
United Nations History (Image Credit-Social Media)
United Nations History (Image Credit-Social Media)
History Of United Nations: संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) विश्व की सबसे प्रमुख और प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी। प्रारंभ में 51 सदस्य देशों के साथ शुरू हुआ यह संगठन आज 190 से अधिक देशों को साथ लेकर विश्व राजनीति, आर्थिक विकास, मानवाधिकारों की रक्षा, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना और एक शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण एवं समावेशी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करना है। न्यूजट्रैक के इस लेख में हम इस अंतरराष्ट्रीय संगठन के गठन, उसके उद्देश्यों और समय के साथ उसकी बदलती भूमिका का गहराई से विश्लेषण करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की पृष्ठभूमि

संयुक्त राष्ट्र का गठन किसी एक दिन की उपज नहीं था, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता, दो विश्व युद्धों की विभीषिका और शांति प्रयासों के लंबे अनुभव का परिणाम था। प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) के बाद 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना वर्साय संधि के तहत की गई थी। जिसका उद्देश्य भविष्य में युद्धों को रोकना और शांति बनाए रखना था। हालांकि, निर्णायक शक्ति की कमी और प्रमुख देशों के असहयोग के कारण यह संस्था द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने में असफल रही। लीग ऑफ नेशंस की विफलता और द्वितीय विश्व युद्ध (1939–1945) की विनाशकारी घटनाओं से सबक लेते हुए, विश्व नेताओं को एक मजबूत और प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन की जरूरत महसूस हुई। और इसी सोच के तहत 1945 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थापना की गई, ताकि वैश्विक शांति, सुरक्षा और सहयोग को स्थायी रूप से सुनिश्चित किया जा सके। जिसका मूल उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखना, देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना और मानवाधिकारों की रक्षा करना तय किया गया।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना
संयुक्त राष्ट्र की नींव धीरे-धीरे रखी गई। इस प्रक्रिया के मुख्य चरण निम्नलिखित थे:
अटलांटिक चार्टर (Atlantic Charter) – अगस्त 1941 में संयुक्त राष्ट्र की आधारशिला तब रखी गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए। यह दस्तावेज़ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता था। यह वह दस्तावेज़ था जिसमें युद्ध के बाद की दुनिया के लिए शांति, सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और आत्मनिर्णय जैसे मूलभूत सिद्धांतों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। अटलांटिक चार्टर ने न केवल मित्र राष्ट्रों को साझा उद्देश्यों के तहत एकजुट किया, बल्कि यह संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम साबित हुआ।
संयुक्त राष्ट्र घोषणा (Declaration by United Nations) – 1 जनवरी 1942 को अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ और चीन सहित 26 देशों ने ‘संयुक्त राष्ट्र घोषणा’ (Declaration of United Nations) पर हस्ताक्षर किए। यह घोषणा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान साझा लक्ष्यों और सहयोग के संकल्प का प्रतीक थी, और इसे संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की दिशा में एक अहम मील का पत्थर माना जाता है।इस घोषणा में इन देशों ने धुरी शक्तियों (Axis Powers) के खिलाफ एकजुट होकर युद्ध जारी रखने तथा युद्ध के बाद एक नई अंतरराष्ट्रीय संस्था के गठन का संकल्प लिया। यह पहली बार था जब ‘United Nations’ शब्द का आधिकारिक रूप से प्रयोग किया गया, जिसने आगे चलकर 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के रूप में आकार लिया।

डम्बर्टन ओक्स सम्मेलन (Dumbarton Oaks Conference) – अगस्त से अक्टूबर 1944 के बीच वॉशिंगटन डी.सी. के डम्बर्टन ओक्स नामक स्थान पर डम्बर्टन ओक्स सम्मेलन आयोजित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यप्रणाली को निर्धारित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम था। इस सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ और चीन के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन के ढांचे पर चर्चा की जो युद्ध के बाद विश्व शांति बनाए रखने, सुरक्षा सुनिश्चित करने और सहयोग को बढ़ावा देने में सक्षम हो। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख संस्थाओं जैसे सुरक्षा परिषद, महासभा और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की संरचना और अधिकारों की रूपरेखा तय की गई।
सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन (San Francisco Conference) – 25 अप्रैल से 26 जून 1945 के बीच सैन फ्रांसिस्को में आयोजित सम्मेलन में 50 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मसौदे को अंतिम रूप दिया। इस ऐतिहासिक सम्मेलन में डम्बर्टन ओक्स सम्मेलन में तैयार किए गए प्रस्तावों के आधार पर चर्चा की गई, संशोधन किए गए और अंततः संयुक्त राष्ट्र के गठन की दिशा में अंतिम कदम उठाया गया। 26 जून 1945 को सभी 50 देशों ने चार्टर पर हस्ताक्षर किए, जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ की औपचारिक नींव रखी गई। यही चार्टर आज भी संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली और उद्देश्यों का मूल आधार है।
संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक रूप – 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र आधिकारिक रूप से अस्तित्व में आया, जब आवश्यक संख्या में देशों (कम-से-कम 29) ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर की पुष्टि कर दी। इसी के साथ एक नए और अधिक प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य वैश्विक शांति बनाए रखना, देशों के बीच सहयोग बढ़ाना और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करना था। इस ऐतिहासिक दिन को हर वर्ष ‘संयुक्त राष्ट्र दिवस’ (United Nations Day) के रूप में मनाया जाता है, जो विश्व समुदाय को इसकी भूमिका और महत्व की याद दिलाता है।
संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य और सिद्धांत

संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य विश्व में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना है। यह संगठन राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के साथ-साथ आपसी सम्मान, समान अधिकार और आत्मनिर्णय के सिद्धांतों पर आधारित सहयोग को प्रोत्साहित करता है। संयुक्त राष्ट्र वैश्विक स्तर पर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय भूमिका निभाता है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और आपदा राहत जैसे क्षेत्र शामिल हैं। साथ ही यह संस्था जाति, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव के बिना मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं की रक्षा और प्रोत्साहन के लिए प्रतिबद्ध है।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2 के तहत कुछ बुनियादी सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं, जिनमें सदस्य देशों की संप्रभुता और समानता का सम्मान, अंतरराष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान, बल प्रयोग या धमकी से परहेज, और चार्टर के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रूप से शामिल है। ये सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली की नींव हैं और एक शांतिपूर्ण, न्यायसंगत तथा सहयोगात्मक वैश्विक व्यवस्था की ओर मार्गदर्शन करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख संस्थाएँ
संयुक्त राष्ट्र छह प्रमुख अंगों के माध्यम से अपने कार्यों का संचालन करता है, जिनमें से प्रत्येक की विशिष्ट भूमिका और जिम्मेदारियाँ होती हैं।
सुरक्षा परिषद (Security Council) – यह संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है, जिसका मुख्य कार्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना है। इसमें कुल 15 सदस्य होते हैं 5 स्थायी सदस्य (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस) और 10 अस्थायी सदस्य, जिन्हें महासभा दो वर्ष के लिए चुनती है। सुरक्षा परिषद को प्रतिबंध लगाने, सैन्य हस्तक्षेप की अनुमति देने, और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के समाधान के लिए विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
महासभा (General Assembly) – यह संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च नीति-निर्माण संस्था है, जिसमें सभी सदस्य देशों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है—हर देश को एक वोट मिलता है। महासभा वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करती है, नीतिगत सिफारिशें देती है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाती है।
आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) – यह परिषद वैश्विक आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय मामलों पर कार्य करती है। यह संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न विशेषज्ञ एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करती है और सतत विकास, मानवाधिकार, स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रयासों को दिशा देती है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) – संयुक्त राष्ट्र का यह न्यायिक अंग हेग, नीदरलैंड में स्थित है। इसका कार्य देशों के बीच कानूनी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना और अंतरराष्ट्रीय कानून की व्याख्या प्रदान करना है।
