थित हरिके बैराज के निर्माण के बाद, इस योजना को केंद्रीय जल विद्युत आयोग द्वारा स्वीकृति मिली, जिससे 1955 और 1981 में नदी जल वितरण समझौते हुए। इन्हीं समझौतों के आधार पर इंदिरा गांधी नहर को 75.9 लाख एकड़ फुट पानी के उपयोग का प्रस्ताव मिला।

    सरकार को इस परियोजना को मंजूरी देने में कई साल लग गए, लेकिन अंततः 31 मार्च 1958 को तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने नहर निर्माण कार्य का शुभारंभ किया। 11 अक्टूबर 1961 को इससे सिंचाई प्रारंभ हो गई, जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने नौरंगदेसर वितरिका में जल प्रवाहित किया। शुरुआत में इस नहर को ‘राजस्थान नहर’ के नाम से जाना जाता था

    इंदिरा गांधी नहर निर्माण का पहला चरण

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    इंदिरा गांधी नहर का निर्माण भारत के सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स में से एक था। यह नहर राजस्थान के शुष्क और रेगिस्तानी इलाकों में बनाई गई, जहां प्राकृतिक परिस्थितियाँ अत्यंत प्रतिकूल थीं।

    निर्माण की चुनौतियाँ

    थार रेगिस्तान एक विशाल और बंजर क्षेत्र है, जहां तापमान गर्मियों में 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। साथ ही, इस इलाके में तेज़ धूल भरी आंधियाँ चलती रहती हैं, जिससे निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न होती थी। इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, इंजीनियरों और मजदूरों ने अथक परिश्रम किया।

    उस समय आधुनिक मशीनरी सीमित थी, इसलिए नहर की खुदाई और निर्माण के लिए मजदूरों और जानवरों का सहारा लिया गया। मिट्टी और पत्थरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए ऊंटों और गधों का उपयोग किया गया। हजारों मजदूरों को इस कार्य में लगाया गया, जिन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण से इस विशाल परियोजना को साकार किया।

    इंजीनियरों की भूमिका और अथक परिश्रम

    इंजीनियर कंवर सेन और उनकी टीम ने अत्यधिक कठिनाइयों के बावजूद इस परियोजना को पूरा करने का संकल्प लिया। वे लगातार कई घंटों तक बिना थके काम करते रहे, ताकि यह नहर समय पर तैयार हो सके। रेगिस्तानी इलाकों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ा लक्ष्य था, और इसे हासिल करने के लिए इंजीनियरों को हर चुनौती का सामना करना पड़ा।

    नहर के निर्माण का पहला चरण (1961)

    लगभग चार वर्षों की कठिन मेहनत के बाद, 1961 में राजस्थान नहर में पहला पानी पहुंचा। यह नहर के निर्माण का पहला चरण था, जिसमें पंजाब के हरीके बैराज से पानी को हनुमानगढ़ जिले के मसीता तक लाया गया। इस हिस्से को राजस्थान फीडर का नाम दिया गया।

    राजस्थान फीडर के माध्यम से पानी को राजस्थान के अंदर लाना संभव हुआ, जिससे रेगिस्तानी इलाकों में सिंचाई की सुविधा मिल सकी और पेयजल आपूर्ति का नया स्रोत बना। यह राजस्थान की जल संकट समस्या को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

    राजस्थान की जीवनरेखा का विस्तार

    राजस्थान फीडर (Rajasthan Feeder) बनने के बाद, नहर को जैसलमेर तक ले जाने के लिए एक और नहर बनाने की आवश्यकता थी। इसे मुख्य नहर कहा गया, जिसकी कुल लंबाई 445 किलोमीटर थी। यह नहर राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पानी पहुंचाने का मुख्य माध्यम बनी।

    मुख्य नहर का निर्माण: एक कठिन चुनौती

    मुख्य नहर का निर्माण पहले से भी अधिक कठिन था। थार रेगिस्तान की भौगोलिक बनावट सीधी-सपाट नहीं है, बल्कि यहां ऊँचे-नीचे टीले और असमान सतह हैं। इस कारण पानी को ऊँचाई तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती थी।

    इंजीनियरों ने इस समस्या को हल करने के लिए लिफ्ट नहरों का निर्माण किया, जिनकी मदद से पानी को ऊँचाई पर ले जाया गया। इस तकनीक से यह सुनिश्चित किया गया कि नहर का पानी दूरस्थ रेगिस्तानी इलाकों तक भी पहुँच सके।

    1984 में पूरा हुआ काम

    लगभग तीन दशकों की अथक मेहनत और अत्याधुनिक इंजीनियरिंग तकनीकों के उपयोग के बाद, 1984 में मुख्य नहर का निर्माण पूरा हुआ। इसके पूरा होते ही थार रेगिस्तान के एक बड़े हिस्से में पानी पहुँचने लगा।

    इस नहर के कारण राजस्थान के लाखों लोगों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आया। जहाँ पहले खेती असंभव मानी जाती थी, वहाँ अब उपजाऊ खेत लहराने लगे। पेयजल की उपलब्धता में सुधार हुआ और स्थानीय लोगों को रोज़गार के नए अवसर मिले।

    इंदिरा गांधी नहर की संरचना और विशेषताएँ (Structure and features of Indira Gandhi Canal)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    इंदिरा गांधी नहर भारत की सबसे लंबी नहरों में से एक है, जिसकी कुल लंबाई 649 किलोमीटर है। इसमें दो प्रमुख हिस्से शामिल हैं:

