
Bawadi Made By Pandavas (Image Credit-Social Media)
Bawadi Made By Pandavas (Image Credit-Social Media)
Bawadi Made By Pandavas: राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में खण्डेला का स्थान न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अपने बावड़ियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां की बावड़ियां, जो वर्षा जल संचयन की अद्भुत तकनीकों का उदाहरण हैं। आज भी जल संरक्षण के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इनमें से एक प्रमुख बावड़ी है कालीबाय की बावड़ी। इस बावड़ी का निर्माण 16वीं सदी में हुआ था, लेकिन इसकी दीवारों पर लगी 8वीं सदी की प्रतिमाएं इसके प्राचीन स्वरूप को दर्शाती हैं। इसके अलावा, इस बावड़ी को लेकर कई रोचक लोककथाएं और पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। जिनमें पांडवों और बुद्ध से संबंधित कथाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।आइए जानते हैं कालीबाय बावड़ी के इतिहास, वास्तुकला, और उससे जुड़ी किवदंतियों से जुड़ी विस्तृत जानकारी के बारे में –
खण्डेला- बावड़ियों का शहर
शेखावाटी क्षेत्र का हिस्सा खण्डेला, जिसे महाभारत काल में खण्डपुर के नाम से जाना जाता था। राजपूताना के सबसे बड़े प्रांतों में से एक था। खण्डेला को बावड़ियों का शहर कहा जाता है क्योंकि यहां बीसवीं सदी के पूर्व तक कुल 52 बावड़ियां थीं। ये बावड़ियां न केवल जल संरक्षण का माध्यम थीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्र भी थीं। जहां लोग एकत्र होकर सामाजिक मेलजोल करते थे।

कालीबाय बावड़ी का इतिहास
कालीबाय बावड़ी का निर्माण विक्रम संवत् 1575 (1518 ई.) से शुरू होकर 1592 (1535 ई.) तक चला। यह कार्य अग्रवाल गोत्र के कोल्हा के पौत्र पृथ्वीराज के पुत्र रामा और बाल्हा ने शुरू किया था। उस समय खण्डेला के शासक रावत नाथूदेव निरबाण थे और दिल्ली पर लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी का शासन था। बावड़ी के निर्माण के समय दिल्ली पर कई शासकों ने शासन किया, जिसमें मिर्ज़ा हुमायूं मुग़ल का भी नाम शामिल है।
इस बावड़ी का निर्माण लगभग 17-18 वर्षों में पूरा हुआ और यह अपने समय की एक उत्कृष्ट जल संरक्षण परियोजना थी। कालीबाय बावड़ी के संबंध में सीकर के हरदयाल संग्रहालय की क्यूरेटर धर्मजीत कौर ने बताया है कि इसकी दीवारों पर 8वीं सदी की प्रतिमाएं भी लगी हुई हैं, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं।
वास्तुकला और संरचना
कालीबाय बावड़ी की वास्तुकला में राजस्थानी स्थापत्य कला की उत्कृष्टता झलकती है। बावड़ी को गहराई में खोदकर बनाया गया है और इसके आसपास जटिल नक्काशी और मूर्तिकला देखी जा सकती है। इसकी सीढ़ियां (स्टेप्स) पानी तक पहुंचने के लिए बनी हैं, जो पानी के स्तर के अनुसार ऊपर-नीचे होती हैं।

