कैनेडियन रॉकीज में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इजरायल और ईरान के बीच तनाव को कम करने की अपील करने वाले एक ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। इस कदम ने संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच शुरुआती मतभेद पैदा कर दिए हैं।
रॉयटर्स के अनुसार, यूरोपीय अधिकारियों द्वारा तैयार इस मसौदा बयान में कहा गया था कि इसराइल को आत्मरक्षा का अधिकार है, लेकिन ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसमें दोनों पक्षों से नागरिकों की सुरक्षा और क्षेत्र में शांति के लिए G7 की व्यापक प्रतिबद्धता को दोहराया गया था।
व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने रॉयटर्स को पुष्टि करते हुए कहा, “राष्ट्रपति ट्रम्प के नेतृत्व में, संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व में शांति बहाली के प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रम्प यह सुनिश्चित करने के लिए काम करते रहेंगे कि ईरान परमाणु हथियार हासिल न कर सके।”
ईरान यह युद्ध नहीं जीत रहाः ट्रम्प
कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ द्विपक्षीय बैठक की शुरुआत में ट्रम्प ने पत्रकारों से कहा कि ईरान को तुरंत बातचीत शुरू करनी चाहिए। द गार्जियन के अनुसार, उन्होंने कहा, “मैं कहूंगा कि ईरान यह युद्ध नहीं जीत रहा है, और उन्हें बात करनी चाहिए, और उन्हें तुरंत बात करनी चाहिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।”
ट्रम्प ने इनकार क्यों किया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इनकार के पीछे कई कारण हो सकते हैं।
रणनीतिक असहमति: रॉयटर्स के अनुसार, यूरोपीय अधिकारियों द्वारा तैयार मसौदा बयान में इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार को मान्यता दी गई थी, साथ ही यह जोर दिया गया था कि ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ट्रम्प का इनकार संभवतः इस बात को दर्शाता है कि वह इस नजरिए को पूरी तरह समर्थन नहीं करते या मिडिल ईस्ट नीति पर अधिक आक्रामक रुख अपनाना चाहते हैं।
ईरान पर दबाव: ट्रम्प ने कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ बैठक में कहा, “ईरान यह युद्ध नहीं जीत रहा, और उन्हें तुरंत बातचीत शुरू करनी चाहिए।” यह बयान, जैसा कि द गार्जियन ने बताया, दर्शाता है कि ट्रम्प ईरान पर कूटनीतिक और संभवतः सैन्य दबाव बनाए रखना चाहते हैं। यानी वो अमेरिका को ही युद्ध रुकवाने का क्रेडिट दिलाना चाहते हैं। जैसा वो भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बारे में बयान देते रहते हैं।
अमेरिकी नेतृत्व को मजबूत करना: व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका वैश्विक शांति बहाली और ईरान को परमाणु हथियार से रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। ट्रम्प शायद उस ड्राफ्ट वाले बयान को कमजोर या बहुत सामान्य मानते हों, जो उनकी विदेश नीति के सख्त रुख को पूरी तरह प्रतिबिंबित नहीं करता।
मतभेद की आड़ में प्रभुत्व का प्रदर्शन: संयुक्त बयान G7 देशों (अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके) के बीच एकता दिखाने का प्रयास था। ट्रम्प का इनकार मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव को संभालने के तरीकों पर G7 सदस्यों के बीच मौजूदा मतभेदों को उजागर करता है। यह उनके लिए सहयोगियों के साथ अलग रुख अपनाकर अमेरिकी प्रभुत्व को रेखांकित करने का एक तरीका हो सकता है।
राजनीतिक संदेश: ट्रम्प का यह कदम उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत करने का हिस्सा हो सकता है, जिसमें वह एक सख्त और स्वतंत्र नेता के रूप में दिखना चाहते हैं, जो G7 जैसे बहुपक्षीय मंचों के बजाय अमेरिका की एकतरफा नीतियों को प्राथमिकता देते हैं।
संयुक्त बयान से G7 सदस्यों के बीच एकता दिखने की उम्मीद थी, लेकिन ट्रम्प के इस इनकार ने मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव को संभालने के तरीकों पर मौजूद मतभेदों को उजागर कर दिया है।
सम्मेलन सोमवार को अल्बर्टा में शुरू हुआ, जहां कनाडा, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूके के नेता इजरायल-ईरान संघर्ष, व्यापार तनाव और ऊर्जा सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए हैं।
बहरहाल, ट्रम्प का G7 संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर न करना उनकी विदेश नीति की प्राथमिकताओं, विशेष रूप से ईरान के प्रति सख्त रवैये और मध्य पूर्व में अमेरिकी नेतृत्व को बढ़ावा देने की रणनीति को दर्शाता है। यह कदम G7 के अन्य सदस्यों के साथ मतभेदों को भी उजागर करता है, जो क्षेत्र में शांति और कूटनीति पर अधिक जोर दे रहे हैं।