लखनऊ विश्वविद्यालय अपने हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रविकांत चंदन को लेकर विवादों में है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की मंजूरी दिए जाने पर सवाल उठ रहे हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़े जाने को लेकर पट्टाभि सीता रमैया की पुस्तक से कुछ उद्धरण पेश किए जाने को लेकर 2022 में उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया था। अब प्रो. रविकांत ने दावा किया है कि उनको पता चला है कि विश्वविद्यालय की आंतरिक जांच कमिटी ने उन्हें पहले ही ‘क्लीनचिट’ दी थी, फिर भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की अनुमति दी। प्रो. रविकांत ने विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की मंजूरी के बिना की गई इस कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं।
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा है कि इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस इतने लंबे समय बाद चार्जशीट दायर कर प्रो. रविकांत को जेल भेजने की तैयारी कर रही है और उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रही है।
यह मामला प्रो. रविकांत की काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर टिप्पणी से जुड़ा है। पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने मंगलवार को लखनऊ में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि प्रो. रविकांत आंबेडकरवादी और प्रखर दलित चिंतक हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी पुलिस द्वारा उनकी आवाज़ को दबाने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है।
बयान में कहा गया है कि प्रो. रविकांत 7 मई 2022 को एक डिबेट शो में शामिल थे। इस डिबेट में उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़े जाने को लेकर पट्टाभि सीता रमैया की पुस्तक से कुछ उद्धरण पेश किए थे। उन्होंने कहा कि इसी खुन्नस में 10 मई 2022 को कुछ लोगों ने झुंड बनाकर प्रो. रविकांत पर हमला करने का प्रयास किया और उनके साथ गाली-गलौज की। इसके ख़िलाफ़ प्रो. रविकांत ने स्थानीय थाना में एक तहरीर दी थी, जिसपर आज तक एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई है।
अनवर ने एक बयान मे कहा, ‘तीन वर्षों बाद अब जाकर उत्तर प्रदेश पुलिस प्रो. रविकांत के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर कर उन्हें जेल भेजने का प्रयास कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार के इस गैर जनतांत्रिक कदम में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलसचिव विद्यानंद त्रिपाठी ने भी इसकी अनुमति दे दी है।’
प्रो. रविकांत ने इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की आंतरिक जांच कमिटी ने उनकी टिप्पणियों की जाँच की थी और उन्हें पता चला है कि इस मामले में ‘क्लीनचिट’ दी गई है। हालाँकि, समिति की जाँच रिपोर्ट अब तक सामने नहीं हुई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह कार्रवाई विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद यानी एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मंजूरी के बिना की गई, जो विश्वविद्यालय के नियमों का उल्लंघन है। विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार, इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए कार्यकारी परिषद की मंजूरी ज़रूरी होती है।
रविकान्त कहते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मुकदमा चलाने की मंजूरी देना उनके लिए आश्चर्यजनक और अन्यायपूर्ण है। प्रो. रविकांत ने कहा, ‘मुझे जानकारी मिली है कि आंतरिक जांच कमिटी ने मुझे क्लीनचिट दी थी। अगर ऐसा है तो फिर कुलपति ने बिना कार्यकारी परिषद की मंजूरी के मुकदमा चलाने की अनुमति कैसे दी? यह न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह मेरे ख़िलाफ़ पक्षपातपूर्ण कार्रवाई भी दिखाता है।’
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस मामले में आधिकारिक तौर पर कोई बयान जारी नहीं किया है। हालांकि, खबरों के अनुसार, कुलपति ने शासन के एक पत्र के आधार पर प्रो. रविकांत के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की मंजूरी दी है। मीडिया रिपोर्टों में विश्वविद्यालय सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यह कार्रवाई प्रो. रविकांत के विवादित बयानों के कारण उत्पन्न स्थिति को देखते हुए की गई, क्योंकि उनके बयानों ने कथित तौर पर सामाजिक और राजनीतिक विवाद को जन्म दिया।
प्रो. रविकांत ने पहले ही अपने बचाव में कहा है कि उनके बयानों को ग़लत संदर्भ में पेश किया गया और उनकी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि एक दलित शिक्षक होने के नाते उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
प्रो. रविकांत ने इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही है। उनके वकील का कहना है कि वे इस कार्रवाई को अदालत में चुनौती देंगे और यह साबित करेंगे कि विश्वविद्यालय ने नियमों का उल्लंघन किया है।