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    Home » दिल्ली चुनाव नतीजे के बाद अब इंडिया गठबंधन का क्या होगा?
    भारत

    दिल्ली चुनाव नतीजे के बाद अब इंडिया गठबंधन का क्या होगा?

    By February 9, 2025No Comments8 Mins Read
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    दिल्ली में आप और कांग्रेस ने आमने-सामने चुनाव लड़ा। दोनों दल एक-दूसरे पर हमलावर रहे। अब नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए हैं। इस नतीजे के बाद इंडिया गठबंधन के सहयोगियों में बयानबाज़ी शुरू हो गयी है। बयानबाज़ी क्या शुरू हुई है, इसे कह सकते हैं कि वे एक दूसरे के ख़िलाफ़ तलवार की धार तेज़ कर रहे हैं। तो क्या अब इंडिया गठबंधन में रार छिड़ने वाली है या फिर दिल्ली चुनाव उनको यह सबक देगा कि अलग-अलग लड़ने का अंजाम दिल्ली चुनाव जैसा होगा और बीजेपी बाजी मार जाएगी

    इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि आख़िर दिल्ली चुनाव नतीजों के बाद इंडिया गठबंधन सहयोगियों ने क्या-क्या बयान दिया है। इसकी शुरुआत तो तब ही हो गई थी जब मतगणना जारी रहने के दौरान रुझान देखने के बाद ही जम्मू-कश्मीर के सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा दिया ‘और लड़ो आपस में!’ उनके इस बयान में देखा जा सकता है कि लोकसभा में बीजेपी की हार के बाद विपक्षी खेमे में जो उत्साह देखा गया था, यह उसके उलट था। हालाँकि हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजों के बाद से ही वह उत्साह कम होता जा रहा था, लेकिन दिल्ली चुनाव नतीजों ने जैसे उनमें निराशा ला दी!

    इंडिया गठबंधन के नेताओं के बयानों में ऐसी निराशा साफ़ दिखने भी लगी! ऐसे नतीजे के लिए कुछ लोग तो खुले तौर पर कांग्रेस को दोषी ठहरा रहे हैं। ये लोग आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस को आम आदमी पार्टी को जितवाने में मदद करनी चाहिए थी, लेकिन इसने चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज़्यादा आप और केजरीवाल पर हमला किया। इन आरोपों पर कांग्रेस का कहना है कि आप को जितवाने में मदद करना पार्टी की जिम्मेदारी नहीं थी। कांग्रेस ने कहा है कि दिल्ली चुनाव के नतीजे ‘अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर जनमत संग्रह से ज्यादा कुछ नहीं दिखाते हैं’।

    कई लोग दबी जुबान में कहते हैं कि अब जब आप हार गई है, तो स्वयंसेवकों द्वारा संचालित आप खत्म हो जाएगी, और संभवतः आप द्वारा लिए गए कांग्रेस के वोट वापस कांग्रेस के पास आ जाएंगे।

    कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि 2030 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार होगी। यह देखते हुए कि 2015 और 2020 में मोदी की लोकप्रियता के चरम पर भी आप ने दिल्ली में निर्णायक जीत हासिल की थी, रमेश ने कहा, ‘इससे पता चलता है कि पीएम की नीतियों की पुष्टि होने के बजाय, यह नतीजा अरविंद केजरीवाल की छल, कपट और उपलब्धि के बढ़ा चढ़ाकर पेश करने के दावों की राजनीति को खारिज करता है।’

     - Satya Hindi

    वरिष्ठ समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने नतीजों से पहले एक साक्षात्कार में द इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि मोदी सरकार को हटाने में विपक्ष की विफलता के पीछे कांग्रेस थी। उन्होंने पूछा कि कांग्रेस का अभियान आप पर क्यों लक्षित था। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस का रवैया बहुत खराब था। मैं समझ सकता हूं कि कांग्रेस भाजपा पर हमला कर रही है और वोट मांग रही है। लेकिन उन्होंने केजरीवाल पर ज़्यादा हमला किया, क्योंकि उन्हें लगता है कि केजरीवाल को हराने के बाद वे वापस आ सकते हैं।’

    सीपीआई महासचिव डी राजा ने कहा, ‘यह नतीजा साफ़ तौर पर दिखाता है कि आरएसएस-भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे का मुकाबला केवल एकजुट, वैचारिक और राजनीतिक मोर्चे के ज़रिए ही प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। यह इंडिया ब्लॉक में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और अन्य प्रमुख क्षेत्रीय दलों के लिए एक चेतावनी है।’

    आप के साथ गठबंधन न करने के आरोपों पर कांग्रेस यह तर्क दे रही है कि यह आप ही थी जो उसके साथ गठबंधन नहीं करना चाहती थी और केजरीवाल ने खुद ही यह साफ़ कर दिया था कि आप ने सबसे पहले अपने सभी 70 उम्मीदवारों की घोषणा की।

    कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि तथाकथित उदारवादियों के एक वर्ग का ऐसा सोचना पूरी तरह से विचित्र है। खेड़ा ने कहा, ‘उन्होंने विपक्षी एकता पर ये लेक्चर आप को तब नहीं दिए जब पार्टी गोवा, गुजरात, हरियाणा आदि में चुनाव लड़ने और सांप्रदायिकता विरोधी, धर्मनिरपेक्ष वोट को कमजोर करने गई थी।’ 

