तमिलनाडु के कीलडी पुरातात्विक स्थल को लेकर केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच चल रहा विवाद अब और गहरा गया है। इस विवाद का पहला शिकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई के निदेशक (एंटीक्विटी) के. अमरनाथ रामकृष्ण बने हैं। रामकृष्ण को केंद्र सरकार ने उनके पद से हटा दिया है। यह क़दम कीलडी उत्खनन की तारीख़ तय करने को लेकर उपजी असहमति के बाद उठाया गया है। उन्होंने रिपोर्ट दी है कि कीलडी की सभ्यता 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है। अब तक भारत की सबसे पुरानी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता यानी सिंधु घाटी सभ्यता मानी जाती है जो 3300 से लेकर 1300 ईसा पूर्व तक मानी जाती है। यह मुख्य रूप से मौजूदा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में विकसित हुई। इसके बाद गंगा के मैदानों में बसावट शुरू हुई। कीलडी की सभ्यता को भी इसी दौर का माना जा रहा है। तो क्या दक्षिण भारत की कीलडी की सभ्यता गंगा के मैदानों में बसावट के समय ही फल फूल रही थी? क्या इसका मौजूदा तमिलनाडु और केंद्र के विवाद से संबंध है?
इसे समझने से पहले यह जान लीजिए कि आख़िर कीलडी उत्खनन और विवाद का आधार क्या है। तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कीलडी एक अहम पुरातात्विक स्थल है। यह संगम युग की सभ्यता से जुड़ा है। इस स्थल की खुदाई का नेतृत्व अमरनाथ रामकृष्ण ने किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि कीलडी की सभ्यता 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है। यह तारीख़ भारत में दूसरी नगरीकरण की प्रक्रिया को गंगा के मैदानों के समकालीन बताती है। यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को मज़बूत करने वाला दावा है।
हालाँकि, केंद्र सरकार और एएसआई के कुछ अधिकारियों ने इस तारीख़ पर आपत्ति जताई। एएसआई ने रामकृष्ण द्वारा तैयार 982 पेज की उत्खनन रिपोर्ट को संशोधन के लिए वापस कर दिया। यह एक असामान्य क़दम माना जा रहा है। रामकृष्ण ने इस संशोधन के अनुरोध को नामंजूर कर दिया और अपनी रिपोर्ट के निष्कर्षों और कार्यप्रणाली का बचाव करते हुए एएसआई के निदेशक (अन्वेषण और उत्खनन) हेमसागर ए. नाइक को पत्र लिखा।
हेमसागर ए. नाइक ने 21 मई को अमरनाथ रामकृष्ण को पत्र लिखकर कीलडी खोज की तारीख़ के लिए ठोस सबूत मांगे थे। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार अपने पत्र में नाइक ने कहा, ‘हमारी मौजूदा जानकारी के आधार पर शुरुआती अवधि (8वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) की तारीख़ बहुत पुरानी लगती है। यह ज़्यादा से ज़्यादा 300 ईसा पूर्व से पहले की हो सकती है।’ रामकृष्ण ने अपने जवाब में मज़बूती से कहा, ‘आपके द्वारा सिक्वेंस की और जाँच की बात करना उस उत्खननकर्ता के ठोस और तर्कपूर्ण निष्कर्ष के ख़िलाफ़ है, जिसने इस स्थल पर काम किया।’
हालाँकि, रामकृष्ण अब भी नेशनल मिशन ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड एंटीक्विटीज़ यानी एनएमएमए के प्रभारी बने रहेंगे। सूत्रों के मुताबिक़ 2007 में बना एनएमएमए अब लगभग निष्क्रिय हो चुका है।
यह विवाद केवल पुरातात्विक तारीख़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक और सांस्कृतिक आयाम भी शामिल हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर कीलडी की खोज को दबाने का आरोप लगाया है। स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु के पुरातत्व विभाग ने हाल ही में सबूत पेश किए हैं, जो यह साबित करते हैं कि कीलडी में लौह युग की शुरुआत हुई थी। उन्होंने केंद्र पर तमिल सभ्यता की प्राचीनता को कमतर आँकने का आरोप लगाया।
मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के महासचिव वाइको ने इस मामले में केंद्र की बीजेपी-आरएसएस सरकार पर तमिल संस्कृति को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कीलडी की खोज तमिल सभ्यता की प्राचीनता को विश्व के सामने लाती है, लेकिन केंद्र इसे दबाने की कोशिश कर रहा है।
दूसरी ओर, केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 11 जून को दावा किया था कि डीएमके सरकार ने कीलडी अनुसंधान में केंद्र के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया। इससे दोनों पक्षों के बीच तनाव और बढ़ गया।
कीलडी की खोज को तमिलनाडु में लौह युग और संगम साहित्य से जोड़ा जा रहा है। यह स्थल तमिल संस्कृति की प्राचीनता और भारत में नगरीकरण के इतिहास को समझने में अहम माना जा रहा है। तमिलनाडु सरकार और स्थानीय विद्वानों का मानना है कि कीलडी की खोज तमिल और संस्कृत सभ्यताओं के बीच तुलना को ख़त्म करती है, जो लंबे समय से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
कुछ जानकारों का कहना है कि इस विवाद में पुरातात्विक निष्कर्षों को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। एएसआई के निर्णय को लेकर कुछ लोग इसे तमिल सभ्यता की प्राचीनता को कम करने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य का मानना है कि यह वैज्ञानिक और तकनीकी असहमति का मामला हो सकता है।
यह विवाद न केवल कीलडी की खोज के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पुरातात्विक अनुसंधान में सहयोग की कमी को भी उजागर करता है। तमिलनाडु सरकार ने इस मामले में स्वतंत्र अनुसंधान को बढ़ावा देने की बात कही है, जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि वह कीलडी के महत्व को मान्यता देती है, लेकिन वैज्ञानिक मानकों का पालन ज़रूरी है।