    • राजस्थान फीडर (204 किलोमीटर) पंजाब के हरिके बैराज से शुरू होकर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के मसीतावाली हेड (Masitawali Head, Hanumangarh District) तक जाता है।

    • मुख्य नहर (445 किलोमीटर) मसीतावाली हेड (Masitawali Head) से शुरू होकर यह नहर राजस्थान के जैसलमेर (Jaisalmer) जिले के मोहनगढ़ (Mohangarh) तक पहुंचती है।

    • इसके अलावा, इस नहर से जुड़ी वितरिकाओं (छोटी नहरों) की कुल लंबाई लगभग 9,060 किलोमीटर है, जो राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाकों में जल आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं।

    • नहर की तल चौड़ाई 134 फीट, जबकि इसकी ऊपरी सतह की चौड़ाई 218 फीट है।

    • पानी की अधिकतम गहराई 21 फीट है।

    • नहर का जल प्रवाह क्षमता 18,500 क्यूसेक (घन फुट प्रति सेकंड) है, जो इसे विश्व की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में से एक बनाती है।

    इंदिरा गांधी नहर का नामकरण (Naming of Indira Gandhi Canal)

    इंदिरा गांधी नहर का नाम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सम्मान में रखा गया था। उन्होंने इस नहर परियोजना को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके निर्माण को प्राथमिकता देने के लिए सरकार को प्रोत्साहित किया।

    शुरुआत में इस नहर को “राजस्थान नहर” के नाम से जाना जाता था। लेकिन 2 नवंबर 1984 को इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद, सरकार ने उनके योगदान को स्मरण करते हुए इस नहर का नाम “इंदिरा गांधी नहर” कर दिया।

    इंदिरा गांधी नहर के प्रभाव (Effects of Indira Gandhi Canal)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों के लिए एक वरदान साबित हुई है। इस नहर ने जल संकट को कम करने, कृषि उत्पादन बढ़ाने और सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका प्रभाव निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में देखा जा सकता है:-

    1. कृषि में क्रांति

    इंदिरा गांधी नहर परियोजना ने राजस्थान के मरुस्थलीय इलाकों में कृषि, उद्योग और सामाजिक जीवन में ऐतिहासिक बदलाव लाए हैं। इस नहर के माध्यम से 15.37 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा मिली, जिससे कृषि उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई।

    नहर के जल से कपास, चना, मूँगफली, गेहूँ, चावल और सरसों जैसी फसलों की पैदावार बढ़ी, जिससे किसानों की आमदनी में सुधार हुआ और क्षेत्र की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।

    2. पीने के पानी की उपलब्धता

    इस नहर ने उन क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया, जहाँ पहले पानी के लिए कुओं और टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता था। राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और जोधपुर जिलों में इस नहर की वजह से लाखों लोगों को शुद्ध पेयजल मिलने लगा, जिससे स्वास्थ्य समस्याओं में भी कमी आई।

    3. वनस्पति और हरियाली में वृद्धि

    जहाँ पहले केवल रेत के टीले नजर आते थे, वहाँ अब हरे-भरे खेत और वनस्पति देखने को मिलती है। नहर के कारण वन विकास कार्यों में भी वृद्धि हुई है, जिससे पर्यावरण में सुधार हुआ है। लगभग 1.46 लाख हेक्टेयर भूमि में वन विकास कार्य किया गया है, जिससे मरुस्थल में हरियाली बढ़ी है और बालू के टीलों की समस्या कम हुई है।

    4. औद्योगिक विकास को बढ़ावा

    पानी की उपलब्धता बढ़ने से औद्योगिक इकाइयाँ भी स्थापित हुईं। कृषि आधारित उद्योग, जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण, कपास मिलें और दुग्ध उत्पादन उद्योग, इस क्षेत्र में तेजी से पनपे हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिले हैं।

    5. पशुपालन में वृद्धि

    नहर का पानी मिलने से पशुपालन में भी जबरदस्त सुधार हुआ है। चारे और पानी की उपलब्धता बढ़ने से दुग्ध उत्पादन बढ़ा, जिससे पशुपालकों की आय में वृद्धि हुई।

    6. जनसंख्या और शहरीकरण में वृद्धि

    नहर के निर्माण से पहले, इस क्षेत्र में पानी की भारी कमी थी, जिससे जनजीवन कठिनाइयों से भरा था। लेकिन अब, नहर के माध्यम से पेयजल, औद्योगिक उपयोग और कृषि के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध है, जिससे लोगों का जीवन स्तर सुधरा है। लगभग 1,500 गाँवों को पेयजल की सुविधा मिली है, और नए शहरों और गाँवों का विकास हुआ है, जिससे क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि हुई।

    उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

    हनुमानगढ़ क्षेत्र में जलभराव की समस्या देखी गई है, जिससे भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है। पानी के अत्यधिक जमाव के कारण खेतों की उत्पादकता घट रही है। इस समस्या के समाधान के लिए उचित जल निकासी प्रणाली विकसित की जा रही है, ताकि पानी का सही प्रवाह बना रहे और भूमि की उपजाऊ क्षमता बरकरार रहे।

    नहर के रखरखाव और जल वितरण में भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पानी के समान वितरण को सुनिश्चित करने और रिसाव को रोकने के लिए सरकार और संबंधित एजेंसियाँ लगातार प्रयास कर रही हैं।

    नहर की स्थिरता बनाए रखने के लिए जल संरक्षण और प्रबंधन के आधुनिक तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है। ड्रिप सिंचाई, जल पुनर्चक्रण और डिजिटल निगरानी जैसी तकनीकों के जरिए इन चुनौतियों का प्रभावी समाधान किया जा सकता है।

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