    राजद के मनोज कुमार झा ने भी इसी तरह के मुद्दे उठाए। उन्होंने तर्क दिया कि, ‘कांग्रेस भी शिकायत कर सकती है कि गोवा, गुजरात, हरियाणा में आप ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा… यह सब बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का हिस्सा है… लेकिन कुल मिलाकर, इंडिया ब्लॉक का विचार केंद्रीय स्तर पर था, जो भाजपा को विकल्प देना का विचार है। यह प्रासंगिक बना हुआ है।’

    पिछले महीने भी इंडिया गठबंधन में दरार आने की बात कही जाने लगी थी। यह चर्चा तब शुरू हुई थी जब दिल्ली चुनाव में कांग्रेस व आप के बीच बात नहीं बनी और इंडिया गठबंधन के कुछ सहयोगियों ने आप को समर्थन की घोषणा कर दी थी। इसी बीच जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इंडिया गठबंधन ख़त्म करने की बात कह दी थी।

    उमर अब्दुल्ला ने तब कहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है। उन्होंने कहा था कि यह गठबंधन लोकसभा चुनाव तक ही था तो इसे खत्म कर देना चाहिए क्योंकि इसके पास न कोई एजेंडा है और न ही कोई नेतृत्व।

    उमर के बयान के बाद इंडिया गठबंधन की घटक शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि अगर ये गठबंधन एक बार टूट गया तो दोबारा नहीं बनेगा।

    संजय राउत ने कहा था, ‘मैं उमर अब्दुल्ला जी की बात से सहमत हूँ। लोकसभा चुनाव हम एक साथ लड़े और अच्छा रिजल्ट भी आया। उसके बाद हमारी सबकी ज़िम्मेदारी थी, ख़ासकर कांग्रेस की जो गठबंधन की बड़ी पार्टी है, कि इंडिया गठबंधन को जिंदा रखे और फिर एक बार सब साथ में बैठकर आगे की चर्चा करें।’ उन्होंने कहा था, ‘लोगों के मन में अगर इस प्रकार की भावना आती है तो इसके लिए गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी ज़िम्मेदार है। कोई कम्युनिकेशन नहीं, डायलॉग नहीं, चर्चा नहीं है, इसका मतलब है कि इंडिया गठबंधन में सबकुछ ठीक है या नहीं, इसके बारे में लोगों के मन में शंका है।’

    उमर के बयान के बाद कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने गठबंधन के व्यापक उद्देश्य को दोहराते हुए कहा था, ‘इंडिया गठबंधन देश की आत्मा की रक्षा के लिए बनाया गया था, न कि केवल लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए। इसने शानदार प्रदर्शन किया, जिसने कई क्षेत्रों में बीजपी के प्रभुत्व को कम किया। भविष्य का रास्ता गठबंधन के सभी नेताओं द्वारा सामूहिक रूप से तय किया जाएगा।’

    इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के ऐसे बयान क्यों आ रहे हैं क्या सच में इंडिया गठबंधन का मक़सद सिर्फ़ लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का था

    दरअसल, विपक्षी दल तब एकजुट होने शुरू हुए थे जब उनको एहसास हुआ कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को हराना मुश्किल है। इन दलों को यह भी लग रहा था कि बीजेपी हर क्षेत्रीय दल को ख़त्म करना चाहती है और इसी के तहत उनके नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही थी और उनको गिरफ़्तार भी किया जा रहा था। 

    इसी बीच विपक्षी दलों के नेता बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए एकजुट हुए। इसको भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन यानी ‘इंडिया’ गठबंधन नाम दिया गया। इसमें कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, टीएमसी, आरजेडी, जेडीयू, एनसीपी समेत कई पार्टियां शामिल थीं। इंडिया गठबंधन को बनाने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे बड़ी भूमिका रही। उन्होंने सभी क्षेत्रीय पार्टियों को इकट्ठा करने का जिम्मा उठाया और 2 जून 2023 को बिहार के पटना में इंडिया गठबंधन की नींव डाली। 

    देश में मोदी सरकार के लगभग एक दशक में अर्थव्यवस्था में दिक्कतें, बेरोजगारी में वृद्धि, विपक्षी नेताओं पर हमले, देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हिंदू राष्ट्रवादियों के हमले और असहमति और स्वतंत्र मीडिया के लिए सिकुड़ती जगह देखी गई है। 26 दलों के गठबंधन ने इन मुद्दों को लगातार उठाया है। गठबंधन लगातार कहता रहा है कि दांव पर भारत के बहुदलीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष नींव का भविष्य है। गठबंधन के घटक दलों के नेता लगातार कहते रहे हैं कि देश में ‘लोकतंत्र को बहाल करने’ के लिए संयुक्त मोर्चा बनाया गया है।

    चुनाव बाद इंडिया गठबंधन में थोड़ी हलचल तब शुरू हुई जब इस मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बयान आ गया था। ममता ने हरियाणा-महाराष्ट्र और उपचुनावों में इंडिया ब्लॉक के खराब प्रदर्शन को लेकर 7 दिसंबर को नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था, ‘मैंने इंडिया गठबंधन बनाया। इसका नेतृत्व करने वाले इसे ठीक से नहीं चला सकते, तो मुझे मौका दें। मैं बंगाल से ही गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हूं।’ इस पर शरद पवार, लालू यादव जैसे कई नेताओं ने ममता का समर्थन किया था। बाद में जब दिल्ली चुनाव की बारी आई तो आप और कांग्रेस के बीच सहमति नहीं बन पाई। अब इंडिया गठबंधन को आगे जारी रखने पर सवाल उठ रहे हैं।

    (इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)

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