इस बावड़ी की दीवारों पर न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक चित्रांकन है, बल्कि प्राकृतिक जल संचयन के लिए विभिन्न तकनीकी उपाय भी शामिल हैं। बावड़ी के डिज़ाइन में वर्षा जल के संचयन के साथ-साथ पानी के संरक्षण और संचरण का कुशल प्रबंधन है। वर्तमान में इस बावड़ी को अपनी प्राचीनता और वास्तुशिल्प के कारण संरक्षण की जरूरत है। इसकी कई मूर्तियां और नक्काशी क्षतिग्रस्त हो रही हैं, जिससे इतिहास की यह अमूल्य धरोहर खतरे में है।
पांडवों से जुड़ी किवदंती
कालीबाय बावड़ी को लेकर एक प्राचीन लोककथा प्रचलित है। जिसके अनुसार इसे पांडवों ने बनाया था। महाभारत काल के इस पौराणिक उल्लेख के अनुसार, वनवास के दौरान पांडवों की माता (कुंती) को बहुत प्यास लगी थी और उन्होंने अपने पुत्रों से जल की व्यवस्था करने को कहा। तब पांडवों ने एक ही रात में बावड़ी का निर्माण किया ताकि सभी को पानी मिल सके, विशेषकर अपनी माता को। यह कहानी केवल एक किवदंती नहीं, बल्कि उस समय के सामाजिक और धार्मिक महत्व को दर्शाती है। जब जल की उपलब्धता जीवन का आधार थी और उसे संरक्षित करने के लिए जल संरचनाओं का निर्माण महत्वपूर्ण था।
बुद्ध से भी जुड़ा है कथात्मक कनेक्शन
कुछ स्थानीय मान्यताओं और शोधकर्ताओं का मानना है कि इस क्षेत्र में भगवान बुद्ध का भी संबंध रहा है। उनके दर्शन और ध्यान स्थल के रूप में इस बावड़ी का उपयोग किया गया होगा। बावड़ी की दीवारों पर मिली 8वीं सदी की प्रतिमाएं इस बात का सूचक हैं कि यह स्थल प्राचीन काल से धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा होगा। बौद्ध धर्म में जल का महत्व शुद्धता और जीवन के स्रोत के रूप में माना जाता है। अतः बावड़ी का निर्माण धार्मिक कर्मकांडों के लिए भी आवश्यक था।
जल संरक्षण की अनुपम धरोहर

कालीबाय बावड़ी केवल एक ऐतिहासिक संरचना नहीं है, बल्कि यह वर्षा जल संचयन और संरक्षण की एक अद्भुत मिसाल है। राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में जल स्रोतों का संरक्षण बेहद आवश्यक था। इसलिए बावड़ी जैसी संरचनाओं का निर्माण जीवनदायिनी साबित हुआ।
बावड़ी न केवल वर्षा जल को संग्रहित करती है, बल्कि इससे आसपास के भूजल स्तर को भी बनाए रखने में मदद मिलती है। कालीबाय बावड़ी की डिज़ाइन में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि यह लंबे समय तक जल संचयन कर सके।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण की आवश्यकता
आज कालीबाय बावड़ी पुरानी होती उम्र के कारण कई खतरों से जूझ रही है। इसकी दीवारों की नक्काशी ध्वस्त हो रही है और संरचना जर्जर हो रही है। हरदयाल संग्रहालय की क्यूरेटर धर्मजीत कौर के अनुसार, इसकी दीवारों पर लगी प्राचीन प्रतिमाएं खतरे में हैं और संरक्षण न होने पर ये इतिहास की अमूल्य धरोहर मिट सकती हैं।
स्थानीय प्रशासन, पुरातत्व विभाग और सामाजिक संगठनों को मिलकर इस बावड़ी को संरक्षित करने और पुनर्निर्माण के प्रयास करने चाहिए ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके। खण्डेला की कालीबाय बावड़ी न केवल राजस्थान की ऐतिहासिक और स्थापत्य धरोहर है बल्कि यह जल संरक्षण के महत्व को भी बखूबी दर्शाती है। पांडवों और बुद्ध से जुड़ी लोककथाएं इस बावड़ी को एक पौराणिक और आध्यात्मिक आयाम प्रदान करती हैं। ऐसी धरोहरें हमारे अतीत की गवाही हैं और इनकी रक्षा करना हमारा दायित्व है। कालीबाय बावड़ी का संरक्षण केवल एक ऐतिहासिक संरचना के संरक्षण का प्रश्न नहीं बल्कि जल संरक्षण के प्रति हमारे सामाजिक दायित्व का भी प्रतीक है।