सचिवालय (Secretariat) – यह संयुक्त राष्ट्र का प्रशासनिक अंग है, जिसका नेतृत्व महासचिव करते हैं। सचिवालय संगठन के दैनिक कार्यों का संचालन करता है, रिपोर्ट तैयार करता है और विभिन्न अंगों को आवश्यक सहायता प्रदान करता है।
ट्रस्टीशिप परिषद (Trusteeship Council) – इस परिषद की स्थापना उपनिवेशों को स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन जैसे-जैसे सभी ट्रस्टीशिप क्षेत्र स्वतंत्र हो गए, इसका कार्य भी समाप्त हो गया। 1994 में परिषद ने अपनी सभी गतिविधियाँ स्थगित कर दीं।
इन सभी अंगों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र विश्व में शांति, विकास और सहयोग की दिशा में कार्य करता है।
संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख उपलब्धियाँ

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना के बाद से वैश्विक शांति और मानवता की भलाई के लिए कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं।
शांति सेना (Peacekeeping Forces) – संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में शांति सेना तैनात कर युद्धविराम लागू करने, हिंसा को रोकने और स्थायी शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ये सेनाएँ युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण और नागरिकों की सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
मानवाधिकार की सुरक्षा – 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित ‘मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ (UDHR) आज भी दुनिया भर में मानवाधिकारों के संरक्षण की आधारशिला है। इस घोषणा ने जाति, धर्म, भाषा, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ वैश्विक चेतना को मजबूती दी है।
स्वास्थ्य और शिक्षा – संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ जैसे WHO, UNICEF और UNESCO ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, शिक्षा का प्रसार, और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सराहनीय कार्य किया है। इन संस्थाओं की पहलें विशेषकर विकासशील देशों में जीवन स्तर सुधारने में सहायक रही हैं।
जलवायु परिवर्तन और सतत विकास – पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र अग्रणी भूमिका निभा रहा है। पेरिस जलवायु समझौता और 2030 के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जो पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने और एक टिकाऊ भविष्य के निर्माण की दिशा में वैश्विक प्रयासों को संगठित करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की आलोचनाएं और चुनौतियां
हालाँकि संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक शांति, सहयोग और विकास के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं, फिर भी इसकी कार्यप्रणाली और संरचना को लेकर समय-समय पर आलोचनाएँ होती रही हैं। सबसे प्रमुख आलोचना सुरक्षा परिषद में पाँच स्थायी सदस्य देशों अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस को प्राप्त वीटो अधिकार को लेकर है। इस विशेषाधिकार के चलते ये देश किसी भी प्रस्ताव को अकेले ही रोक सकते हैं, भले ही अन्य सभी सदस्य उसके पक्ष में हों। यह शक्ति कई बार आवश्यक निर्णयों को अवरुद्ध कर देती है और संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता का कारण बनती है।
दूसरी बड़ी आलोचना विकासशील देशों की सीमित भागीदारी को लेकर है। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में न तो अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई प्रतिनिधित्व है, न ही भारत जैसे जनसंख्या-बहुल और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का। इससे वैश्विक निर्णयों में संतुलन और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते हैं।
इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र को कई बार वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे शांति मिशनों और अन्य विकासात्मक कार्यक्रमों की गति प्रभावित होती है। यह संस्था के संचालन की क्षमता को सीमित करता है।
निष्क्रियता भी एक बड़ी आलोचना का विषय रही है, विशेषकर तब जब रोहिंग्या संकट, सीरिया युद्ध या रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे मामलों में संयुक्त राष्ट्र अपेक्षित हस्तक्षेप नहीं कर पाया। सुरक्षा परिषद में वीटो की शक्ति और सदस्य देशों के आपसी हितों के टकराव ने अक्सर संगठन को निर्णायक कदम उठाने से रोका है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका
