जस्टिस यशवंत वर्मा के घर के आधिकारिक आवास पर लगी आग ने एक सनसनीखेज रहस्य उजागर किया है! आधे जले नोटों का ढेर, ग़ायब हुई नकदी और गवाहों के चौंकाने वाले बयान- जाँच पैनल ने इसे बेहद संदिग्ध क़रार दिया है। सबसे बड़ा सवाल: जस्टिस वर्मा ने क्यों नहीं की कोई शिकायत? क्या यह एक साज़िश है या कुछ और?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लीजिए कि यह घटना क्या थी और इस मामले में जाँच पैनल ने क्या कहा है। 14 मार्च 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना हुई थी। आग बुझाने के लिए पहुँची दमकल विभाग की टीम और पुलिस ने मौक़े पर आधे जले हुए 500 रुपये के नोट और बड़ी मात्रा में नकदी देखी। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो सामने आए, जिनमें जले हुए नोटों के ढेर दिखाई दे रहे थे। इसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया।
17 मार्च को जस्टिस वर्मा ने इन नोटों की तस्वीरें देखीं और इसे एक षड्यंत्र क़रार दिया। उन्होंने दावा किया कि यह उनकी छवि को धूमिल करने की साज़िश हो सकती है। इस मामले के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की आंतरिक जाँच समिति बनाई थी।
इस समिति ने कहा कि 14 मार्च को दिल्ली में उनके सरकारी आवास में आग लगने के दौरान वहाँ नकदी मिलने का मतलब है कि उनपर इसकी ज़िम्मेदारी है। समिति ने 64 पेज की रिपोर्ट दी है। इसे सबसे पहले द लीफलेट ने प्रकाशित किया। रिपोर्ट में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के जस्टिस शील नागु, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन ने कहा कि जब सरकार किसी पब्लिक सर्वेंट को आवास देती है तो उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह वहाँ ऐसी चीजें न रखे, जिनसे आम लोगों को शक हो।
इसके बाद सीजेआई ने इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा। अब सरकार ने संसद के आगामी मानसून सत्र में जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
जाँच पैनल ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें से कम से कम 10 गवाहों ने पुष्टि की कि उन्होंने जस्टिस वर्मा के आवास पर आधे जले हुए या पूरी तरह जले हुए नोट देखे थे। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार समिति ने जिन 55 गवाहों की जाँच की उनमें जस्टिस वर्मा की बेटी भी शामिल थी। अग्निशमन और पुलिस कर्मियों के बयानों के साथ ही वीडियो और तस्वीरों से पुष्टि हुई कि स्टोररूम के फर्श पर 500 रुपये के नोटों का बड़ा ढेर बिखरा हुआ था।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘आग बुझाने की प्रक्रिया के दौरान देखे गए और पाए गए आधे जले हुए नोट बेहद संदिग्ध हैं और ये छोटी रकम के नोट नहीं थे, जो जस्टिस वर्मा या उनके परिवार के सदस्यों की मौन या सक्रिय सहमति के बिना स्टोररूम में रखे जा सकते थे।’ रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘इसलिए 1+4 स्थायी गार्ड और गेट पर हमेशा तैनात PSO द्वारा निगरानी वाले एक मौजूदा जज के स्टोररूम में नकदी रखना लगभग असंभव है। इसके अलावा, घर में छह से अधिक स्टाफ क्वार्टरों के साथ कई पुराने और विश्वसनीय घरेलू नौकर भी मौजूद हैं।’
रिपोर्ट में यह भी ज़िक्र किया गया कि आग लगने की रात कुछ नकदी को मौके से हटाया गया था, जो सुरक्षा गार्डों ने देखा। पैनल ने इसे ‘संदिग्ध’ बताते हुए कहा कि यह नकदी का हिस्सा ‘रहस्यमय ढंग से गायब’ हो गया।
रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस वर्मा ने न तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और न ही अपने वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों को इसकी सूचना दी। पैनल ने इसे ‘अनुचित आचरण’ और ‘न्यायिक कर्तव्यों के प्रति लापरवाही’ माना।
गवाहों के बयानों के अनुसार, कुछ नकदी को आग लगने की रात मौक़े से हटाया गया, जिसका कोई हिसाब नहीं दिया गया। जाँच पैनल ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग की सिफारिश की है, जिसमें कहा गया कि उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफलता दिखाई।
जस्टिस वर्मा का पक्ष
जस्टिस वर्मा ने पहले इस मामले में अपनी सफाई में कहा है कि उनके आवास पर पाई गई नकदी उनके खिलाफ साजिश का हिस्सा थी। उन्होंने दावा किया कि कुछ लोग उनकी छवि को नुक़सान पहुंचाने के लिए इस तरह की हरकत कर रहे थे। हालाँकि, जांच पैनल ने उनके इस दावे को अप्रमाणित माना। जस्टिस वर्मा ने अभी तक इस मामले में कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, और उनके इस्तीफे की मांग तेज हो रही है।
इस मामले ने भारत की न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। सोशल मीडिया पर लोगों ने इस घटना को ‘न्यायपालिका के लिए काला दिन’ करार दिया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले से आम जनता का न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा कम हो सकता है।