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    Home » Maurya Samrajya Ka Itihas: भारत के महानतम और विशाल साम्राज्य मौर्य का इतिहास और विस्तार
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    Maurya Samrajya Ka Itihas: भारत के महानतम और विशाल साम्राज्य मौर्य का इतिहास और विस्तार

    By January 30, 2025No Comments9 Mins Read
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    Maurya Empire History (Photo Credit – Social Media)

    Maurya Samrajya Ka Itihas In Hindi: मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का एक अत्यंत शक्तिशाली और संगठित साम्राज्य था, जिसकी स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ई.पू. में की। चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य(Chanakya) के कुशल मार्गदर्शन और नीतियों की मदद से न केवल मगध बल्कि पूरे उत्तर भारत में अपना साम्राज्य विस्तारित किया। इस साम्राज्य का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर था, जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे। मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी।

    मौर्य साम्राज्य को भारत का पहला महान साम्राज्य माना जाता है।मौर्य राजवंश ने लगभग 137 वर्षों तक पूरे भारतवर्ष में शासन किया। सम्राट अशोक, जो मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध शासक थे, ने अपनी शक्ति और प्रशासनिक कुशलता के लिए ख्याति प्राप्त की। मौर्य साम्राज्य का शासन कुशल प्रशासनिक तंत्र, सुदृढ़ सैन्य व्यवस्था और आर्थिक प्रगति के लिए जाना जाता था।

    यह साम्राज्य प्राचीन भारत के इतिहास में सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण युग था। मौर्य साम्राज्य ने न केवल भारत के राजनीतिक और आर्थिक विकास को प्रभावित किया, बल्कि इसका प्रभाव पूरी दुनिया में फैला।मौर्य साम्राज्य का प्रशासन अत्यंत संगठित था। चाणक्य की “अर्थशास्त्र” में मौर्य साम्राज्य की नीतियों और प्रशासन,का विस्तृत विवरण मिलता है। मौर्य साम्राज्य का पतन 185 ई.पू. में अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या के साथ हुआ, लेकिन इस साम्राज्य की प्रशासनिक नीतियां और सांस्कृतिक योगदान भारतीय इतिहास में अमर हैं।

    विशाल मौर्य�साम्राज्य�की स्थापना

    चन्द्रगुप्त मौर्य(Chandragupt Maurya) ने नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को पराजित कर 322 ई.पू. में मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी कुशल युद्धनीति और साहस के बल पर मगध के शक्तिशाली नंद साम्राज्य को हराया। उनका शासन मगध की राजधानी पाटलिपुत्र(आधुनिक पटना) से संचालित होता था। चन्द्रगुप्त की सफलता में उनके मंत्री और मार्गदर्शक चाणक्य की अहम भूमिका थी। चाणक्य ने “अर्थशास्त्र” नामक पुस्तक की रचना की, जिसमें प्रशासन, अर्थव्यवस्था, युद्धनीति, और राजधर्म के गहन सिद्धांत दिए गए हैं। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को न केवल राजनीतिक रूप से प्रशिक्षित किया, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी सक्षम बनाया। यह साम्राज्य गणराज्य व्यवस्था के विखंडन के बाद उभरकर एक संगठित राजतंत्र के रूप में स्थापित हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने छोटे-छोटे गणराज्यों और राज्यों को एकत्रित कर भारत में पहली बार एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। यह साम्राज्य भारत में एकता और संगठित शासन का प्रतीक बना, और इसके प्रशासनिक ढांचे ने भारतीय इतिहास को नई दिशा दी।

    मौर्य साम्राज्य का विस्तार

    सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य :- सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के प्रथम राजा थे जिनका कार्यकाल 322 – 298 ई.पू. तक रहा। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने अद्वितीय नेतृत्व और सैन्य कौशल से मौर्य साम्राज्य की नींव रखी और इसे प्राचीन भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया। यह साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक और पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैला था। उनके विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा-यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात जैसे क्षेत्र शामिल थे।

    सम्राट बिन्दुसार मौर्य :- सम्राट बिन्दुसार मौर्य(Bindusar Maurya), चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और मौर्य साम्राज्य के दूसरे शासक बने, जिनका कार्यकाल 298 – 273 ई.पू. तक रहा । उनके शासनकाल को मौर्य साम्राज्य के राजनीतिक स्थिरता और व्यापारिक संबंधों के विस्तार के लिए जाना जाता है। बिन्दुसार के समय में मौर्य साम्राज्य और पश्चिम एशिया के देशों के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत थे। जिसने साम्राज्य की अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति और राजनयिक संपर्क को सुदृढ़ किया। बिन्दुसार ने 25 वर्षों तक शासन किया और 273 ई.पू. में उनकी मृत्यु हो गई।

