प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया साइप्रस यात्रा न केवल भारत की ग्लोबल कूटनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। बल्कि भारत ने तुर्की और पाकिस्तान के गठजोड़ को जवाब देने के लिए यह रास्ता चुना।। मोदी 15-16 जून को साइप्रस में थे। दो दशकों से अधिक समय में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की यह पहली यात्रा थी। इस दौरान भारत ने साइप्रस के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को और मजबूत किया, साथ ही तुर्की को एक स्पष्ट कूटनीतिक संदेश दिया। भारत ने तुर्की की एक ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी को पहले ही भारत के बाहर कर दिया। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अब वही काम अडानी ग्रुप की कंपनी को मिलने जा रहा है।
साइप्रस यात्रा का कूटनीतिक महत्व
साइप्रस, पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एक छोटा सा द्वीपीय देश है जो भौगोलिक रूप से एशिया में होने के बावजूद यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य है। यह देश लंबे समय से तुर्की के साथ क्षेत्रीय विवादों में उलझा हुआ है। 1974 में तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर हमला कर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद यह द्वीप दो हिस्सों (ग्रीक साइप्रस-उत्तरी साइप्रस) में बंट गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीक साइप्रस को मान्यता मिली हुई है, जबकि उत्तरी साइप्रस को सिर्फ तुर्की की मान्यता मिली हुई है।इस विभाजन के कारण साइप्रस और तुर्की के बीच तनाव दशकों से बना हुआ है।
मोदी ग्रीन लाइन पहुंचे
प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस की राजधानी निकोसिया में राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के साथ मुलाकात की और साइप्रस के क्षेत्रीय अखंडता के मुद्दे पर भारत का पूर्ण समर्थन दोहराया। दोनों नेताओं ने ग्रीन लाइन का दौरा किया, जो साइप्रस को तुर्की के कब्जे वाले क्षेत्र से अलग करती है। इस कदम को तुर्की के लिए एक सख्त संदेश के रूप में देखा गया, खासकर तब जब तुर्की ने हाल ही में भारत-पाकिस्तान संघर्ष, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था।
हाल के वर्षों में तुर्की ने कश्मीर मुद्दे और ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों में पाकिस्तान का समर्थन करके भारत के खिलाफ रुख अपनाया है। ऑपरेशन सिंदूर, जिसे भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में चलाया था, के दौरान तुर्की ने न केवल पाकिस्तान को सैन्य उपकरण और ड्रोन प्रदान किए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की नीतियों की आलोचना भी की। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने पाकिस्तान के साथ इस्लामी एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए भारत के खिलाफ बयानबाजी की थी।
साइप्रस ने मौके को लपका और भारत के साथ अपनी दोस्ती को और गहरा करने का फैसला किया, जो तुर्की का कट्टर विरोधी है। साइप्रस ने हमेशा भारत के हितों का समर्थन किया है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता, भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, और 2019 के पुलवामा और हाल के पहलगाम आतंकी हमलों की निंदा शामिल है।
भारत और साइप्रस के बीच संबंध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से गहरे हैं। साइप्रस ने 1964 में आंतरिक संकट के दौरान भारत से मानवीय सहायता प्राप्त की थी और 1974 में तुर्की के आक्रमण के बाद भारत ने साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया था। इसके अलावा, साइप्रस ने लेबनान (2006, ऑपरेशन सुकून) और लीबिया (2011, ऑपरेशन सेफ होमकमिंग) से भारतीयों को निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
यह मानना पड़ेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की वैश्विक कूटनीति में एक मील का पत्थर साबित हुई। इस यात्रा ने न केवल भारत-साइप्रस संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि तुर्की और पाकिस्तान के गठजोड़ को एक कड़ा जवाब भी दिया।