इसराइल-ईरान के बीच युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं और इसका असर दुनिया की जेब पर पड़ना तय है। तेल की क़ीमतों में उछाल, महंगाई की मार और शेयर बाज़ार में हलचल। ऐसे हालात में क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था इस तूफ़ान को संभाल पाएगी?
मध्य पूर्व में इसराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से पूरी दुनिया में हलचल है। इसराइल द्वारा ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हाल के हमलों और ईरान की जवाबी कार्रवाई ने एक बड़े युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया है। यदि यह तनाव पूरी तरह युद्ध में बदल जाता है तो इसका असर न केवल मध्य पूर्व पर, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
तेल की क़ीमतों में उछाल
मध्य पूर्व दुनिया के तेल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा है। ईरान और होर्मुज़ की खाड़ी जैसे उसके आसपास के क्षेत्र से दुनिया का लगभग 25% तेल व्यापार होता है। यदि इसराइल और ईरान के बीच युद्ध और बढ़ता है तो तेल की आपूर्ति में रुकावट आ सकती है। नौवहन मार्ग बंद हो सकते हैं और तेल टैंकरों पर हमले का ख़तरा बढ़ सकता है। इससे तेल की क़ीमतें आसमान छू सकती हैं। इसका असर हाल में दिखने भी लगा है। पिछले कुछ दिनों में ही तेल की क़ीमतों में 7-13% की बढ़ोतरी देखी गई है। सोमवार को कच्चे तेल का दाम बढ़कर 74.60 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गया। आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि यदि युद्ध और बढ़ता है तो तेल की क़ीमतें और भी तेज़ी से बढ़ सकती हैं। इससे भारत जैसे देशों में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की क़ीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे आम लोगों का खर्चा बढ़ेगा।
महंगाई का ख़तरा
तेल की क़ीमतें बढ़ने से महंगाई में भी इज़ाफा होगा। तेल का इस्तेमाल न केवल गाड़ियों के लिए, बल्कि सामानों के उत्पादन और उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए भी होता है। यदि तेल महंगा होगा तो ट्रांसपोर्ट का खर्च बढ़ेगा, जिससे खाने-पीने की चीज़ों से लेकर रोज़मर्रा के सामान तक की क़ीमतें बढ़ सकती हैं। इससे भारत जैसे देशों में मध्यम वर्ग और ग़रीब परिवारों पर बोझ बढ़ेगा।
बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने हाल ही में यूनाइटेड किंगडम की आधार ब्याज दर को 4.25 प्रतिशत तक कम कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी महीने एक बड़ा फ़ैसला लेते हुए अपनी प्रमुख रेपो रेट को 50 बेसिस पॉइंट्स यानी 0.50% कम करके 5.5% कर दिया। हालाँकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ट्रंप के ‘टैरिफ़ वार’ के मद्देनज़र दरों में कटौती से परहेज किया है।
वैश्विक व्यापार पर असर
इसराइल और ईरान के बीच युद्ध से वैश्विक व्यापार में रुकावट आ सकती है। होर्मुज़ की खाड़ी दुनिया के तेल व्यापार का एक बड़ा रास्ता है। दोनों देशों के बीच तनाव से यदि यह रास्ता बंद होता है तो जहाज़ों को लंबा रास्ता लेना पड़ सकता है। इससे सामान लाने-ले जाने की लागत बढ़ेगी और बीमा की क़ीमतें भी बढ़ सकती हैं। इससे भारत जैसे उन देशों का निर्यात प्रभावित हो सकता है जो तेल के आयात पर निर्भर हैं। भारत से कपड़ा, चावल और मसालों जैसे निर्यात होने वाले सामानों पर इसका असर दिख सकता है।
शेयर बाज़ार में उतार-चढ़ाव
दोनों देशों के बीच युद्ध की ख़बरों से शेयर बाज़ार में भी हलचल मची है। इससे भारत का शेयर बाज़ार भी काफ़ी प्रभावित हुआ है। कुछ जानकारों का कहना है कि निवेशक डर के मारे अपने पैसे सोना या अमेरिकी डॉलर जैसे सुरक्षित जगहों पर लगा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसी का असर है कि सोने का भाव चढ़ गया है, डॉलर और मज़बूत हुआ है और इससे शेयर बाज़ार में गिरावट देखी जा रही है। हालाँकि, कुछ बाज़ारों में अभी तक इस तनाव का ज़्यादा असर नहीं पड़ा है, लेकिन अगर युद्ध बढ़ता है तो वैश्विक शेयर बाज़ारों में बड़ी गिरावट हो सकती है। भारत में सेंसेक्स और निफ्टी जैसे बाज़ार भी प्रभावित हो सकते हैं।
वैश्विक सप्लाई चेन पर असर
युद्ध से वैश्विक सप्लाई चेन भी प्रभावित हो सकती है। यदि मध्य पूर्व में जहाज़ों की आवाजाही रुकती है तो कई देशों में सामान की कमी हो सकती है।
विमानन क्षेत्र पर क्या प्रभाव?
कई एयरलाइनों ने मध्य पूर्व में उड़ानें निलंबित या रद्द कर दी हैं और कुछ देशों ने अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है।
मध्य पूर्व की सबसे बड़ी एयरलाइन एमिरेट्स ने कहा कि उसने 30 जून तक इराक, जॉर्डन, लेबनान और ईरान से आने-जाने वाली उड़ानें निलंबित कर दी हैं। एतिहाद एयरवेज ने अबू धाबी और तेल अवीव के बीच उड़ानें रद्द कर दीं। क़तर एयरवेज ने ईरान, इराक और सीरिया की उड़ानें अस्थायी रूप से रद्द कर दी हैं और यात्रियों को यात्रा से पहले अपनी उड़ानों की स्थिति की जाँच करने की सलाह दी गई है। ईरान की आधिकारिक समाचार एजेंसी IRNA ने बताया कि विमानन प्राधिकरण ने अगली सूचना तक देश के हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है।
भारत पर क्या होगा असर?
भारत अपनी तेल ज़रूरतों का 80% से ज़्यादा आयात करता है। इस आयात में मध्य पूर्व के देशों का बड़ा हिस्सा है। यदि तेल की क़ीमतें बढ़ती हैं, तो भारत का आयात बिल बढ़ेगा, जिससे रुपये की क़ीमत पर दबाव पड़ सकता है। इससे सामान और सेवाएँ और महंगी हो सकती हैं। साथ ही भारत के मध्य पूर्व में रहने वाले लाखों प्रवासी कामगारों पर भी ख़तरा बढ़ सकता है। यदि युद्ध बढ़ता है तो प्रवासी कामगारों की सुरक्षा और वापसी एक बड़ी चुनौती होगी।
जानकारों का कहना है कि यदि इसराइल और ईरान का युद्ध सीमित रहता है तो इसका असर कम हो सकता है। लेकिन अगर यह एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध में बदलता है और अन्य देश भी शामिल हो जाते हैं तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान हो सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बाज़ार अभी इस ख़तरे को पूरी तरह समझ नहीं पा रहे हैं।
इसराइल और ईरान के बीच युद्ध की आशंका ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। तेल की क़ीमतों में उछाल, महंगाई, व्यापार में रुकावट और शेयर बाज़ार की अस्थिरता जैसे प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो भारत जैसे देश भी इससे अछूता नहीं रहेंगे।