    सम्राट अशोक मौर्य :- सम्राट अशोक मौर्य(Ashok Maurya),बिन्दुसार मौर्य के पुत्र और मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक थे, जिनका कार्यकाल 272 – 236 ई.पू तक चला । सम्राट अशोक ने लगभग 37 वर्षो तक शासन किया । सम्राट अशोक के शासनकाल में यह साम्राज्य अपने चरम पर पहुँचा।अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते होने के साथ , मौर्य साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक भी थे। सम्राट अशोक के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग पूरे भाग (दक्षिण में वर्तमान तमिलनाडु को छोड़कर) तक हो गया। अशोक ने कलिंग युद्ध (261 ई.पू.) के बाद, उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और श्रीलंका, मध्य एशिया, और दक्षिण-पूर्व एशिया तक इसका प्रचार – प्रसार किया। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित शिलालेख , स्तंभ और स्तूप आज भी मौजूद है ।

    मौर्य साम्राज्य की आर्थिक, धार्मिक और राजनितिक स्थिति

    आर्थिक स्थिति:- मौर्य साम्राज्य का आर्थिक ढांचा काफी सुदृढ़ और सुव्यवस्थित था। इस विशाल साम्राज्य के एकीकरण से पूरे क्षेत्र में आर्थिक समन्वय हुआ, जिससे व्यापार, कृषि और अन्य उद्योगों में प्रगति संभव हो पाई। किसानों को स्थानीय स्तर पर कोई कर नहीं देना पड़ता था, लेकिन उन्हें एक निर्धारित और कड़ी निगरानी के तहत केंद्रीय प्रशासन को कर चुकाना होता था।

    मौर्य साम्राज्य में मुद्रा के रूप में “पण” का प्रचलन था, जो उस समय की प्रमुख मुद्रा थी। “पण” न केवल सामान्य व्यापार के लिए उपयोग में लाए जाते थे, बल्कि इन्हें प्रशासनिक कार्यों और सरकारी लेन-देन में भी प्रयोग किया जाता था। “अर्थशास्त्र” जैसे ग्रंथों में इस समय के वेतनमानों का भी उल्लेख मिलता है। उस समय का न्यूनतम वेतन 60 पण था, जबकि उच्चतम वेतन 48,000 पण तक था। इस प्रकार, मौर्य साम्राज्य में आर्थिक नीति और प्रशासन का एक सशक्त ढांचा था, जो साम्राज्य की समृद्धि और स्थायित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

    धार्मिक स्थिति :- छठी सदी ईसा पूर्व, मौर्य साम्राज्य के उदय से लगभग दो शताब्दी पहले, भारत में धार्मिक और दार्शनिक मंथन का दौर था। इस समय वैदिक धर्म से जुड़े लगभग 62 धार्मिक सम्प्रदाय अस्तित्व में थे। इनमें से कुछ प्रमुख सम्प्रदाय बाद में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के रूप में उभरे, जिन्होंने उस युग में वैदिक परंपराओं को चुनौती दी और नई धार्मिक विचारधारा का प्रचार किया। मौर्य काल में बौद्ध और जैन सम्प्रदायों ने वैदिक अनुष्ठानों, पशु बलि, और कठोर कर्मकांडों के विरोध में सरल और सुलभ धार्मिक मार्ग प्रस्तुत किया। मौर्य काल तक, इन धर्मों का पर्याप्त विकास हो चुका था और उन्होंने आम जनता के बीच अपनी जगह बना ली थी। तो वही भारत के दक्षिणी हिस्सों में वैदिक परंपरा से जुड़े शैव और वैष्णव सम्प्रदाय का विकास हो रहा था। अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था, लेकिन उन्होंने अन्य सम्प्रदायों, जैसे ब्राह्मण, शैव, और वैष्णव, के प्रति आदर और सहिष्णुता का भाव रखा। अशोक का दृष्टिकोण समन्वयवादी था, और उन्होंने सभी धर्मों को फलने-फूलने का अवसर प्रदान किया।

