अडानी मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए संसद में बने गतिरोध के बीच अब ‘एक देश एक चुनाव’ का मुद्दा सामने आ गया है। सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक को मंजूरी दे दी। इस विधेयक को संसद के चालू शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। एक साथ चुनाव कराना भाजपा के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में किए गए प्रमुख वादों में से एक है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मानने के क़रीब तीन महीने बाद एक साथ चुनाव कराने के लिए मंजूरी दी गई। दरअसल, कैबिनेट द्वारा गुरुवार को दो विधेयकों को मंजूरी दी गई। एक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान संशोधन विधेयक, और दूसरा दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर में विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए साधारण विधेयक।
पता चला है कि दोनों विधेयकों को मौजूदा संसद सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भाजपा के एक सूत्र ने कहा, ‘लेकिन यह सिर्फ पेश किया जाएगा और कुछ ही मिनटों में यह संयुक्त संसदीय समिति के पास चला जाएगा, जिसे सदन द्वारा गठित किया जाएगा।’ बीजेपी ने साफ़ तौर पर घोषणा की है कि वह एक देश एक चुनाव को लागू कराएगी, लेकिन तय समय-सीमा नहीं है कि एक साथ चुनाव 2029 में शुरू होंगे या 2034 में।
रिपोर्ट है कि कैबिनेट ने फिलहाल सिर्फ़ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की मंजूरी दी है। यानी फिलहाल पंचायत और नगर पालिका चुनाव साथ नहीं होंगे। इनको बाद के चरणों में शामिल किए जाने की संभावना है। यही विचार मार्च में कोविंद समिति द्वारा दिया गया था। यह उसकी सिफारिशों के पहले चरण के अनुरूप है। समिति ने दो-चरणीय प्रक्रिया का प्रस्ताव दिया था: पहला, राष्ट्रीय और राज्य चुनावों को मिलाना, उसके बाद संयुक्त चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराना।
कहा जा रहा है कि ‘एक देश एक चुनाव’ से मौजूदा चरणबद्ध चुनाव प्रणाली के तहत खर्च होने वाले समय, लागत और संसाधनों को कम करने में मदद मिलेगी और इसे एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है।
हालाँकि, सरकार व्यापक समर्थन प्राप्त करने के प्रति आशावादी है, लेकिन इस प्रस्ताव पर तीखी राजनीतिक बहस छिड़ने की संभावना है, तथा विपक्षी दल इसकी व्यवहार्यता और संघवाद पर इसके प्रभाव के बारे में चिंता जता सकते हैं।
विपक्ष ने लगातार इस प्रस्ताव की आलोचना की है और इसे अव्यावहारिक, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया है। उनका तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने की तार्किक और दूसरी चुनौतियां शासन को बाधित कर सकती हैं और संघीय सिद्धांतों को कमजोर कर सकती हैं।
आलोचना के बावजूद सरकार ने कहा है कि मौजूदा प्रणाली चुनाव से पहले आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने के कारण विकास में बाधा पड़ती है। कोविंद समिति की रिपोर्ट ने एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को लागू करने से पहले राष्ट्रीय संवाद शुरू करने की सलाह दी है। रिपोर्ट यह भी सुझाव देती है कि इसमें शामिल जटिलताओं को देखते हुए इस तरह के सुधार को 2029 के बाद ही लागू किया जा सकता है। लेकिन लगता है कि इस विधेयक को जल्द ही पेश करने की तैयारी है।
विधेयक के पेश होने के साथ ही सभी की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि क्या सरकार इस ऐतिहासिक चुनाव सुधार पर आम सहमति बनाने के लिए राजनीतिक बाधाओं को पार कर पाएगी।
कहा जा रहा है कि सरकार अब विधेयक के लिए आम सहमति बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है और इसे विस्तृत विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी को भेजने की योजना बना रही है।
जेपीसी से राजनीतिक दलों, राज्य विधानसभा अध्यक्षों से बातचीत करने और यहां तक कि जनता की राय जाने जाने की संभावना है। हालांकि जनता की भागीदारी के तरीकों को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है।
‘एक देश एक चुनाव’ के ढांचे को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की ज़रूरत होगी। खासकर संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत के साथ कम से कम छह विधेयक पारित करने पड़ सकते हैं। एनडीए को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में साधारण बहुमत मिला है, संवैधानिक संशोधनों के लिए ज़रूरी संख्या हासिल करना उसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
बता दें कि राज्यसभा में एनडीए के पास 112 सीटें हैं, लेकिन दो तिहाई बहुमत के लिए उसे 164 सीटों की ज़रूरत है। इसी तरह, लोकसभा में गठबंधन की 292 सीटें ज़रूरी 364 सीटों से कम हैं। सरकार की रणनीति उसके गठबंधन के बाहर के दलों से समर्थन जुटाने और मतदान के दौरान अनुकूल मतदान करने पर निर्भर हो सकती है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)