    राजनीतिक स्तिथि :- मौर्य साम्राज्य का राजनीतिक परिदृश्य अत्यधिक संगठित, सुदृढ़ और केंद्रीयकृत था। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 321 ईसा पूर्व में की थी, और इसका विस्तार उत्तर-पश्चिम में काबुल और कंधार से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक और पूर्व में बंगाल तक था। साम्राज्य का मुख्यालय पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) था, जो प्रशासन और शक्ति का केंद्र था। मौर्य साम्राज्य का प्रशासन पूरी तरह से केंद्रीयकृत था। सम्राट सर्वोच्च सत्ता का धारक था और साम्राज्य का हर निर्णय उसी के निर्देशन में होता था। साम्राज्य के राजनीतिक ढांचे को व्यवस्थित और शक्तिशाली बनाने में चाणक्य (कौटिल्य) की महत्वपूर्ण भूमिका रही। साम्राज्य को प्रांतों (महाजनपदों) में बांटा गया था, जिनका प्रशासन राजाओं के प्रतिनिधियों या गवर्नरों के अधीन था। ये गवर्नर सम्राट को उत्तरदायी होते थे। प्रमुख प्रांतों में तक्षशिला, उज्जयिनी, और सुवर्णगिरि शामिल थे। गाँव और नगर प्रशासन के लिए ग्राम प्रधान और नगर अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। हर प्रशासनिक स्तर पर कठोर निगरानी रखी जाती थी।

    मौर्य कल में न्यायिक व्यवस्था

    मौर्य साम्राज्य में न्यायिक व्यवस्था भी संगठित थी। सम्राट न्याय का अंतिम निर्णायक था, और “धर्म” और “दंड” के आधार पर अपराधों की सजा तय की जाती थी।

    मौर्य काल में सैन्य व्यवस्था�

    मेगस्थनीज के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना प्राचीन भारत की सबसे बड़ी और शक्तिशाली सेनाओं में से एक थी। यह सेना अत्यधिक संगठित और विविध प्रकार की सैन्य इकाइयों से सुसज्जित थी। मौर्य सेना का प्रबंधन अत्यंत संगठित था और इसे अत्यधिक वेतन और सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं। सेना में पैदल सैनिक (6,00,000), घुड़सवार(50,000), रथ(800), और हाथियों (9,000) का समावेश था जो मौर्य सेना को अजेय बनाती थी। चाणक्य के अर्थशास्त्र में सैन्य व्यवस्था का व्यापक वर्णन मिलता है, जो बताता है कि मौर्य साम्राज्य में सैन्य बल और प्रशासन को अत्यधिक प्राथमिकता दी जाती थी। इसके अलावा चाणक्य ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में उल्लेख किया है कि मौर्य साम्राज्य के पास नौसेना भी थी। यह सेना बड़े आकार और विविधता के कारण अजेय मानी जाती थी।

    मौर्य साम्राज्य की कूटनीति और विदेश नीति :- मौर्य साम्राज्य की कूटनीति और विदेश नीति सैन्य शक्ति पर आधारित थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर को हराकर पश्चिमी सीमाओं को सुरक्षित किया और उनसे मित्रता स्थापित की। सम्राट अशोक के समय, साम्राज्य की नीति अहिंसा और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर केंद्रित हो गई। उन्होंने बौद्ध धर्म के माध्यम से अपने प्रभाव को दूरस्थ क्षेत्रों तक फैलाया।

    मौर्य साम्राज्य का पतन

    232 ई.पू. में सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य की ताकत धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगी। उत्तराधिकारी शासक अपनी कमजोरी और प्रशासनिक अक्षमता के कारण साम्राज्य के केंद्रीय नियंत्रण को बनाए रखने में असफल रहे। विशाल साम्राज्य को एकजुट रखना कठिन होता गया। अलग-अलग क्षेत्रों में स्थानीय गवर्नरों और शासकों ने स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी, जिससे मौर्य साम्राज्य का विघटन हुआ। बृहद्रथ मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक थे। उनका शासनकाल कमजोर और प्रभावहीन था, और साम्राज्य केवल नाममात्र का रह गया था। 185 ई.पू. में, बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उनकी हत्या कर दी। इस घटना के साथ मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया, और शुंग वंश की स्थापना हुई। पुष्यमित्र ने खुद को शुंग साम्राज्य का पहला शासक घोषित किया।

    मौर्य साम्राज्य, जिसने लगभग 137 वर्षों तक भारत में शासन किया, सम्राट बृहद्रथ की हत्या के साथ इस विशाल साम्राज्य का पतन हुआ । मौर्य साम्राज्य के पतन के बावजूद, यह भारतीय इतिहास का पहला महान साम्राज्य था, जिसने राजनीतिक एकीकरण, प्रशासनिक व्यवस्था, और धार्मिक सहिष्णुता की नींव रखी। और इसका प्रभाव भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर लंबे समय तक रहा।

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